प्रदीप द्विवेदी. कभी दलबदल को सियासी अपराध माना जाता था और इस आयाराम-गयाराम सियासी प्रथा को समाप्त करने के लिए दलबदल कानून भी बना था, लेकिन कानूनों की तोड़ जानने वाले राजनेताओं ने इसे बेअसर कर दिया है.
इतना ही नहीं, अब तो दलबदल जैसा सियासी अपराध, राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर प्रतिष्ठित होने लगा है.
दलबदल किसी राजनीतिक दल के लिए तो उपलब्धि पूर्ण हो सकता है, परन्तु प्रजातंत्र के लिए तो यह अपराध ही रहेगा.
सियासी जोड़-तोड़ और दलबदल का जो खेल कई राज्यों में खेला गया वह अब पश्चिम बंगाल में जारी है.
टीएमसी के जो नेता कल तक बीजेपी के सियासी निशाने पर थे, भ्रष्ट थे, वे दलबदल करने के बाद भ्रष्टाचार मुक्त हो गए हैं.
और, जो नेता लंबे समय से टीएमसी के सियासी सेनापति थे, अचानक चुनाव के मौके पर बीजेपी के राजनीतिक योद्धा बन गए हैं.
मतलब साफ है, सत्ता की चाहत में अब सियासी सिद्धांत महत्वहीन हो गए हैं.
खबर है कि टीएमसी के पूर्व नेता राजीब बनर्जी, विधायक बैशाली डालमिया, प्रबीर घोषाल, रुद्रनील घोष और रथिन चक्रवर्ती ने अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात की और इसके बाद ये सभी बीजेपी में शामिल हो गए. इस दौरान बीजेपी नेता मुकुल रॉय और बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय भी मौजूद रहे.
उल्लेखनीय है कि राजीब बनर्जी ने हाल ही में ममता सरकार में मंत्री पद छोड़ा था और उन्होंने स्पीकर से मुलाकात करके अपना इस्तीफा भी सौंप दिया था.
उधर, विधायक वैशाली डालमिया को टीएमसी ने पार्टी विरोधी गतिविधि के चलते बाहर का रास्ता दिखा दिया था, जबकि प्रबीर घोषाल भी टीएमसी से इस्तीफ़ा दे चुके हैं.
याद रहे, इससे पहले भी टीएमसी के कई नेता बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं तथा कुछ और नेता भी बीजेपी प्रवेश की प्रतीक्षा में हैं.
इस राजनीतिक बदलाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में सरकार तो टीएमसी की ही बनेगी, चाहे ममता बनर्जी की टीएमसी की या टीएमसी के पाॅलिटिकल डीएनए युक्त बीजेपी की, लेकिन यह देखना और भी दिलचस्प रहेगा कि बीजेपी के जीत जाने पर मुख्यमंत्री का पद टीएमसी से आए किसी नए भाजपाई को मिलेगा या फिर किसी मूल भाजपाई को मिलेगा!
अभिमनोजः पीएम मोदी, महात्मा गांधी की विचारधारा को प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं!