हिन्दी भाषा के कवि और लेखक हरिवंश राय श्रीवास्तव “बच्चन” का जन्‍म इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में 27 नवंबर 1907 को हुआ था.

इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था. इनको बाल्यकाल में ‘बच्चन’ कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चा’ या ‘संतान’ होता है. बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए. इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था. उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएचडी पूरी की. 

मात्र 19  वर्ष की आयु में हरिवंश राय का विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय 14  वर्ष की थीं लेकिन 1936  में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई. पाँच साल बाद 1941  में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं. इसी समय उन्होंने ‘नीड़ का पुनर्निर्माण’ जैसे कविताओं की रचना की. तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए. अमिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं. तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय किया है.

उनकी कृति दो चट्टानें को 1968 में हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी नवाजा गया. बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था. बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976  में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

हरिवंश राय बच्चन की गिनती हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में की जाती है.

हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला उनकी काव्य प्रतिभा का एक बेहतर प्रमाण है.

बच्चन की यह कृति जग प्रसिद्ध है. इसकी कुछ पंक्तियां तो जीवन के रहस्य को बहुत ही सरल शब्दों में पाठकों के सामने रखती हैं.

हरिवंश राय बच्‍चन की स्‍मृति पर मधुशाला के कुछ पक्‍तियां पढ़ें-

मदिरालय जाने को घर से

चलता है पीने वाला,

‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस

में है वह भोला-भाला,

अलग­अलग पथ बतलाते सब

पर मैं यह बतलाता हूँ –

‘राह पकड़ तू एक चला चल,

पा जाएगा मधुशाला

उर का छाला…

लाल सुरा की धार लपट-सी

कह न इसे देना ज्वाला,

फेनिल मदिरा है, मत इसको

कह देना उर का छाला,

दर्द नशा है इस मदिरा का

विगत स्मृतियाँ साकी हैं;

पीड़ा में आनंद जिसे हो,

आए मेरी मधुशाला

अंगूर लताएँ …

बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,

बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,

बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,

बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला

मस्जिद-मन्दिर…

मुसलमान और हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,

एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,

दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!

साकी बालाएँ…

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,

ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,

मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,

किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला.

ठोकर खाकर…

ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,

दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला.

बहलाता प्याला…

यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,

यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,

हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,

मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला.

महल ढहे…

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,

कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!

पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,

कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!

सुखद स्मृति है…

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,

यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,

किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,

नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला.

मेरे साकी में…

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,

मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,

मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,

जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला.

सदा उठाया है…

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,

कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,

मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,

विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला.

तर्पण-अर्पण करना…

पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला

बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला

किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी

तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला.