प्रदीप द्विवेदी. पश्चिम बंगाल में टीएमसी से नाराज नेता लगातार बीजेपी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और बीजेपी भी उनके स्वागत में रेड कार्पेट बिछाती जा रही है, क्योंकि बीजेपी को भरोसा है कि इन्हीं दलबदलुओं के दम पर ही बीजेपी को सत्ता मिलेगी, लेकिन इसके पीछे जो सियासी नैतिकता के सवाल खड़े हो रहे हैं, उनका जवाब कौन देगा?
सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर है कि- किसके नाम का घोष होगा? कौन बनेगा सीएम पद का अधिकारी?
इस वक्त पश्चिम बंगाल में दो तरह के भाजपाई हैं, एक- जो शुरू से बीजेपी के साथ हैं, लंबे समय से टीएमसी सरकार से संघर्ष कर रहे हैं और दो- जो लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने के बाद अब टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आ रहे हैं.
बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व मूल भाजपाइयों को सियासी हक देगा या नए भाजपाइयों का साथ देगा.
अब तक तो बीजेपी सीएम फेस के मुद्दे पर खामोश है, लेकिन गुजरते समय के साथ यह चुनौती बड़ी हो जाएगी, क्योंकि मूल भाजपाई अपना हक कैसे छोड़ेंगे और टीएमसी से बीजेपी में आए भाजपाइयों को यदि सत्ता सुख नहीं मिलता है, तो दलबदल का क्या फायदा?
क्या दलबदल जैसे सियासी अपराध को राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर प्रतिष्ठित करना सही है?