विश्लेषण. भारत के पड़ोसी देशों में नेपाल का अपना एक विशिष्ट महत्त्व है. नेपाल, भारत गणराज्य और चीनी जनवादी गणराज्य के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत के मध्य एक भू-आवेष्ठित राष्ट्र है. दो बड़े पड़ोसियों के बीच घिरा नेपाल एक ओर मध्यवर्ती राष्ट्र (बफर स्टेट) है जबकि दूसरी ओर यह भारतीय सुरक्षा के लिए अत्यधिक सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है. चूंकि नेपाल गंगा के मैदानों के लिए उत्तरी द्वार माना जाता है और इसी कारण भारत की सुरक्षा और स्थायित्व नेपाल की सुरक्षा और स्थायित्व के साथ जुड़ी रहती है.

हाल के दिनों में भारत और नेपाल के सम्बन्धों में सीमावर्ती क्षेत्रों पर नेपाल के दावे के कारण पर्याप्त मनोमालिन्य उत्पन्न हुआ है. वर्तमान कोरोना काल में जब पूरा विश्व कोविड-19 वायरस और उससे उपजी परिस्थितियों से लड़ रहा है तो दूसरी ओर भारत इसके अतिरिक्त अपने सीमाई क्षेत्रों की सुरक्षा और भारतीय क्षेत्रों पर हो रहे पड़ोसियों के दावे का समाधान करने में भी संलग्न है.

ध्यातव्य है कि भारत और नेपाल स्वाभाविक मित्र हैं. दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक दृष्टि से ‘रोटी और बेटी’ का रिश्ता है. भारत में नेपाल के नागरिकों को कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त हैं. इसी प्रकार भारत की सीमाओं की सुरक्षा में नेपाली गोरखा रेजीमेंट की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है. नेपाल के प्रत्येक संकट में भारत ने निरंतर उसका साथ दिया तथा नेपाली संप्रभुता के सम्मान के साथ-साथ उसकी स्थिरता, सुरक्षा, शांति और अखंडता के लिए सदैव साथ मिलकर काम किया है. इस सब के बावजूद वर्तमान समय में सीमाई क्षेत्रों को लेकर दोनों देशों के बीच मनोमालिन्य उत्पन्न हो रहा है.

दोनो देशों के द्विपक्षीय सम्बन्धों में ताजा विवाद नेपाल की संसद द्वारा पास किए गए उस संविधान संशोधन बिल से हुआ है जिसके तहत नेपाल के नए राजनीतिक नक्शे को स्वीकृति प्रदान की गई है. इस राजनीतिक नक्शे में भारत के तीन क्षेत्रों - लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख सहित लगभग 400 वर्ग किलोमीटर भू-भाग को नेपाल की सीमा में दर्शाया गया है. उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद विगत नवम्बर माह जब नवीन मानचित्रा जारी किया गया तब से ही नेपाल इन इलाकों को लेकर अपना विरोध दर्ज कराता रहा है. विगत आठ मई को उत्तराखंड में स्थित लिपुलेख दर्रे को धारचूला से जोड़ने वाले सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग का भारतीय रक्षा मंत्राी द्वारा उद्घाटन किया गया. इस सड़क निर्माण कार्य पर भी नेपाल ने गहरी आपत्ति जतायी. नेपाल का दावा है कि कालापानी उसके दार्चूला जिले का अभिन्न अंग है जबकि भारत इसे उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा मानता है.

वस्तुतः भारत और नेपाल के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा का निर्धारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और गोरखा राज्य के बीच वर्ष 1816 में हुई सुगौली की संधि द्वारा हुआ है. इस संधि में स्पष्ट प्रावधान था कि काली (महाकाली) के पूर्व का हिस्सा नेपाल जबकि पश्चिम का हिस्सा भारत का क्षेत्रा माना जाएगा. इस प्रकार महाकाली नदी को नेपाल और भारत की पश्चिमी सीमा के रूप में मान्यता दी गई. यहां हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि महाकाली सहित प्रायः सभी हिमालयी नदियां सततवाहिनी हैं और निरंतर अपने मार्ग को बदलती हैं. यद्यपि सुगौली की संधि में महाकाली नदी को नेपाल की पश्चिमी सीमा माना गया तो भी इस संधि में एक मूलभूत कमी छूट गई.

वस्तुतः महाकाली नदी से जुड़े भारत-नेपाल सीमा पर दोनों देशों में कोई विवाद नहीं है. विवाद की वास्तविक जड़ महाकाली नदी के उद्गम स्थल को लेकर है और भारत-नेपाल के ताजा सीमा विवाद का मुख्य बिन्दु यही है. इस संदर्भ में भारतीय पक्ष का मानना है कि महाकाली नदी का उद्गम कालापानी के निकट पंखागडा के पास एक बरसाती झरने से होता है जोकि लिपुलेख दर्रे के निकट है और यही जलधारा महाकाली नदी का मूलभूत स्रोत है. इसके विपरीत नेपाली विशेषज्ञों का मानना है कि महाकाली नदी लिपुलेख से 16 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में अवस्थित लिम्पियाधुरा से शुरू होकर दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है. यह दोनों धाराएं भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित गुंजी गांव के पास आकर मिलती हैं. दोनांे पक्षों के इस मतवैभिन्य के कारण नेपाल लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख आदि को अपना हिस्सा मानता है. इसके विपरीत भारतीय पक्ष पुराने मानचित्रों के आधार पर दावा करता है कि कालापानी से पश्चिम का सारा भाग भारतीय क्षेत्र माना जाना चाहिए.
भारत के लिए कालापानी का महत्त्व इस बात से ही लगाया जा सकता है कि दक्षिण एशियाई राजनीति में कालापानी क्षेत्रा को सामरिक-रणनीतिक रूप से बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है. यह भारत, चीन और नेपाल की सीमाओं को जोड़ने वाले त्रिकोणीय संधिस्थल पर स्थित है और यहां से हिमालय के उत्तरी क्षेत्रा में पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) की हरकतों पर भारत नजर रख सकता है. नेपाली राजनय का तर्क है कि भारत ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय अपने सुरक्षा बलों को इस क्षेत्र में तैनात किया था. वस्तुतः कालापानी की भौगोलिक ऊंचाई 20,276 फुट चीन के विरुद्ध भारतीय बलों को ‘प्रभावी सुरक्षा’ प्रदान करती थी. फलस्वरूप इसे भारतीय दस्तों के लिए सुरक्षित प्रक्षेत्र माना गया. हाल के समय तक चीन भी काला पानी को भारत का हिस्सा स्वीकार करता था यद्यपि नेपाली पक्ष का दावा है कि उसने इस क्षेत्र में 1959 में निर्वाचन आयोजित किए तथा वह 1961 तक इस क्षेत्र के निवासियों से भू-राजस्व वसूलता रहा.

1990 के दशक में नेपाल में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के पश्चात कालापानी के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच में वार्तालाप शुरू हुआ. वर्ष 2000 में नेपाली प्रधानमंत्राी गिरिजा प्रसाद कोइराला और भारत के प्रधानमंत्राी अटल बिहारी बाजपेई के बीच हुई वार्ता में दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि कालापानी में सीमाओं को चिन्हित करने के लिए एक सर्वे किया जाएगा. इस कार्य को 2002 तक पूरा किए जाने का संकल्प लिया गया यद्यपि इस कार्य को अब तक पूरा नहीं किया जा सका है.
उल्लेखनीय है कि उत्तर में हिमालय श्रेणी की अवस्थिति के कारण नेपाल और चीन के बीच किसी प्रकार का कोई सीमा विवाद नहीं है किंतु चूंकि नेपाल तीन ओर से भारत से घिरा है, इसकी सीमा मैदानी क्षेत्रों में पूरी तरीके से खुली है और इसलिए कहीं-कहीं इन दोनों के बीच सीमाओं से जुड़े गहरे विवाद हैं. इस सन्दर्भ में नेपाली पक्ष का यह दावा है कि भारत के साथ सीमाएं साझी करने वाले 26 जिलों में से 21 जिलों में 54 स्थानों पर भारत ने नेपाल की सीमाओं का अतिक्रमण किया है और इस प्रकार भारत ने नेपाल की करीब साठ हजार हेक्टेयर जमीन पर अनधिकृत कब्जा किया है.

दूसरी ओर हाल ही में आई कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत और नेपाल की सीमा पर स्थित सीमांकन करने वाले स्तंभों (पिलर्स) को या तो हटाया जा रहा है या नष्ट किया जा रहा है.

लखीमपुर खीरी, बहराइच आदि क्षेत्रों से जुड़े भारत-नेपाल की सीमा पर नेपाल के लोग सीमाओं का अतिक्रमण कर रहे हैं तथा भारतीय सीमाओं में जाकर कृषि व अन्य कार्य कर रहे हैं. यद्यपि सीमांकन करने वाले संयुक्त तकनीकी आयोग इस प्रकार के विवाद की स्थिति में यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि प्रत्येक देश अपनी-अपनी सीमाओं में ही रहकर कार्य करे, फिर भी भारतीय सीमा में इस प्रकार की अवांछित घुसपैठ निरंतर जारी है.

संक्षेप में, भारत और नेपाल की लगभग 1800 किलोमीटर लंबी खुली सीमा होने के कारण दोनों देशों के बीच सीमा विवाद होना स्वाभाविक है. भारत और नेपाल का सीमांकन करने वाले संयुक्त तकनीकी आयोग ने दोनों देशों की सीमाओं के सर्वेक्षण का लगभग 98 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया है. इसके तहत 182 स्ट्रीट मानचित्र के साथ 8553 सीमा स्तंभ तैयार किये गए हैं.

यद्यपि सीमा विवाद से जुड़ी नेपाल की चिन्ताओं को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली सदैव समुचित वार्ता द्वारा सीमा विवादों को सुलझाने के लिए दृृढ़ संकल्पित रही है किंतु इसे पूर्ण करने के लिए काठमाण्डू को भी वार्ता की मेज पर आना पड़ेगा. वर्तमान में बीजिंग के प्रति झुकाव रखने वाली नेपाल की ओली सरकार को भी अपनी हठधर्मिता को छोड़कर बातचीत के लिए आगे बढ़ना होगा यद्यपि वर्तमान परिदृश्य में काठमाण्डू के सीमाई पूर्वाग्रहों के चलते भारत-नेपाल के इन सीमा विवादों के सुलझने के आसार हाल-फिलहाल नजर नहीं आते.

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