नरेंद्र देवांगन. व्यस्तता और भागदौड़ के आज के जीवन में वैवाहिक जीवन का आनंद सहज ही खत्म हो सकता है पर यदि पति-पत्नी प्रयास करें तो दांपत्य में फिर से आनंद भर सकते हैं. इसके लिए अधिक समय की भी आवश्यकता नहीं होती. आवश्यकता होती है तो बस अटूट लगन और संकल्प की. यदि आपका वैवाहिक जीवन नीरस तथा आनंदहीन हो गया हो तो उसे फिर से सुखी और आनंददायक अवश्य बनाइए.
मिलकर हंसी-मजाक कीजिए:- अनेक पति-पत्नी शादी के शुरूआत दिनों में तो मिलजुल कर हंसी-मजाक करते और दांपत्य जीवन का आनंद लेते हैं पर बाद में वे सब कुछ भूल जाते हैं. तो भी हंसी-मजाक के संबंधों को दोबारा सशक्तता एवं नवीनता प्रदान की जा सकती है.
आपसी हंसी-मजाक पति-पत्नी में घनिष्ठता बढ़ाता है और दांपत्य जीवन को आनंददायक बनाता है. सर्वेक्षण के अनुसार जिन पति-पत्नी को एक जैसे चुटकुलों पर हंसी आती है उनमें मेलजोल बने रहने की संभावना अधिक होती है. वस्तुतः हास्य की सामान्य समझ से मूल्यों की समानता प्रतिबिंबित होती
है.
एक दूसरे को आकस्मिक उपहार दीजिए:- आकस्मिक उपहार देने का अर्थ यही है कि तन कहीं पर भी हो लेकिन मन हमेशा एक दूसरे के बहुत नजदीक है. हां, यह आवश्यक नहीं है कि पति-पत्नी जो उपहार दें वह कोई कीमती वस्तु हो. छोटे से गमले में खिला हुआ एक फूल भी आकस्मिक उपहार के रूप में दिया जा सकता है और यह छोटा-सा उपहार ही दांपत्य जीवन में मधुरता के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है.
नटखट बनिए:- याद कीजिए कि शादी के बाद के दिनों में आप पति-पत्नी कितने नटखट थे और एक दूसरे से अक्सर प्यार भरी छेड़खानी किया करते थे, केवल इस कारण कि आप एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे लेकिन धीरे-धीरे यह नटखटपन लुप्त होता गया और दांपत्य जीवन में नीरसता आती चली
गई.
वैवाहिक जीवन में प्रायः इस नटखपटपन का लोप ही सबसे पहले होता है. विवाह करने के बाद लोग स्वयं से कहते हैं कि ’बचपना छोड़ो, अपनी उम्र के अनुसार आचरण करो‘ या बच्चों के सामने ऐसी प्यार भरी शरारतें नहीं करनी चाहिए आदि पर चुलबुलेपन से भरपूर घनिष्ठता उम्र की सीमा से परे है.
और इस सबसे बढ़कर, दांपत्य क्रीड़ा तो स्पर्श के माध्यम से संबंधों को और भी सुदृढ़ बनाती है. स्नेहपूर्ण थपकी, आकस्मिक आलिंगन या छेड़छाड़ शब्दों की अपेक्षा इस बात को कहीं अधिक प्रभावी रूप से अभिव्यक्त कर सकती है कि ’मुझे तुम्हारे साथ बहुत अच्छा लगता है‘ या ’तुम्हारी समीपता की सुखद अनुभूति अवर्णनीय है.
यौन जीवन आनंददायक हो:- विवाहित जीवन के सब पक्षों में से यौन बहुत महत्वपूर्ण पक्ष है. यह एक ऐसा क्षेत्रा भी है जिसमें परिवर्तन ला पाना सबसे कठिन होता है.
सुखमय यौन क्रीड़ा हमेशा शयनकक्ष से ही शुरू नहीं होती. थपकी, स्पर्श, आलिंगन, प्रेमपूर्ण उद्गार सभी में यौन ध्वनि होती है और ये सभी यौन क्रीड़ा का आनंद बढ़ाते हैं. एक पति-पत्नी को नहाते हुए यौन क्रीड़ा करने में बहुत आनंद आता था तो एक पति-पत्नी ऐसे भी थे जिन्हें जलते हुए अलाव के समीप यौन कीड़ा करना सबसे अच्छा लगता था.
इस तरह यौन क्रीड़ा में विविधता के आधार पर भी आनंद लेने का अपना-अपना तरीका होता है और सभी पति-पत्नी एक ही ढर्रे पर चलकर यौन क्रीड़ा नहीं कर सकते.
कई पति-पत्नी रति क्रिया पर ही जोर देते हैं और अन्य आनंद प्रदान करने वाली विधियों की उपेक्षा कर देते हैं.
आनंददायक माहौल बनाइए:- दांपत्य जीवन का रसपूर्ण न होने का एक कारण यह भी है कि घर में आनंद देने वाली स्थिति नहीं बनाई जाती. शादी के प्रारंभिक दिनों में सिर्फ पति पत्नी होते हैं इसलिए आनंद देने वाला माहौल बना रहता है लेकिन बच्चे वगैरह होने के बाद अधिकतर पति-पत्नी के मन में यह धारणा बैठ जाती है कि अब घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं अतः इधर ही ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा. परिणामस्वरूप दोनों को चिंता हो जाती है जिससे आनंददायक माहौल खत्म हो जाता है.
जिम्मेदारियां बढ़ने का मतलब यह तो नहीं है कि खुशी और आनंद देने वाले प्रयासों को किनारे कर दिया जाए. याद रखिए व्यक्ति कितना भी व्यस्त हो, उसके ऊपर कितनी भी जिम्मेदारियां हों, अगर वह चाहे तो अपनी खुशी के लिए समय निकाल ही लेता है. पति रसोई में जाकर पत्नी का कुछ काम कर देते हैं और पत्नी पति के दफ्तर संबंधी या व्यवसाय संबंधी कुछ सहयोग कर देती है. इस तरह आपसी सहयोग आनंददायक हो जाता है.
पति-पत्नी को चाहिए कि वे घर में आनंददायक माहौल बनाकर रखें. जिम्मेदारियां या कार्य का बोझ तो सभी पर होता है लेकिन चिंता की रेखाएं हर किसी के माथे पर नहीं खींची जाती. जो पति-पत्नी कार्यों को बोझ की तरह नहीं करते, वे व्यस्तताओं के बावजूद घर में आनंददायक वातावरण निर्मित करते हैं.
वैवाहिक जीवन घनिष्ठता तथा नित्यकर्म के सौर प्रकाश से पोषण पाता है पर संबंधों को क्षरण से बचाने के लिए अनूठेपन तथा सहज स्फूर्ति के जल की भी आवश्यकता होती है. जो लोग पहले कभी एक दूसरे के साथ मिलकर हंसते रहे हैं, उन्हें आनंदहीनता को अपने पर कभी हावी नहीं होने चाहिए.