यूपी में इस बार होने जा रहे त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण को तय करने के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने 2015 के पंचायत चुनाव में तत्कालीन सपा सरकार के फैसले को पलट दिया है. इस बारे में मंगलवार को पंचायतीराज विभाग की ओर से लाये गये प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी गई.

2015 के पंचायत चुनाव में तत्कालीन सपा सरकार ने उत्तर प्रदेश पंचायतीराज (स्थानों और पदों का आरक्षण और आवंटन) नियमावली 1994  में संशोधन कर ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के पूर्व में हुए आरक्षण को शून्य कर दिया था. उस चुनाव में 71 जिलों में ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन हो गया था मगर चार जिलों गोण्डा, सम्भल, मुरादाबाद और गौतमबुद्धनगर में यह पुर्नगठन कानूनी अड़चनों की वजह से नहीं हो पाया था.

नियमावली के यह प्रावधान अभी तक लागू थे, जिनकी वजह से इन चार जिलों में फिर से आरक्षण शून्य कर नया आरक्षण करना पड़ता और बाकी के 71 जिलों में 2015 के चुनाव में हुए चक्रानुक्रम आरक्षण के अगले क्रम का आरक्षण होता. इस तरह से अगर यह प्रावधान लागू रहते तो इस बार के पंचायत चुनाव में दो तरह के आरक्षण लागू होते, जिससे अराजकता की स्थिति पैदा होती. इसीलिए इन सभी प्रावधानों को नियमावली से हटाने का फैसला मंगलवार को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन के जरिये किया गया. अब आरक्षण का जो नया फार्मूला लागू होगा वह सभी 75 जिलों में एक समान होगा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विभाग को निर्देश दिए हैं कि कोई भी पंचायत जातिगत आरक्षण से वंचित नहीं रहने पाए. पंचायतीराज विभाग के सूत्रों के हवाले से ‘हिन्दुस्तान’ को मिली जानकारी के अनुसार इस बार के चुनाव के लिए जो आरक्षण फार्मूला लागू किया जाएगा, उसमें अब कोई भी पंचायत जातिगत आरक्षण से वंचित नहीं रहेगी. अब प्रदेश के सभी 75 जिलों में एक साथ पंचायतों के वार्डों के आरक्षण की नीति लागू होगी. इसके साथ ही इस बार आरक्षण तय करते समय इस बात पर भी गौर किया जाएगा कि वर्ष 1995 से अब तक हुए पांच त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ऐसी कौन सी पंचायतें हैं, जिनमें ग्राम प्रधान,क्षेत्र पंचायत प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष के पद अभी तक जातिगत आरक्षण से वंचित रह गये हैं.

वर्ष 1995 में पहली बार त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था और उसमें आरक्षण के प्रावधान लागू किए गए थे. मगर तब से अब तक हुए पांच पंचायत चुनावों में प्रदेश की करीब 18 हजार ग्राम पंचायतें, करीब 100 क्षेत्र पंचायतें और लगभग आधा दर्जन जिला पंचायतों में क्रमश: ग्राम प्रधान, क्षेत्र व जिला पंचायत अध्यक्ष के पद आरक्षित होने से वंचित रह गए.

प्रदेश सरकार ने निर्णय किया है कि इस बार के चुनाव के लिए आरक्षण तय करते समय सबसे पहले यह देखा जाए कि वर्ष 1995 से अब तक के पांच चुनावों में कौन सी पंचायतें अनुसूचित जाति (एससी) व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित नहीं हो पाई हैं. इन पंचायतों में इस बार प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण लागू किया जाए. नए फैसले से अब वह पंचायतें जो पहले एससी के लिए आरक्षित होती रहीं और ओबीसी के आरक्षण से वंचित रह गईं, वहां ओबीसी का आरक्षण होगा और जो पंचायतें अब तक ओबीसी के लिए आरक्षित होती रही हैं वह अब एससी के लिए आरक्षित होंगी. इसके बाद जो पंचायतें बचेंगी, वह आबादी के घटते अनुपात में चक्रानुक्रम के अनुसार सामान्य वर्ग के लिए होंगी. इन पांच चुनावों में महिलाओं के लिए तय 33 प्रतिशत आरक्षण का कोटा तो पूरा होता रहा, मगर एससी के लिए 21 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे के हिसाब से कई ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायतें आरक्षित नहीं हो पाईं.