सुब्रह्मण्यम चन्द्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर, 1910, में लाहौर में समृद्ध वैज्ञानिक भारतीय परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम सीता और पिता का सुब्रमण्यम था. जो कि रेलवे में कार्यरत थे. बचपन में लोग उन्हें प्यार से चन्द्रा कहकर बुलाते थे.

वहीं वे अपने चाचा एवं देश के महान भौतिकविद व नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक सी.वी. रमन के विचारों से काफी प्रभावित थे. इसलिए बाद में उन्हीं के पदचिन्हों पर चल वे महान वैज्ञानिक बने.

सुब्रमण्यम ने अपनी शुरुआती पढा़ई घर पर रहकर ही पूरी. इसके बाद उन्हों हिन्दू हाई स्कूल में एडमिशन लिया और फिर आगे की पढ़ाई मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की और फिर भौतिकी विषय में बीएससी कर अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की.

शुरु से ही वे मेधावी छात्र थे इसलिए बाद में भारत सरकार की तरफ से मिली स्कॉलरशिप को लेकर इंग्लैंड के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए. साल 1933 में उन्होंने अपनी PHD कर ली और फिर उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज के फैलोशिप के लिए चुना गया.

इसके बाद उन्हें शिकागों यूनवर्सिटी में एक रिसर्च एसोसिएट के पद पर नियुक्त किया गया. साल 1936 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने लोमिता दोरईस्वामी से शादी कर ली, लोमिता से मुलाकात उनकी मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई थी.

सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने यर्केस वेधशाला और अस्ट्रोफिजिकल जर्नल के संपादक के रुप में काम किया. इसके बाद उन्हें शिकागो यूनिवर्सिटी की वेधशाला में प्राध्यापक की जॉब मिली, तब से लेकर उम्र भर वे इसी यूनिवर्सिटी में अपनी सेवाएं देते रहें.

वहीं चन्द्रशेखर की अद्भुत प्रतिभा को देखते हुए साल 1953 में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका का नागरिक घोषित किया गया. इसके बाद सब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने ”चन्द्रशेखर लिमिट सिद्धांत” की खोज कर सबसे बडी़ सफलता हासिल की, और इसके बाद इनकी प्रसिद्धि पूरे भारत में फैल गई थी.

अपनी इस खोज के माध्यम से सुब्रमण्यम जी ने तारों के समूह की अधिकतम आयु सीमा का निर्धारण किया. इसके अलावा सुब्रमण्यम जी का तारों की संरचना और क्षोभ सिध्दांत नामक रिसर्च भी काफी प्रमुख रही.

चन्द्रशेखर जी ने खगोलीय विज्ञान के क्षेत्र में कई अन्य महत्वपूर्ण खोज कीं. उनके ”तारों के ठंडा होकर सिकुड़ने के साथ केन्द्र में घनीभूत होने की प्रक्रिया पर किए गए उनकी रिसर्च के लिए उन्हें साल 1983 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

चन्द्रशेखर सीमा की इस महान खोज के बाद ही न्यूट्रोन तारों और ”ब्लैक हॉल्स” का पता चला.

आपको बता दें कि सुब्रमण्यम की प्रमुख खोजों में थ्योरी ऑफ ब्राउनियन मोशन, थ्योरी ऑफ इल्लुमिनेसन एंड द पोलारिजेसन ऑफ द सनलिट स्काई, ब्लैक होल के गणतीय सिद्धांत, सापेक्षता और आपेक्षिकीय खगोल भौतिकी आदि शामिल हैं.

महान वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने साल 1939 में अपनी पहली किताबा ”ऐन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ स्टैला स्ट्रक्चर” का प्रकाशन किया.
इसके बाद साल 1943 में उन्होंने ”प्रिंसिपल्स ऑफ स्टैलर डायनामिक्स” का प्रकाशन किया.

साल 1943 में ही सुब्रमण्यम चन्द्रशेखऱ ने भौतिकी की अवधारणाओं और समस्याओं पर आधारित लेखों को ”रिव्यूज ऑन मॉडर्न फिजिक्स” नामक किताब में पब्लिश किया.

साल 1950 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर की रेडिएटिव ट्रांसफर नामक पुस्तक पब्लिश हुई.

साल 1961 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर की ”हाइड्रोडायनेमिक एंड हाईड्रोमैग्नेटिक स्टेबिलिटी” नामक महत्वपूर्ण किताब प्रकाशित हुई. उनकी इस किताब में उनके द्वारा प्लाज्मा भौतिक पर किए गए महत्वपूर्ण अनुसंधान के बारे में बताया गया है.

साल 1969 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर जी की ”इंलिप्संइडेल फिगर्स ऑफ इक्यूलिबेरियम” पुस्तक पब्लिश हुई. उनकी इस किताब में न्यूटन के गुरुत्वार्कषण सिद्धांत और मशीन सबंधी सिद्धांतों पर उनके द्वारा किए गए रिसर्च का आसान भाषा में व्याख्या की गई है.

1987 में चंद्रशेखर की एक और पुस्तक ‘ट्रुथ एन्ड ब्यूटी’ ओक्साफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस व्दारा प्रकाशित हुई थी. इसमें न्यूटन, शेक्सपियर और विथोवन पर दिए गए चंद्रशेखर के भाषणों तथा कई महत्वपूर्ण निबंधों की रचना की गई है.

पुरस्कार और सम्मान 

1983 में वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर को तारों के सरंचना और विकास से संबंधित उनकी रिसर्च एवं अन्य योगदान के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था.

साल 1968 में महान वैज्ञनिक सुब्रमण्यम को भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.

सुब्रमण्यम चन्द्रशेखऱ जी को गणित में महत्वपूर्ण खोज के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने एडम्स पुरस्कार से सम्मानित किया है.

साल 1961 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर जी को भारतीय विज्ञान अकादमी ने ”रामानुजन पदक” सम्मान से सम्मानित किया.

साल 1966 में सुब्रमण्यम को अमेरिका में राष्ट्रीय विज्ञान पदक से नवाजा गया.
साल 1952 में सुब्रमण्यम को ब्रूस पदक से सम्मानित किया गया.

साल 1971 में सुब्रमण्यम को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा हेनरी ड्रेपर मेडल से सम्मानित किया गया था.

साल 1953 में रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

साल 1957 में सुब्रह्मण्यम को अमेरिकन अकादमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज के रमफोर्ड पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

साल 1988 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर को इंटरनेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस के मानद फेलो पुरस्कार से नवाजा गया था.

साल 1971 में सुब्रमण्यम चन्द्रशेखऱ जी को नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा हेनरी ड्रेपर मेडल भी दिया गया था.

भारत के महान वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने 21 अगस्त, 1995 को अपनी अंतिम सांस ली. वे अपने जीवन के आखिरी दिनों में शिकागो आ गए थे और वहां रहकर ही किताबें लिखते थे.आपको बता दें कि उनकी आखिरी किताब न्यूटन की ”प्रिंसिपल फॉर द कॉमन रीडर” थी, जो कि उनके निधन से कुछ समय ही पब्लिश हुई थी.

सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर ने अपनी कई प्रमुख खोजों के माध्यम से वैज्ञानिक जगत को काफी संपन्न बनाया है और भारत को पूरी दुनिया में गौरान्वित किया. उनकी महान खोजों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा.

साभार: gyanipandit.com