नज़रिया. राकांपा अध्यक्ष शरद पवार का कहना है कि मशहूर क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को किसानों के बारे में बोलने के दौरान काफी सावधानी बरती चाहिए.
खबरें हैं कि अमेरिकी गायिका रिहाना और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग सहित कुछ विदेशी शख्सियतों के प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में ट्वीट के बाद प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और लोकप्रिय सिंगर लता मंगेशकर सहित विभिन्न हस्तियों ने सोशल मीडिया पर इंडिया टुगैदर और इंडिया अगेन्स्ड प्रोपेगैंडा हैश टैग से सरकार के रुख के समर्थन में ट्वीट किए थे.
इन हस्तियों की ओर से किसान आंदोलन के संबंध में प्रतिक्रिया दिए जाने के प्रेस-प्रश्न पर शरद पवार का कहना था कि मैं सचिन तेंदुलकर को सुझाव दूंगा कि उन्हें अन्य क्षेत्रों से जुड़े मुद्दों पर बयान देने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए.
यही नहीं, उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि केंद्र सरकार किसानों को खालिस्तानी और आतंकवादी कहकर आंदोलन को बदनाम कर रही है, जबकि ये प्रदर्शनकारी किसान हैं जोकि हमारे देश का पेट भरते हैं, इसलिए, इन्हें खालिस्तानी या आतंकवादी कहना उचित नहीं है.
याद रहे, सचिन तेंदुलकर ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि भारतीय संप्रभुता से किसी भी तरह का समझौता नहीं होगा और विदेशी ताकतें इससे दूर रहें.
बहरहाल, शरद पवार की सलाह इसलिए महत्वपूर्ण है कि सचिन केवल स्टार क्रिकेटर नहीं हैं, बल्कि उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भी प्राप्त है, लिहाजा उन्हें सियासी रंग लिए विवादास्पद मुद्दों पर सोच-समझ कर ही बयान देने चाहिएं!
विपक्ष के लिए संजीवनी साबित हो रहा है.... मोदी-हठ!
तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे 40 से अधिक किसान संगठनों के आव्हान पर देशभर में तीन घंटे का चक्का जाम रहा.
दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चक्का जाम नहीं बुलाया गया था.
खबरें हैं कि राजधानी दिल्ली में शहीद पार्क के पास प्रदर्शन के दौरान करीब 50 लोगों को हिरासत में लिया गया, वहीं दिल्ली मेट्रो ने दस मेट्रो स्टेशनों के दरवाजें चक्का जाम के मद्देनजर बंद रखे गए थे. चक्का जाम का सबसे अधिक असर हरियाणा और पंजाब में नजर आया, जहां अधिकतर राज्य और राष्ट्रीय राजमार्ग बंद रहे.
उल्लेखनीय है कि 26 जनवरी 2021 की ट्रैक्टर परेड के बाद ये किसान संगठनों का पहला बड़ा प्रदर्शन था.
बहरहाल, एक राज्य- पंजाब से शुरू हुए इस आंदोलन का असर अब देश के अनेक राज्यों में देखा जा सकता है और गुजरते समय के साथ, इसके और प्रभावी होने के संकेत हैं.
सियासी सयानों का मानना है कि आंदोलन को लेकर जो मोदी सरकार का हठ है, वह विपक्षी दलों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है. यदि समय रहते किसान आंदोलन का उचित समाधान नहीं निकाला गया तो इस सरकारी हठ की सियासी सजा बीजेपी संगठन को मिलेगी!