नजरिया. कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए दिल्ली बॉर्डर पर किसान का विरोध प्रदर्शन जारी है. इस बीच, सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों और स्थानीय लोगों के बीच शुक्रवार दोपहर पत्थरबाजी की खबरें हैं. इस दौरान हालात को काबू में करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े.
लेकिन, असली सवाल बड़े गंभीर हैं!
पहला तो यह कि- आंदोलनकारी अपनी मर्जी से नहीं, सरकार के रोकने केे कारण दिल्ली सीमा पर हैं, उन्हें दिल्ली केे मैदान में आंदोलन की इजाजत क्यों नहीं दी गई? लिहाजा, स्थानीय लोेगों को जो परेशानी हो रही है, उसका असली कारण सरकार की सियासी सोच और तौर-तरीका है.
दूसरा- क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि अहिंसक आंदोलन करना किसानों का अधिकार है, इसलिए या तो सरकार आंदोलनकारियों को दिल्ली में जगह दे या फिर हमलोें से किसान आंदोलन की रक्षा करे. किसानों पर हमला करने वाले आंदोलन स्थल के करीब कैसे पहुंचे, जबकि कोई भी आंदोलन स्थल तक आसानी से पहुंच नहीं सकता है. इसका जवाब कौन देगा?
देश के प्रमुख न्यूज चैनल का कहना है कि तथाकथित स्थानीय लोगों और प्रदर्शनकारियों के बीच पथराव करीब एक बजे शुरू हुआ, जब सिंघु बॉर्डर पर पहुंचे लोगों को प्रदर्शन स्थल पर जाने की अनुमति दी गई. प्रदर्शनकारी किसानों और इन लोगों के बीच सिर्फ एक मजबूत बॉर्डर बचा रह गया था. ऐसे में सवाल उठता है कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद खुद को लोकल बताने वाले लोगों को इतने आगे कैसे आने दिया गया, जबकि मीडिया की गाड़ी और दिल्ली सरकार के टैंकरों को भी एक किलोमीटर पहले ही रोक दिया जाता है.
सिंघु बॉर्डर पहुंचे स्थानीय लोगों ने पहले नारेबाजी की और कुछ समय बाद किसानों की वॉशिंग मशीनों को तोड़ना शुरू कर दिया. खुद को लोकल बताने वाले लोगों ने कुछ टेंट भी तोड़ दिए. जिसके बाद स्थिति अनियंत्रित हो गई. दोनों पक्षों की ओर से पत्थरबाजी की गई. स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े तब कहीं जाकर स्थिति पर काबू किया जा सका.
सिंघु बार्डर पर चल रहे प्रदर्शन को देखते हुए धरना स्थल तक पैदल जाने पर भी पूरी तरह रोक है. भारी सुरक्षा बल की तैनाती है. दिल्ली पुलिस के अलावा सीआरपीएफ, बीएसफ, आएएफ की भी जबरदस्त तैनाती है. प्रदर्शन स्थल तक जाने वाले तमाम रास्तों को भी पूरी तरह सील कर दिया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि ये लोग इतने आगे तक कैसे आ गए?
जाहिर है, किसानों को यहां से हटाने के लिए सबकुछ हो रहा है, लेकिन क्या इसमें कामयाबी मिलेगी? शायद नहीं, क्योंकि किसान आंदोलन स्वप्रेरित है, जबकि किसान आंदोलन का विरोध तैयार किया गया है!
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