नजरिया. जहां एक ओर कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर किसान आंदोलन जोरों पर है, वहीं मोदी सरकार समर्थक इसे कमजोर करने के लिए सोशल मीडिया पर तरह-तरह के तर्क-कुतर्क पेश कर रहे हैं.
सोशल मीडिया पर कुछ समय से ऐसा मैसेज है कि क्योंकि किसान पैसा देकर धान देते हैं, इसलिए अन्नदाता नहीं हैं?
खबर है कि इस गलत धारणा पर तीखा हमला करते हुए भाकियू हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि जिन लोगों ने यह कहा है कि पैसा लेकर अनाज देने वाले हमारे अन्नदाता नहीं है, वह कल यह भी कहेंगे कि वेतन लेकर बॉर्डर पर जान देने वाले हमारे रक्षक नहीं है, जबकि कोई किसान व जवान पर अहसान नहीं कर रहा है, बल्कि उनको उनकी मेहनत के मुकाबले बहुत कम मिल रहा है. अगर उनको मेहनत के मुकाबले कई गुना ज्यादा दिया जाता है, तो वह लोग कुछ कहने के हकदार हैं.
गुरनाम सिंह चढूनी ने धरनास्थल पर भाकियू हरियाणा के सदस्यों के साथ बैठक करके आंदोलन को लेकर चर्चा की और कहा कि जिस तरह का सरकार रुख दिखा रही है, उसको देखते हुए सरकार पर दबाव बनाने के लिए कड़ा फैसला लेना होगा. वे अपने संगठन की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में कड़ा फैसला लेने की बात रखेंगे.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर हमारे धरने को गलत बताया जा रहा है, तो सरकार हमे गोली मार दे. क्योंकि, हमंे दिल्ली जाने नहीं दिया जाता है और दीवारें व कील लगा दी गई है, तो ऐसे में सड़कों पर ही बैठेंगे.
गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि हरियाणा सरकार के एक मंत्री ने जिस तरह से किसानों की शहादत पर बयान दिया है, वह बेहद शर्मनाक है. वह किसानों के लिए संवेदना के दो शब्द नहीं कह सकते, तो इस तरह के बयान भी नहीं देने चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस तरह से किसानों की शहादत पर कहा गया कि वह घर होते तब भी मरते तो यह बेहद खराब मानसिकता है.
बहरहाल, यह साफ हैे कि मोदी सरकार का यह प्रयास है कि जैसे भी हो, आंदोलन तोड़ दिया जाए, लेकिन जिस तरह से किसान आंदोलन के मोर्चे पर डटे हुए हैं, लगता नहीं है कि सरकार को कामयाबी मिलेगी!
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