यह कहानी है हिंसा का रास्ता छोड़ कर शांति का मार्ग चुनने वाले रामपोदो लोहरा की. कुछ साल पहले तक वह घर से दूर रह कर पुलिस के लिए चुनौती बने थे. उनके हाथ कभी पुलिस जवानों के शरीर पर गोलियां दागने के लिए उठते थे, लेकिन आज सिलाई मशीन पर इनकी उंगुलियां जवानों के बदन को ढंकने के लिए चल रही हैं. ऑपरेशन 'नई दिशाएं' के तहत पुलिस के सामने साल 2013 में हथियार डालने वाले रामपोदो को आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति के तहत कई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं.

इसी के मद्देनजर रामपोदो लोहरा को उनके हुनर के अनुसार पुलिस की ओर से रांची में जगह उपलब्ध कराई गई, जहां वे पुलिस जवानों के लिए भी वर्दी और कपड़े की सिलाई करते हैं. पुलिस की वर्दियां सिलने में रामपोदो का कोई सानी नहीं है. हालांकि, सभी को यह जानकर हैरत होती है कि आज जितनी तेजी से इनके हाथ सिलाई मशीन पर चलते हैं ,कभी यही हाथ उससे भी ज्यादा तेजी से गोलियां चलाते थे.

कभी बिना सोचे-समझे नक्सली बन बैठा रामपोदो आज पुलिसकर्मियों का चहेता है. कुछ साल पहले तक वह कुंदन पाहन दस्ते का सक्रिय सदस्य था और नक्सलियों के लिए कपड़े सिलता था. लेकिन, समय के साथ जैसे ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह मुख्यधारा मे लौट आया. अब वह रांची के पुलिसलाइन में पुलिस के जवानों के लिए वर्दी सिल रहा है. रामपोदो को अब अच्छाई और बुराई के बीच का फर्क समझ आ ही गया है. परिवार की अहमियत भी समझ आने लगी है.

खुली हवा मे सांस लेना और समाज में मिलजुल कर रहना रामपोदो को भाने लगा है. वे बताते हैं कि कई बार जंगल में पुलिस ने उनकी सिलाई मशीन को जब्त कर लिया, जबकि कई बार मुठभेड़ में उनकी जान बाल-बाल बची. जिसके बाद मुख्य धारा में वापस लौटने का फैसला लिया और वे अपने परिवार के साथ रह कर आम नागरिक की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वे भटके हुए युवाओं से भी अपील करते हैं कि सभी समाज की मुख्य धारा में लौट आएं. नक्सली दस्ते में रहने के दौरान इधर-उधर भागने के सिवा कुछ नहीं मिलता, परिवार भी पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है.