राम बिहारी पांडेय, सीधी. रोजगार की तलाश में भटक रहे मजदूरों को काम देने के लिए नदियों में मौजूद रेत को निकालने का सरकार ने टेंडर किया है जिससे मजदूरों को काम मिल रहा है तो सरकार के खाते में राजस्व भी जाने लगा है लेकिन बीते 5 सालों से शासन को चूना लगाने वाले राजनीतिक दलों से वास्ता रखने वाले लोगों को रास नहीं आ रहा उन्हें ना तो मजदूरों को काम नहीं है.
मतलब है नहीं शासन के खाते में बजट जाने से मतलब है उन्हें तो रेत से अवैध कमाई करने का मौका हाथ से निकलता दिख रहा है जिसके कारण खदानों से कई किलोमीटर दूर रहने वाले मजदूरों को बुलाकर विरोध करना चालू कर दिए जी हां हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के सीधी जिले के गोपाद नदी सहित छोटी-छोटी नदियों में मौजूद रेत के निकासी के लिए मंजूर हुई खदानों की जहां नीलामी के 6 महीने बाद रेत निकासी करने पहुंचे संविदा कार को स्थानीय लोग काम नहीं करने दे रहे हैं बीते 1 सप्ताह से राजनैतिक दलों से जुड़े लोग अपने चंद लोगों को साथ में लेकर खदान पहुंच जाते हैं जहां काम पाने के बहाने आंदोलन प्रदर्शन करने लगते हैं जिसके कारण खदान में पहुंचे वाहनों में रेत की लोडिंग नहीं हो पा रही है . खदान संचालक ने जिला प्रशासन से हस्तक्षेप कर खदान संचालित कराने की अपेक्षा किए हैं.
गोपद नदी की खदानों से रेत निकालने के लिए एक निजी कंपनी रेत निकासी करने की तैयारी कर जैसे ही काम चालू किया वैसे ही पूर्व में खाता संचालन करने वाले नेताओं ने डेरा जमाना शुरू कर दिया है वह मजदूरों को काम देने के नाम पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि कंपनी ने हर खदान में डेढ़ से 200 मजदूरों को कांम दे रखा है उधर मजदूरों को भड़का कर लोडिंग के लिए जहां भारी भरकम रकम की मांग कर आने लगे हैं वही मशीन से रेट निकासी कर डंप करने के बाद वाहन में लोड करने का दबाव देने लगे एक ही काम के लिए दोहरा खर्च कराना चाह रहे हैं जानकारों के अनुसार डोल गोतरा नींधपूरी भरुही खदानों में सफेदपोश धारियों का डेरा हो गया है जिसके चलते खदान संचालन का कार्य प्रभावित हो रहा है.
मजदूरों के लिए कम खुद को ठेका देने बना रहे दबाव
खदानों में मजदूरों को काम मिलता देख पूर्व के ठेकेदार अच्छे खासे सहमे हुए हैं वे हिस्सेदार बनने के लिए खदान वाले इलाके के बाहर से मजदूरों को लाकर विरोध करना चालू किए हुए हैं उनका मकसद जरूरतमंद लोगों को काम दिलाना नहीं स्वयं को काम देने के लिए दबाव बना रहे हैं कई ठेकेदार तो यह भी कहते सुना दो कंपनी ने बालू का दाम इतना कम कर दिया है कि जब काम करने की जिम्मेदारी उन्हें मिलेगी तो फिर दाम उसूलना मुश्किल हो जाएगा . बताया गया है कि खदान में बालू का दाम ₹20 कर दिया गया है जिसके चलते पांच सैकडा बालू केवल आठ से दस हजार में मिलने लगी है. जबकि पंचायत से हो रही है कि निकासी इसी बालू का दाम 18 से ₹20000 वसूले जा रहे थे.
मांग को सुनकर ग्रामीण हो रहे परेशान
बालू की खदानों में काम करने के लिए जिस तरह से सफेदपोश धारी दबाव बना रहे हैं मजदूरों द्वारा की जा रही मांग को सुनकर स्थानीय गांव के लोग हैरान और परेशान हैं उनके अनुसार पूर्व के ठेकेदारों द्वारा वाहन में रेत भरने के लिए 600 से ₹800 का पारिश्रमिक दिया जाता था वर्तमान समय में ठेकेदारों के इशारे पर वहीं मजदूर 4 से ₹5000 की मांग कर रहे हैं इतना ही नहीं सफेदपोश धारी गांव में पहुंचकर ठेकेदार का विरोध करने के लिए जवाब ही डाल रहे हैं विरोध न करने की स्थिति में अभद्रता गाली गलौज की जाने लगती है जिसके कारण गांव के लोगों को अच्छा खासा परेशान होना पड़ रहा है.
हर हाथ को काम देने की योजना
बालू की खदानों मैं काम करने के लिए जिस गांव में खदान मंजूर है उस गांव के लोगों को काम देने की तैयारी एक निजी कंपनी कर रही है कंपनी के डायरेक्टर का कहना है कि हर खदान में देर से 200 मजदूरों को काम दिया जा रहा है उनकी मंशा है कि जिस गांव की खनिज संपदा की निकासी की जा रहे हैं उस गांव के लोगों को काम दिया जाए लेकिन बाहरी तत्वों द्वारा स्थानी मजदूरों को काम देने में बाधक बन गया बाहर से किराए पर मजबूर ना कर खदान के पास बैठा देते हैं जो काम नहीं करने दे रहे हैं.