प्रदीप द्विवेदी. कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर जहां किसान अड़े हुए है, तो सरकार कुछ संशोधनों के लिए तो राजी है, लेकिन कानून रद्द नहीं करेगी, क्यों?
किसानों की आशंका-
किसानों को कृषि क़ानूनों को लेकर सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उन्हें मोदी सरकार की नीयत पर भरोसा नहीं है. उनको आशंका है कि अभी भले ही आंदोलन के मद्देनज़र क़ानूनों में कुछ संशोधन हो जाएंगे और एमएसपी पर भी लिखित आश्वासन मिल जाएंगे, परन्तु आंदोलन बिखर जाने के बाद यदि सरकार ने फिर चुपचाप अपनी मर्जी के संशोधन कर दिए, तो फिर से किसानों को आंदोलन के लिए जुटाना संभव नहीं होगा. सरकार केवल एक बार जैसे-तैसे आंदोलन खत्म करना चाहती है. यही वजह है कि किसान संशोधन नहीं, कानून समाप्त करवाना चाहते हैं.
सरकार की समस्या-
मोदी सरकार के सामने कई समस्याएं हैं. एक तो कानून बनाने की कामयाबी जुगाड़ के बहुमत से हासिल हुई है, लिहाजा एक बार कानून रद्द हो गया तो सरकार फिर से अपनी मर्जी का कानून कैसे बनाएगी? दूसरा- मोदी सरकार की रीति-नीति एक्सपोज हो चुकी है और बहुमत के नज़रिए से इस वक्त संसद में अधिकतम पर है, इसलिए उसे जो भी करना है, अभी ही करना होगा, क्योंकि कल बहुमत हो-न-हो!
इनके अलावा, मोदी सरकार की जो बोल्ड पाॅलिटिकल इमेज बनाई गई है, उसका क्या होगा, यदि कृषि कानून रद्द कर दिए गए.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि- इन कृषि क़ानूनों से जिन्हें लाभ मिलना है, यदि कानून ही नहीं रहे, तो वे भविष्य में मोदी सरकार पर भरोसा कैसे करेंगे?
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