‘नाड़ी’ शब्द के यूं तो कई अर्थ हैं, किन्तु ज्योतिष शास्त्र में नाड़ी का अर्थ ‘आधा मुहूर्त’ अर्थात 24 मिनट का समय माना जाता है. एक महूर्त का काल 48 मिनट के बराबर माना जाता है. नाड़ी शब्द समय वाचक होने के बाद भी ज्योतिष में एक विधा या पद्धति के रूप में जाना जाता है. उत्तर भारत में जिस प्रकार भृगु संहिता, रावण संहिता या अरुण संहिता आदि ग्रन्थ हैं जो किसी जातक के भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों काल के विषय में फलकथन करते हैं, उसी प्रकार दक्षिण भारत में नाड़ी ग्रंथों का प्रचार है. नाड़ी ग्रन्थ ऋषियों या देवताओ के नाम से लिखे गए हैं जैसे अगस्त्य नाड़ी, शिव नाड़ी, वशिष्ठ नाड़ी, ध्रुव नाड़ी, भृगु-नंदी नाड़ी, शुक्र नाड़ी, सप्तऋषि नाड़ी, भुजंदर नाड़ी, चंद्र-कला नाड़ी इत्यादि. इन नाड़ी ग्रंथों में चमत्कारिक रूप से मनुष्य के भूत और भविष्य का वृतांत लिखा रहता है.
किन्तु नाड़ी ग्रन्थ भी भृगु संहिता की भांति मुख्यतया फलादेश प्रधान है, हेतु प्रधान नहीं. अर्थात इन नाड़ी ग्रंथों में अमुक घटना क्यों और ज्योतिष के किस नियम के आधार पर हुई इसका उल्लेख नहीं मिलता. नाड़ी ग्रंथों के आधार पर फलादेश करने वाले आपके अंगूठे के निशान के आधार पर भोज-पत्र खोजकर आपके नाम, माता-पिता का नाम, माता-पिता जीवित हैं या नहीं, भाई-बहन की संख्या, विवाह और संतान, नौकरी या व्यसाय आदि के विषय में सामान्य फल कहते हैं.
इस सामान्य फल के ठीक निकलने के बाद विस्तृत भविष्यवाणियां की जाती हैं. ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार एक राशि के 30 अंशों में 150 नाड़ियां होती हैं. एक राशि 30 (अंश) x 60 (मिनट्स) = 1800 (सेकंड्स ) या कलाओं की होती है. अत: एक नाड़ी अंश 1800 सेकंड्स का 150 वां भाग यानि 12 सेकंड्स या 12 कला का होता है. प्रत्येक नाड़ी का फलादेश पूर्व और उत्तर भाग के आधार पर होता है, इसलिए नाड़ीशास्त्र के अनुसार जन्मसमय को 12 /2 यानि 6 सेकंड्स तक शुद्ध होना चाहिए. व्यवहारिक रूप से ऐसा असम्भव है क्योंकि किसी जातक का जन्म समय इतना त्रुटि रहित नोट किया जाए कि उसमे 6 सेकंड्स की भी अशुद्धि ना हो, किन्तु नाड़ी ज्योतिष में मात्र अंगूठे के निशान के चिह्न से जातक का फलित निकालकर उसका जन्म समय भी शुद्ध किया जा सकता है.
कुछ नाड़ी ग्रंथों में जातक की कुंडली से उसके सगे-सम्बन्धियों के विषय में भविष्यवाणी करने सम्बन्धी सूत्र दिए रहते हैं. जैसे तृतीय भाव जो सप्तम (पत्नी या पति ) के भाव से नवम है उससे जातक से ससुर के विषय में बताया जाता है. पंचम भाव जो एकादश से सप्तम है उससे जातक के बड़े भाई या बहन के जीवनसाथी के विषय में जाना जाता है. अष्टम भाव जो सप्तम (जीवनसाथी) के भाव से दूसरा है उससे जातक को ससुराल पक्ष से मिलने वाले धन के विषय में जाना जाता है.
नाड़ी ग्रंथों में किसी जातक के जीवनसाथी की जन्मराशि या जन्म लग्न क्या होगी इसके जानने के भी योग बताए गए हैं. नाड़ी ग्रंथों के अनुसार सप्तम भाव की राशि, सप्तमेश की राशि या सप्तमेश का नवांश अथवा उससे त्रिकोण की राशि जातक की पत्नी का जन्म लग्न और उसकी चंद्र राशि हो सकती है. इसी प्रकार पंचम भाव की राशि, पंचमेश की राशि या पंचमेश की सप्तांश राशि जातक के बच्चों की चंद्र राशि और लग्न की राशि हो सकती है.
साभार : Astro nirmal