मध्यप्रदेश के खंडवा शहर की पहचान दादाजी धूनी वाले की नगरी के रूप में जानी जाती है. गुरु पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष यहां दादाजी के भक्तों का कुंभ भराता है. पीड़ित मानवता की सेवा, चमत्कारों भरी गाथा के कारण बड़े दादाजी स्वामी केशवानंदजी महाराज तथा छोटे दादाजी स्वामी हरिहरानंद जी महाराज दोनों को ही अवतारी पुरुष और गुरु परम्परा के संवाहक के रूप में पूजा जाता है.

दादाजी धूनी वाले के भक्त भारत के अलावा विदेशों में भी बड़ी संख्या में हैं. इनका प्रतिवर्ष गुरुपूर्णिमा पर  खंडवा में महासंगम होता है. तत्कालीन अनेक अंग्रेज अफसर दादाजी की लीलाओं से प्रभावित होकर उनके भक्त हुए. ऐसे ही एक भक्त 1923-24 में बैतूल में कमिश्नर रहे बोर्न थे. इनके अलावा इंग्लैंड, अफ्रीका,अमेरिका के साथ योरपीय देशों में रह रहे अनेक भक्त परिवार आज भी दादाजी दरबार के संपर्क में हैं.

धूनी वाले दादाजी स्वामी केशवानंद जी महाराज की अनेक चमत्कारिक लीलाएं जनमानस में चर्चित हैं जो उन्हें अवतारी पुरुष  मानने को विवश करती हैं. तीन बार देह त्याग के बाद फिर किसी नए रूप में अवतरित होना और हर रूप में धूनी से जुड़ाव तो सर्वाधिक बड़ा चमत्कार है.

देश भर में अनेक स्थानों पर आश्रम

श्री दादाजी धूनी वाले के भारत में 27 से ज्यादा आश्रम हैं लेकिन, गुरुपूर्णिमा पर खंडवा में ही गुरुभक्तों का महासंगम होता है. साईं खेड़ा (मध्यप्रदेश) तो मुख्य स्थान है ही जहां उनकी चरण पादुका स्थापित है. इनके अलावा होशंगाबाद में पंडित कुंजबिहारी मिश्रा के बगीचे में, बैतूल के खंजनपुर में, जबलपुर में धामापुर चौक, गवारी घाट के समीप, छिंदवाड़ा जिले के ग्राम सौंसर में, उज्जैन में हनुमंत बाग, हंडिया(हरदा), बड़वाह, इंदौर तथा भोपाल में भी आश्रम हैं. नागपुर में ही कॉटन मार्केट में दादाजी का निशान स्थापित है जहां प्रतिवर्ष 1 जनवरी को उत्सव होता है.

पांढुर्णा में तार बाजार, वर्धा जिले के ग्राम दहे गांव, वर्धा, मूर्तिजापुर, भूलोंडा, मुम्बई में महालक्ष्मी तथा वालकेश्वर में 1922-23 से आश्रम स्थापित है. राजस्थान के जोधपुर में सिद्धनाथ मंदिर के निकट, फिरोजाबाद की तहसील जसराना के ग्राम खैरगढ़ में 1997 में तथा भारत पाकिस्तान सीमा पर श्री गंगानगर  (राजस्थान) में 1987 से आश्रम है.

गुजरात के अहमदाबाद के शाहीबाग क्षेत्र में आरटीओ के पास केशवनगर में, हैदराबाद में शाही तालाब के पास, दिल्ली में पुरानी दिल्ली में निगम बोधघाट (जमना बाजार) में 1951 से दादा दरबार है. इसके अलावा उत्तरप्रदेश के आगरा शहर में जून 2006 में दयालबाग क्षेत्र में संगमरमर से बनाया ,, पुष्पांजलि,, आश्रम है. उप्र में ही दिल्ली-अलीगढ़ राजमार्ग स्थित ग्राम रेसरी(जिला अलीगढ़) में भी 1982 से दादाजी का आश्रम है.

माँ की खोज में अध्यात्म की प्राप्ति

श्री केशवानंद जी महाराज (दादाजी) के जन्म के विषय में कोई ठोस जानकारी तो उपलब्ध नहीं होती लेकिन ऐसा बताया जाता है कि बिहार प्रांत के माघोरा नामक शिव बालक नाम के ब्राह्मण थे उनकी धर्मपत्नी का नाम विद्यावती था,. दोनों देवी उपासक व सात्विक, तेजस्वी थे. इन्हीं के यहां केशवानंद जी का जन्म हुआ

उनका नाम रामसेवक रखा गया. बालक की पांच वर्ष की आयु में उनकी माता जी का देवलोकगमन हो गया तब पिता व गाँव वालों ने रामसेवक को समझाते हुए कहा कि माता भगवान के घर चली गई है. इसी जिज्ञासा में उन्हें भगवान का पता लगाने की प्रेरणा मिली. एक दिन बिना बताए माँ की खोज में रामसेवक निकल गया. इसी खोज में नर्मदा तट आ पहुंचा जहां उन्हें गौरीशंकर महाराज का सान्निध्य प्राप्त हुआ और वे उनके शिष्य बन गए.

नर्मदा घाट पर ही उन्हें अध्यात्म की प्राप्ति हुई और वे दादाजी के नाम से जाने गए.

धूनी मैया की महिमा अपरम्पार

खंडवा के दादा दरबार मे 1930 से आज तक लगातार धूनी अखंड रूप से प्रज्वलित है. कहा जाता है कि स्वयं छोटे दादाजी ने इस धूनी को प्रज्वलित किया था. यह भारत का एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ भक्त 24 घंटे हवन पूजन कर सकते हैं . धूनी की भस्म साक्षात संजीवनी है, लाखों लोग धूनी से भस्म ग्रहण करते हैं. माना जाता है इसके सेवन से कई असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं. धूनी का इतने लंबे समय तक अखंड रहना भी एक मिसाल है ऐसा स्वरूप, ऐसी महत्ता और कहीं देखने को नही मिलती.

टिक्कड़-चटनी का अनूठा प्रसाद

प्रत्येक धार्मिक स्थल पर मान्यता अनुरूप अलग-अलग रूपों का प्रसाद भक्त्तों को वितरित होता है. लेकिन खंडवा के दादा दरबार में टिक्कड़-चटनी का अनूठा प्रसाद मिलता है. स्वयं बड़े दादाजी जब अपनी जमात के साथ चलते थे तब अपने हाथों से टिक्कड़-चटनी का प्रसाद भक्तों को बांटते थे. अन्य धार्मिक स्थलों की तरह दादा दरबार में प्रसाद पाने के लिए कोई रसीद कटवाना नही पड़ती यह अनमोल प्रसाद सभी के लिए निःशुल्क रहता है.

सात बड़े कार्यक्रम

गुरुपूर्णिमा के भव्य मेले के साथ दादा दरबार में छः और बड़े आयोजन हैं. इसमें अगहन शुक्ल त्रयोदशी पर बड़े दादाजी की बरसी, फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पंचमी को छोटे दादाजी की बरसी, शिवरात्रि, राम नवमी, जन्माष्टमी और दीपावली प्रमुख हैं. दादाजी के गुरु गौरीशंकरजी महाराज की समाधि होशंगाबाद से 15 किमी दूर ग्राम कोकसर में स्थित है. जहां प्रतिदिन प्रातः व संध्या आरती होती है.

इस बार भी खाने वाले दादाजी खिलाने वाले भी दादाजी

पूर्णिमा के अवसर पर खंडवा में जगह-जगह भंडारों का आयोजन किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस आयोजन के लिए सामग्री कहाँ से आती है इसका कोई उल्लेख नहीं कर पाता बस इतना ही कहा जाता है कि खाने वाले भी दादाजी और खिलाने वाले भी दादाजी. कोरोना संक्रमण के कारण भले ही भंडारे ना होने पाएं लेकिन फिर भी यह तो रहेगा कि खाने वाले भी दादाजी खिलाने वाले भी दादाजी.

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