भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के प्रसिद्धि प्राप्त गुरु तथा नर्तक शंभू महाराज 16 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पैदा हुए थे. शंभू महाराज की मृत्यु 04 नवंबर 1970 के दिन हुई थी.
शंभू महाराज का वास्तविक नाम ‘शंभूनाथ मिश्रा’ था. नृत्य के संग ठुमरी गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था.
लखनऊ घराने के प्रसिद्ध नर्तकों में उनका विशिष्ट स्थान रहा है. नृत्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें ‘नृत्य सम्राट’ की उपाधि से विभूषित किया गया था. शंभू महाराज के पिता कालका प्रसाद तथा पितामह दुर्गा प्रसाद के साथ अग्रज अच्छन महाराज भी अपने समय के श्रेष्ठ नृत्यकारों में से एक थे. इस प्रकार नृत्य कला उन्हें विरासत में मिली थी.
शंभू महाराज को कत्थक नृत्य की शिक्षा सबसे पहले उनके चाचा बिन्दादीन महाराज से और बाद में बड़े भाई अच्छन महाराज से मिली. नृत्य के अतिरिक्त उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का भी अध्ययन किया. विशेष रूप से ठुमरी का. ठुमरी गायिकी की शिक्षा उन्होंने मुईनुद्दीन खाँ के अनुज रहीमुद्दीन खाँ से प्राप्त की. इस प्रकार शंभू महाराज नृत्य व संगीत के गायन दोनों विधाओं में पारंगत थे.
नृत्य में भाव-प्रधानता के पक्षकार
शंभू महाराज नृत्य को लय से अधिक भाव-प्रधान के महत्त्व को स्वीकार करते थे. उनकी मान्यता थी कि- “भाव-विहीन लय-ताल प्रधान नृत्य मात्र एक चमत्कारपूर्ण तमाशा हो सकता है, नृत्य नहीं हो सकता.” नृत्य कौशल के प्रदर्शन में शंभू महाराज शोक, आशा, निराशा, क्रोध, प्रेम, घृणा आदि भावों को चमत्कारपूर्ण दिखाते थे. बहुत-से प्राचीन बोल, परण तथा टुकड़े उन्हें कंठस्य थे.
नृत्य के संग ठुमरी गाकर उसके भावों को विभिन्न प्रकार से इस अदा से शंभू महाराज प्रदर्शित करते थे कि दर्शक मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था. गायन में ठुमरी के साथ दादरा, गज़ल व भजन भी बड़ी तन्मयता से श्रोताओं को सुनाते थे.
पुरस्कार व सम्मान
शंभू महाराज को 1967 में ‘संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप’ से तथा 1956 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया था.

