प्रदीप द्विवेदी. आप संघ की रीति-नीति से सहमत हों या नहीं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि- आजादी के बाद जितने भी बड़े जनहित के आंदोलन हुए हैं, उनमें संघ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

आपातकाल के खिलाफ सियासी संग्राम में संघ के समर्पित संघर्ष का ही परिणाम था कि देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी.

अब तक ऐसे जितने भी आंदोलन हुए हैं, वे कांग्रेस के खिलाफ हुए हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब पीएम मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध हो रहा है, लिहाजा संघ समर्थकों के लिए यह बड़ा प्रश्न है कि वे पीएम मोदी सरकार के साथ खड़े रहेंगे, मौन रहेंगे या विरोध करेंगे?

यह सवाल केवल किसान आंदोलन का नहीं है, यह भी तय किया जाना है कि- क्या संघ, मोदी सरकार की मजदूर नीति, स्वदेशी नीति, चीन नीति, विभिन्न एक्ट के तहत भारी जुर्माना आदि से भी पूरी तरह से सहमत है?

क्या संघ को समर्पित प्रमुख नेताओं- लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी सहित अनेक नेताओं के सियासी कद कम करने के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रयासों से भी संघ सहमत है? सत्ता के लिए बीजेपी के कांग्रेसीकरण से भी क्या संघ सहमत है?

आपातकाल के बाद गठित जनता पार्टी में सभी दलों के नेता थे, जनता पार्टी सत्ता में भी थी, लेकिन सियासी सिद्धांत, विचारधारा और दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर जनता पार्टी से अलग भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ, बीजेपी, दो सांसदों से लेकर पूर्ण बहुमत तक पहुंची, लेकिन मोदी टीम बीजेपी को फिर से जनता पार्टी बना रही है, क्या इससे संघ सहमत है?

खबरें हैं कि केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ दो महीने से भी ज्यादा वक्त से जारी आंदोलन के मद्देनज़र आरएसएस नेता रघुनंदन शर्मा ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर निशाना साधा है और कहा है कि सत्ता का अहंकार उनके सिर चढ़ गया है.

एमपी से बीजेपी के राज्यसभा सांसद रह चुके शर्मा का सुझाव था कि तोमर को राष्ट्रवाद मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए.

आरएसएस नेता शर्मा ने सोशल मीडिया पोस्ट की शुरुआत में लिखा कि- नरेंद्र जी आप सरकार का अभिन्न और अहम हिस्सा हैं. हो सकता है कि आपकी मंशा किसानों की मदद करने की हो, लेकिन अगर कुछ लोग नहीं चाहते कि उनकी मदद की जाए तो फिर ऐसी भलाई करने का क्या फायदा? 

अगर आपको लगता है कि आप अपनी मेहनत का फल पा रहे हैं तो यह आपका भ्रम है. आज सत्ता का अहंकार आपके सिर पर चढ़ गया है. आप जनादेश के खिलाफ क्यों हो रहे हैं? हम कांग्रेस की सभी सड़ी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं, जो हमारे हित में नहीं हैं. घड़े से पानी की बूंदें जब टपकती हैं तो इससे घड़ा खाली हो जाता है. ऐसा ही जनादेश के साथ भी होता है. राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए काम करें, वरना हमें पछतावा होगा.

उन्होंने सियासी आईना दिखाते हुए यह भी बताया कि- कैसे हजारों राष्ट्रवादियों ने आज की राष्ट्रवादी सरकार की खातिर अपना जीवन समर्पित कर दिया! 

पश्चिम बंगालः किसके नाम का घोष होगा? कौन बनेगा सीएम पद का अधिकारी?
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