नजरिया. पश्चिम बंगाल में जो कुछ चल रहा है, वह प्रजातंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. विधानसभा चुनाव करीब हैं और ज्यादातर राजनेता नैतिक सियासी सीमा-रेखा से बहुत आगे निकल चुके हैं.

दलबदल के कागजी कानूनों को एक ओर पटक दिया गया है और सियासी बेशर्मी के साथ खुल्लेआम दलबदल जारी है.

बड़ा सवाल यह है कि जो लोग अब तक सत्ता में थे, उनके लिए अचानक अपनी पार्टी खराब कैसे हो गई और जिनके सियासी पत्थरों से कार्यकर्ता घायल होते रहे, दलबदल के बाद वे नेता समर्पित मूल कार्यकर्ताओं से भी ज्यादा प्यारे कैसे हो गए?

सीधा सियासी हिसाब यही है कि सबको सत्ता चाहिए, इसलिए विरोधी का भ्रष्टाचार, अपने दल में शामिल होते ही शिष्टाचार में बदल जाता है!

खबरें हैं कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने शनिवार को नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की, जिसके बाद राज्यपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बंगाल में सुरक्षा हालात खतरे में है? यहां अल कायदा ने पांव पसार लिए हैं? जगह-जगह बम बनाने की फैक्ट्रियां खुल गई हैं? प्रदेश की पुलिस का राजनीतिकरण हो गया है?  मैं जानना चाहता हूं कि वहां का प्रशासन क्या कर रहा है.?

अब भी बड़ा सवाल यही है कि यह सब अचानक अब कैसे सामने आ रहा है? इतने दिनों से सब कहां थे?

जाहिर है, विभिन्न बयानों के अर्थ अलग हैं, भावार्थ अलग हैं!

सियासी सयानों का मानना है कि इस बार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि सियासी झटका किसे लगता है? ममता बनर्जी का राजनीतिक गढ़ ढह जाएगा या बीजेपी के सत्ता के सपने बिखर जाएंगे!

बीजेपी में व्यक्तिवादः क्या मोदी-मोदी की तर्ज पर आगे बढ़ेगा राजे-राजे सियासी अभियान?

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