इस्लामाबाद. पाकिस्तान को कंगाल बनाने पर तुले प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देश के नागरिकों को कर्ज के जाल में फंसाते जा रहे हैं. हाल में ही पाकिस्तान की संसद में इमरान खान सरकार ने कबूल किया है कि अब हर पाकिस्तानी के ऊपर अब 1 लाख 75 हजार रुपये का कर्ज है. इसमें इमरान खान की सरकार का योगदान 54901 रुपये है, जो कर्ज की कुल राशि का 46 फीसदी हिस्सा है. कर्ज का यह बोझ पाकिस्तानियों के ऊपर पिछले दो साल में बढ़ा है. यानी जब इमरान ने पाकिस्तान की सत्ता संभाली थी तब देश के हर नागरिक के ऊपर 120099 रुपये का कर्ज था.
देश के कानून का भी इमरान सरकार ने किया उल्लंघन
वित्त वर्ष 2020-21 के राजकोषीय नीति पर बयान देते हुए पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय ने यह भी माना है कि इमरान खान सरकार राजकोषीय घाटे को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के चार फीसदी तक करने में विफल रही है. इस तरह सरकार ने 2005 की राजकोषीय जिम्मेदारी और ऋण सीमा (FRDL) अधिनियम का उल्लंघन किया है. ऐसे में पाकिस्तान का कुल रोजकोषीय घाटा जीडीपी का 8.6 फीसदी रहा है, जो एफआरडीएल अधिनियम कानून की सीमा से दोगुने से भी अधिक है.
क्या है पाकिस्तान का FRDL कानून
पाकिस्तान ने देश के ऊपर बढ़ते विदेशी कर्ज से निपटने के लिए की राजकोषीय जिम्मेदारी और ऋण सीमा (FRDL) अधिनियम को साल 2005 में पारित किया था. इसमें प्रावधान किया गया था कि राजकोषीय घाटा देश की अर्थव्यवस्था से चार फीसदी से ज्यादा न हो. इसमें यह भी कहा गया था कि राजकोष को लेकर सरकार की सभी नीतियों को गहराई से अध्ययन भी किया जाए.
पाक सरकार ने अवाम से छिपाई जानकारी
पाकिस्तान की संसद में यह रिपोर्ट गुरुवार को पेश की गई थी. पाकिस्तान के इतिहास में इस रिपोर्ट को सबसे कम जानकारी वाला नीतिगत बयान बताया जा रहा है. अधिकारियों ने कहा कि ऋण नीति कार्यालय ने वित्त मंत्रालय को नीति का एक विस्तृत मसौदा पेश किया था. हालांकि, उन्हें आदेश दिया गया कि इस रिपोर्ट को शीर्षक सहित केवल 11 पन्नों में ही समेटा जाए.
इमरान खान ने पाकिस्तान पर लादे अरबों डॉलर के कर्ज
दो वर्षों के राजकोषीय नीति विवरण में बताया गया है कि इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सरकार के कार्यकाल के दौरान लोगों के ऊपर 54,901 रुपये का कर्ज बढ़ा है. जून 2018 में पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक ऋण 120,099 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये था. इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार के पहले साल कर्ज की यह राशि 28 फीसदी बढ़कर 33,590 ट्रिलियन रुपये हो गई, जबकि उसके अगले साल यह कर्ज 14 फीसदी और बढ़ गया.