वीभत्स् आतंकी करतूतों से देश एक बार और दहल गया जब पाकिस्तान कहें या आतिंकस्तान की कोख व पनाहगाह में पैदा हुई नापक औलादों ने 14 फरवरी को जम्मू-श्रीनगार हाईवे पर पुलवामा के अवंतिपुरा में केन्द्रीय रिर्जव पुलिस बल के काफिले पर फिदायीन हमला कर दिया. बरबस 44 सैनिक शहीद हो गए, बाकि अस्पताल में जिंदगी व मौत की जंग लड़ रहे है. जालिमों ने 200 किलो विस्फोटक से लदी एसयूवी कार को सैनिकों से भरी सीआरपीएफ की बस से भिड़ा दी. बेगर्द आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस कायराना हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कश्मीर के गुंडीबा-पुलवामा के आतंकी आदिल अहमद ने अंजाम देना बताया.
अध-बीच सोचनिए बात! सुरक्षा से चाकचौबंध अतिसंवेदनशील घाटी में
लोकसभा चुनाव आ रहे हैं और जहां तीन प्रमुख राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की हार से घबराई बीजेपी की पीएम मोदी सरकार केन्द्र में सत्ता बचाने के लिए में लगातार चाकलेटी वादे कर रही है, वहीं इन तीन राज्यों में जीत से उत्साहित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केन्द्र की सत्ता मिलने पर मीठे इरादों का इजहार कर रहे हैं, आश्चर्यचकित जनता खामोश है तो सियासी जानकार लोस चुनाव का समीकरण सुलझाने में व्यस्त हैं!
एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के मुद्दे पर विधानसभा चुनाव में सामान्य वर्ग की ओर से तगड़ा झटका मिलने के बाद अब पीएम मोदी टीम ने इस वर्ग को मनाने के लिए सरकारी नौकरियों में सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देना का
संयुक्त अरब अमारात याने दुबई और अबूधाबी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल कर लिया है. इसका मकसद हिंदी भाषी लोगों को मुकदमे की प्रक्रिया, उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में सीखने में मदद करना है. न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिहाज से यह कदम उठाया गया है. अमारात की जनसंख्या 90 लाख है. उसमें 26 लाख भारतीय हैं, इन भारतीयों में कई पढ़े-लिखे और धनाढ्य लोग भी हैं लेकिन ज्यादातर मजदूर और कम पढ़े-लिखे लोग हैं. इन लोगों के लिए अरबी और अंग्रेजी के सहारे न्याय पाना बड़ा मुश्किल होता है. इन्हें पता ही नहीं चलता कि अदालत में वकील क्या बहस कर रहे हैं और जजो
वैलेंटाइन डे, एक ऐसा दिन जिसके बारे में कुछ सालों पहले तक हमारे देश में बहुत ही कम लोग जानते थे, आज उस दिन का इंतजार करने वाला एक अच्छा खासा वर्ग उपलब्ध है. अगर आप सोच रहे हैं कि केवल इसे चाहने वाला युवा वर्ग ही इस दिन का इंतजार विशेष रूप से करता है तो आप गलत हैं. क्योंकि इसका विरोध करने वाले बजरंग दल, हिन्दू महासभा जैसे हिन्दूवादी संगठन भी इस दिन का इंतजार उतनी ही बेसब्री से करते हैं. इसके अलावा आज के भौतिकवादी युग में जब हर मौके और हर भावना का बाज़ारीकरण हो गया हो, ऐसे दौर में गिफ्ट्स टेडी बियर चॉकलेट और फूलों का बाजार भी इस दिन का इंतजार उतनी ही व्याकुलता से करता है.
आज प्रेम आपके दिल और उसकी भावनाओं तक सीमित
समाजसेवी अण्णा हजारे द्वारा लोकपाल और किसानों की समस्या को लेकर किया गया धरना प्रदर्शन इस बार बिना किसी सुर्खियों के समाप्त हो गया. अण्णा हजारे इस बार वैसा चमत्कार नहीं दिखा पाए, जैसा वे दिखाना चह रहे थे. जिस अण्णा हजारे के आंदोलन में पूरा देश उद्वेलित हो गया था, उनके द्वारा वर्तमान में किया गया आंदोलन मात्र सात दिवस में ही असफलता का ठप्पा चिपकाकर समाप्त हो गया. 2011 में समाजसेवी अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार के विरोध में व्यापक आंदोलन किया था, उस आंदोलन के कारण अण्णा हजारे ने देश में एक क्रांति का सूत्रपात किया था, लेकिन वर्तमान में उनके द्वारा किया गया आंदोलन असफल क्यों हुआ, उसके कारण तलाश किए तो स्वाभाविक रुप से
एक पुरानी कहावत है कि सौ कोस में पानी और सौ कोस में बानी बदल जाती है और जब नए जमाने के रेडियो की बात करते हैं तो यह कहावत सौ टका खरा उतरती है. भोपाल में आप जिस एफएम को सुन रहे हैं, वह सीहोर होते हुए उज्जैन और देवास में उसकी बानी बदल जाएगी. इन शहरों में एफएम चलेगा वही लेकिन उसकी बानी बदल जाती है. भोपाल में कों खां सुन रहे होते हैं तो इंदौर का एफएम आपको भिया कहता हुआ सुनाएगा. इस वेरायटी ने रेडियो की दुनिया को बदल दिया है. वैसे रेडियो के आविष्कार मारकोनी को लोग भूल गए होंगे, यह स्वाभाविक भी है लेकिन उनके बनाये रेडियो को हम कभी नहीं भूल पाएंगे. संचार के सबसे प्राचीन किन्तु प्रभावी तंत्र के रूप में रेडियो ने समाज में स्थापि
लोकसभा चुनाव 2019 करीब आ रहे हैं और इसके साथ ही कई मुद्दे भी गर्मा रहे हैं. कई चुनावों की तरह इस बार भी राम मंदिर निर्माण का मुद्दा प्रमुख है, लेकिन इस बार बीजेपी इस मुद्दे पर आक्रामक रूख नहीं दिखा पा रही है और न ही शिवसेना की तरह साफ-साफ बोल भी पा रही है?
जहां शिवसेना हर हाल में राम मंदिर के समर्थन में खड़ी है, वहीं बीजेपी इससे दूरी बना कर खड़ी है. इस वजह से बीजेपी के लिए परेशानियां बढ़ती जा रही है. जहां शिवसेना का स्वाभिमान के साथ असली हिन्दूत्व वाला चेहरा नजर आ रहा है, वहीं बीजेपी के हिन्दूत्व का सियासी चेहरा उभर रहा है!
बीजेपी के इस रूख पर रामभक्त साधु-संत खासे नाराज हैं, हालांकि बीजेपी से जुड़े संगठन इस मुद्दे पर बी
मध्यप्रदेश में पूर्ववर्ती सरकार की तरह खैरात बांटने के बजाय स्वाभिमान से जिंदगी जीने के रास्ते को आसान बनाने की पुरजोर कोशिश में कमल नाथ सरकार पहल कर रही है. इस क्रम में मध्यप्रदेश के युवाओं को स्वाभिमान के साथ जिंदगी जीने के लिए युवा स्वाभिमान योजना’ का श्रीगणेश किया जा चुका है. इस योजना में युवाओं के कौशल का ना केवल उपयोग किया जाएगा बल्कि उन्हें स्वयं की मेहनत से धन अर्जित करने का अवसर प्रदान किया जाएगा. युवाओं को जो कौशल प्रशिक्षण दिया जाएगा, वह अल्पकालिक ना होकर दीर्घकालिक होगा जिससे उनके आय के स्रोत नियमित बने रहें. समय के साथ उनमें दक्षता आएगी और दक्षता से उनके भीतर आत्मविश्वास का संचार होगा जिससे
जैसी कि आशंका थी, इस बार भी अन्ना हजारे का अनशन आश्वासन पर खत्म हो गया! रालेगण सिद्धि गांव में अनशन पर बैठे अन्ना हजारे से कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री सुभाष भामरे ने मुलाकात की और 31 जनवरी 2019 से अनशन पर बैठे अन्ना ने इस मुलाकात के बाद अपना अनशन खत्म कर दिया.
सीएम फडणवीस ने प्रेस से कहा कि- अन्ना हजारे की मांगों पर सराकात्मक तरीके से विचार किया जाएगा. लोकायुक्त कानून से देश को नया रास्ता मिलेगा. इससे छोटे इलाके में भ्रष्टाचार रुकेगा. और, इसके बाद अन्ना हजारे अनशन खत्म करने पर सहमत हो गए.
उन्होंने यह भी कहा कि हमने तय किया है कि लोकपाल सर्च कमेटी 13 फरव
मध्यप्रदेश के ओरछा में रामराजा सरकार को भले ही राज्य शासन राजा की तरह प्रोटोकॉल देता हो मगर उनके दरबार तक पहुंचाने इस क्षेत्र में जनसुविधाओं का अभाव रहा है. यहां बुंदेलखंड की सनातन समस्या अधोसरंचना की कमी के रुप में लंबे समय से है. ऐसे में धार्मिक एवं धर्मस्व विभाग ने ओरछा को संवारने कदम बढ़ाया है उससे रामराजा सरकार के उपासकों को आस जगी है. ओरछा में मध्यप्रदेश सरकार श्रद्धालुओं के लिए बड़ा यात्री सदन व मंगल परिसर बनाने जा रही है. गरीब एवं साधनहीन श्रद्धालुओं के हित में यह एक सार्थक कदम माना जा रहा है.
बुंदेलखंड में बेतवा के तट पर ऐतिहासिक रामराजा सरकार मंदिर है. मंदिर में भगवान राम को रामराजा सरकार के रु
विपक्ष भले ही वर्तमान सरकार के इस आखरी बजट को चुनावी बजट कहे और कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को चुनावी भाषण की संज्ञा दे,लेकिन सच तो यह है कि इस आम बजट ने अपने नाम के अनुरूप देश के आम आदमी के दिल को जीत लिया है. जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, यह सर्वव्यापी, सरस्पर्शी,सरसमवेशी, सर्वोतकर्ष को समर्पित एक ऐसा बजट है जो भारत के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने अवश्य जगाता है जो कितने पूर्ण होंगे यह तो समय ही बताएगा.
यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने चुनावी साल में बजट प्रस्तुत किया हो. लेकिन हाँ, यह पहली बार है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में जहाँ अब तक लगभग हर सरका
प्रियंका गाँधी वाड्रा अब आ गयी.जी हाँ,अब वह विधिवत राजनीति में आ गयी.पहले अनौपचारिक थी.अब औपचारिक नेता बन गयी हैं.पहले देश के दो जिलों की नेता थी,परन्तु अब देश की 20 जिलों की नेता बनायीं गयी हैं ,क्यों .ये सवाल मेरा नहीं है .सवाल कांग्रेस के अंदरूनी विश्वत दिग्गजों का है.
यदि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की माने तो प्रियंका को पार्टी से जोड़ने के बावजूद उनकी प्रतिभा का अपमान किया गया है.पद राष्ट्रीय महासचिव का और काम कुछ जिलों का.ऐसा क्यों? इसका जवाब किसी के पास नहीं और कांग्रेस संस्कृति में किसी को भी ये जानने और पूछने की औकात नहीं है.बताया जा रहा है कि सोनिया गाँधी शुरू से ही प्रियंका के पार्टी में लाये जाने के
राजनीति में भाषा की मर्यादा बेमतलब होती जा रही है और नेताओं के अमर्यादित बिगड़े बोल बढ़ते ही जा रहे हैं. कोई भी सियासी दल इसे सख्ती से रोकने की कोशिश करता दिखाई नहीं दे रहा है. यदि कोई नेता एकदम अमर्यादित बयान देता है और पार्टी परेशानी में आ जाती है, तो दिखावे के लिए उस नेता को पार्टी बाहर का रास्ता तो दिखा देती है, लेकिन उसे अप्रत्यक्ष लाभ तो देती ही है, कुछ समय बाद उसकी पार्टी में वापसी भी हो जाती है.
यूपी में भाजपा की विधायक साधना सिंह ने एक सभा में विवादित बयान देते हुए कहा था कि- हमको पूर्व मुख्यमंत्री न तो महिला लगती हैं और न ही पुरुष, इनको अपना सम्मान ही समझ में नहीं आता?
वे इतना कह कर ही नहीं रूकी, उन्होंन
बीते पांच बरसों से देश में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के दायित्व पर काबिज हैं लेकिन जितना हो-हो हल्ला गत एक-दो माह से हो रहा है इतना कभी नहीं हुआ. क्यां इससे ये समझे कि बाकी समय में नरेन्द्र मोदी अच्छे प्रधानमंत्री थे जो अब बेकार साबित हो रहे है. माहौल से तो येही अंदेशा लगाया जा सकता है. तभी तो चंहुओर नेतागिरी की जमात में मोदी हटाओं, देश बचाओं और हमें बनाओं का नारा गूंज रहा है. हर कोई अनचाहा गठबंधन, बेमोल दोस्ती और सत्ता लोलुपत्ता का पाठ पढ़ रहा है. सबक का सबब इतना ही असरकारक था तो इनकी गलबगियां ने पहले ही क्यों गुल नहीं खिलाया.
आखिर! अब ऐसा क्यों हो रहा है जो पहले नहीं हुआ. मोदी इतने ही बूरे थे तो इन्होंने समय
ब्रितानी हुकूमत को अपने शौर्य से हिला देने वाली झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई का शौर्य एक दफा फिर सिनेमा के पर्दे पर साकार होने जा रहा है.यह फिल्म हिन्दुस्तान में किस जज्बात से देखी जाएगी कुछ माह पहले देश भर में चर्चित रहा ट्रेलर ही बता गया था. कंगना रनौत की केन्द्रीय भूमिका मेंं यह फिल्म गणतंत्र दिवस पर देश भर के मल्टीप्लैक्स व सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. फिल्म रिलीज से पहले सोशल मीडिया में भरपूर चर्चा में है. हर कोई सफेद घोड़े पर सवार रानी लक्ष्मीबाई बनी कंगना को जब दास्ता के प्रतीक यूनियन जैक को तलवार से भेदते देखता है तो एक पल को रोयां रोयां खड़ा हो जाता है. ये स्वभाविक प्रतिक्रिया ही भारत में महारानी
मंजिल दूर है, डगर कठिन है लेकिन दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते चलिए, कोलकाता में विपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित ममता की यूनाइटिड इंडिया रैली में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का यह एक वाक्य विपक्ष की एकता और उसकी मजबूरी दोनों का ही बखान करने के लिए काफी है अपनी मजबूरी के चलते ये सभी दाल इस बात को भी नजरअंदाज करने के लिए मजबूर हैं कि यह सभी नेता जो आज एक होने का दावा कर रहे हैं वो सभी कल तक केवल बीजेपी नहीं एक दूसरे के भी विपक्षी थे सच तो यह है कि कल तक ये सब एक दूसरे के विरोध में खड़े थे इसीलिए आज इनका अलग आस्तित्व है क्योकि सोचने वाली बात यह है कि अगर ये वाकई में एक ही होते तो आज इनका अलग अलग वजूद नहीं होत
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उत्तर प्रदेश में गठबंधन का ऐलान कर दिया है, जिसके तहत 80 लोकसभा सीटों में से सपा-बसपा, 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी और दो सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी गई हैं. शेष बची दो सीटें- अमेठी और रायबरेली ऐसी हैं, जहां सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
कांग्रेस को सपा-बसपा गठबंधन में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ दी गई हैं, वजह? मायावती का कहना था कि- हम किसी भी ऐसी पार्टी को गठबंधन में शामिल नहीं करेंगे जिससे पार्टी या गठबंधन को नुकसान पह
दो साध्वियों के यौन उत्पीड़न मामले में सजा भुगत रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख रहे गुरुमीत राम रहीम को अब पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में उमर कैद की सजा भुगतनी होगी. लंबे इंतजार के बाद चंडीगढ़ की अदालत ने आखिर वो फैसला सुना दिया जिसकी निर्भीक और निष्पक्ष कलम की आजादी के पैरोकार लंबे समय से मांग कर रहे थे. इस फैसले ने समाज को सच्चाई दिखाने वाले नागरिकों व अपनी जान की परवाह न करने पत्रकारों को न्याय के लिए लड़ने के लिए नया हौंसला दिया है. सीबीआई कोर्ट का यह फैसला धर्म की आड़ में नैतिकता को तार तार करने वाले पाखंडियों कड़ा प्रहार करता नजर आता है.
1990 से डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख रहा गुरमीत राह रहीम ने आध्यात्म
बेरोजगारी पहले भी बड़ा मुद्दा थी, परन्तु नोटबंदी, जीएसटी जैसे निर्णयों ने बेरोजगारों का दर्द और भी बढ़ा दिया है. यही नहीं, नोकरियां तो मिल नहीं रही हैं, जिनके पास नोकरी थीं उनमें से कई अपनी गंवा चुके हैं या वेतन में कटौती का शिकार हो गए हैं.
कांग्रेस लोकसभा चुनाव में रोजगार के मुद्दे पर मोदी सरकार के पांच सालों के कामकाज पर प्रश्नचिन्ह तो लगाएगी ही, अपनी ओर से बेरोजगारी खत्म करने की योजना भी अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगी. खबर है कि इसके लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट को आधार बनाया जाएगा.
उल्लेखनीय है कि राजन पीएम मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के समर्थक नही
अभिभूत, आज बाबा साहेब आंबेड़कर का वह सबक याद आ गया जब उन्होंने कहा था हमारी शिक्षा मालिक पैदा करने लिए होना चाहिए नाकि नौकर. इतर हम नौकर बनने का पाठ पढ़ रहें तभी तो देश में मालिक नहीं नौकरों की बाढ़ आ रही है. आह्लादित भविष्यतर देश को आजादी में भी गुलामी झेलनी पड़ेगी जिसका पार्दुभाव बहुदेशीय कंपनियों के मकड़जाल से हो चुका है. प्रतिभूत भुगतमान भोगने अपने साथ आने वाली पीढ़ी को भी तैयार करने में कोई कोताही नहीं कर रहे है.
मतलब, हम बात कर रहे हैं आज के दौर में प्रचलित शिक्षा प्रणाली और अपनाये जाने वाले रोजगार के भागमभागी भरे संसाधनों की जिसे हर कोई अपने-अपने माध्यमों से पाना ही नहीं अपितु हथियाना चाहता है. बस! इसी मु
15 जनवरी 2019 को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हूडा के दिल्ली स्थित आवास पर सालाना भोज था.उसमे कांग्रेस सहित अमूमन सभी दलों के नेता और सभी सक्रिय और वरिष्ठ पत्रकार आमंत्रित हुआ करते है.मै भी आमंत्रित था.इस भोज का ये सिलसिला पिछले कई वर्षो से चल रहा है.
इस बार का भोज में कुछ अलग किस्म का उत्साह दिखा.जो पिछले चार वर्षों में नहीं दिखा था.वजह तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस राज की वापसी थी.पर इस बार भोज को मैंने विशेष तौर पर खबरी मूड और मोड में रखा.खबर थी -नई विवादित राजनीतिक फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर की सत्यता के साथ कांग्रेस नेताओ की प्रतिक्रिया.
फिल्म में फोकस पूर्व प्रधान
उज्बेकिस्तान की राजधानी समरकंद में भारत, अफगानिस्तान और पांच मध्य एशियाई देशों ने एकजुट होकर आतंकवाद से निपटने का संकल्प लिया है.इन देशों में एवं दुनिया के अन्य हिस्सों में आतंकवाद जितना लम्बा चल रहा है, वह क्रोनिक होकर विश्व समुदाय की जीवनशैली का अंग बन गया है.इसमें ज्यादातर वे युवक हैं जो जीवन में अच्छा-बुरा देखने लायक बन पाते, उससे पहले उनके हाथों में एके-47 एवं ऐसे ही घातक हथियार थमा दिये जाते है.फिर जो भी वे करते हैं, वह कोई धर्म नहीं कहता.आखिर कोई भी धर्म उनके साथ नहीं हो सकता जो उसकी पवित्रता को खून के छींटों से भर दे.आखिर आतंकवाद का अंत कहां होगा? तेजी से बढ़ता आतंकवादी हिंसक दौर किसी एक देश का दर्द नहीं रह
समय से बड़ा कोई नहीं और राजनीति में समय का बड़ा महत्व माना जाता है.समय के परिपेक्ष्य में भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी का जवाब नहीं.श्री मोदी समय के पुजारी कहे जाते हैं.शायद इसलिए उन्होंने उचित समय पर देश को एक जोर का झटका दिया है ,मगर धीरे से.वो है दस प्रतिशत सवर्ण गरीब को आरक्षण दिए जाने का.सच में ये एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व फैसला है श्री मोदी जी के द्वारा देश के लिए.वैसे देखना ये होगा कि इस वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में मोदी की पार्टी भाजपा को कितना लाभ मिलता है.
लेकिन मुझे उस बात से हैरानी है कि कभी आरक्षण का विरोध करने वाले नरेन्द्र भाई मोदी अचानक उसके समर्थन में कैसे आ गए? क्या मजबूरी रही होगी उनकी .सम
नरेन्द्र मोदी सरकार ने आर्थिक निर्बलता के आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण देने का जो फैसला किया है वह निश्चित रूप से साहिसक कदम है, एक बड़ी राजनीतिक पहल है. इस फैसले से आर्थिक असमानता के साथ ही जातीय वैमनस्य को दूर करने की दिशा में नयी फिजाएं उद्घाटित होंगी. निश्चित ही मोदी सरकार ने आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए यह आरक्षण की व्यवस्था करके केवल एक सामाजिक जरूरत को पूरा करने का ही काम नहीं किया है, बल्कि आरक्षण की राजनीति को भी एक नया मोड़ दिया है. इस फैसले से आजादी के बाद से आरक्षण को लेकर हो रहे हिंसक एवं अराजक माहौल पर भी विराम लगेगा.
देशभर की सवर्ण जातियां आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करती आ रही हैं. भारतीय संव
आज सोशल मीडिया केवल अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम नहीं रह गया है बल्कि काफी हद तक वो समाज का आईना भी बन गया है. क्योंकि कई बार उसके माध्यम से हमें अपने आसपास की वो कड़वी सच्चाई देखने को मिल जाती है जिसके बारे में हमें पता तो होता है लेकिन उसके गंभीर दुष्परिणामों का अंदाजा नहीं होता. ताज़ा उदाहरण सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल होते एक वीडियो का है जिसमें कॉलेज के युवक युवतियों से हाल के विधानसभा चुनावों के बाद नई सरकार के विषय में उनके विचार जानने की कोशिश की जा रही है. प्रश्नकर्ता हर युवक युवती से पूछती है कि चुनावों के बाद मध्यप्रदेश का राष्ट्रपति किसे बनना चाहिए? किसी ने किसी नेता का नाम लिया तो किसी ने दूसरे का.
हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के चुनावी नतीजों में किसानों की कर्ज माफी के वादे को एक निर्णायक आधार माना जा रहा है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि यह समाधान नहीं, महज् कुछ समय के लिए राहत देने वाला कदम है. किंतु यह कदम किसान को स्वावलंबी और सशक्त नहीं बना सकता. अतः भारत की कृषि समस्याओं के समाधान की दृष्टि इसकी बहुत तारीफ भी नहीं की जा सकती.
यह सच है कि न्यूनतम समर्थन खरीद मूल्य और सरकारी खरीद...दोनो की क्षमता बढ़ाने तथा किसानों को न्यूनतम मूल्य से कम में फसल बेचने के लिए विवश करने वाले खुले बाज़ार पर सख्ती बरतकर किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता है. उत्पादक से उपभोक्ता के बीच सक्रिय दलालों के मुनाफे को नियंत
आगामी लोकसभा चुनावों में आदिवासी एवं दलित की निर्णायक भूमिका होगी, इस बात का संकेत हाल ही में सम्पन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला है. कांग्रेस की जीत में दलित-आदिवासी समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका बनी है, जबकि भाजपा को इन समुदायों ने आंख दिखायी है. बातों से एवं लुभावने आश्वासनों से ये समुदाय वश में आने वाले नहीं है. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों की नाराजगी को नजरअंदाज करने के कारण इन तीनों ही राज्यों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. लोकसभा चुनावों में दलित और आदिवासी समाज की नाराजगी की अनदेखी करना हार का सबब बन सकता है.
भाजपा सरकार को अपने कार्य
किसी ने मित्र ने मुझसे सवाल किया कि क्या सामाजिक बदलाव में न्यायपालिका व्यवस्थापिका कार्यपालिका प्रेस सभी की भूमिका होती है क्या यदि हाँ तो कैसी ?
जी हां 100% होती है .इस कॉन्फिडेंट उत्तर के बाद मैंने उनसे पूछा कि - श्रीमान मुझे बताएं कि आप किस प्रकार के बदलाव की बात कर रहे हैं ?
मेरे प्रतिप्रश्न को अपनी ओर आया प्रहार समझ कर भाई साहब जरा सा तनावग्रस्त दिखे .मित्र को यह समझाना पड़ा कि भाई बदलाव दो तरह के होते हैं. सृजनात्मक एवं विध्वंसक तब कहीं मित्र जरा शीतल हुए..
उनने सृजनात्मक बदलाव को चुना .
जो कुछ बात हुई उसे अपनी शैली में आप सबसे बाँट रहा हूँ.
सकारात्मक बदलाव में प्रमुख भूमिका होती है सामाज