राजू सिंह गुर्जर. अहं यानी ईगो व्यक्ति का सबसे खतरनाक शत्राु है. जिसके अंदर यह विद्यमान है, उसे स्वयं के अलावा कोई अन्य दिखाई नहीं देता. ऐसा व्यक्ति स्वयं को ‘खुदा‘ से कम नहीं समझता. ऐसे व्यक्ति हमारे आसपास ही जिस परिवेश में हम और आप रहते हैं, मौजूद होते हैं पर ज्यादातर लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क तब पड़ता है जब इस तरह का व्यक्ति हमारे घर, या दफ्तर में हो.

पति-पत्नी में कोई एक या दोनों में यह समस्या हो तो वास्तव में जीवन दूभर हो जाता है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हर व्यक्ति में अहं होता है, इसकी मात्रा कम या अधिक हो सकती है. यदि थोड़ी सी सूझबूझ से काम लिया जाये तो यह समस्या हल हो सकती है लेकिन अहं का जवाब अहं से देने पर तिल का ताड़ भी बन जाता है. अहं की दीवार इतनी ऊंची होती है कि मामूली से मामूली विवाद तूल पकड़कर आसमान की ऊंचाईयों को छूने लगता है.

जब कोई व्यक्ति अपनी ही भावना पर पर्दा डालने की कोशिश करता है, अपनी कमियों को छुपाकर श्रेष्ठता दर्शाना चाहता है मगर छिपा नहीं पाता. तब वह अहं का सुरक्षा कवच बनाकर स्वयं की रक्षा करता है. अहं से ग्रस्त दो व्यक्तियों में जब आमना सामना होता है तो एक पक्ष या तो डर कर पीछे हट जाता है या टक्कर लेता है.

पति पत्नी के मध्य जब इस प्रकार की प्रॉब्लम आती है तो नाजुक रिश्ते कच्चे धागे की तरह टूटने लगते हैं और संबंधों में बिखराव आ जाता है. अहं रूपी समस्या हर उस जगह जन्म लेती है, जहां पावर का सवाल हो. पावर हासिल करने और उसे बरकरार रखने के लिए दोनों पक्ष एक दूसरे की टांग खींचते हैं जिससे दोनों  ही पक्षों की हानि होती है.

अहं के परिणाम भी काफी घातक होते हैं. पति-पत्नी के बीच कोर्ट कचहरी की नौबत आ जाती है. बाप-बेटों में जमीन-जायदाद को लेकर बंटवारा हो जाता है. पत्नी मायके की शरण ले लेती है. पति किसी और स्त्राी के प्रेमजाल में भी फंस सकता है.

अहं के गरूर में पति-पत्नी यह भूल जाते हैं कि उनकी इस तरह की हरकतों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा. ईगो से ग्रस्त व्यक्ति अच्छा-बुरा सब भूल जाता है. बस एक ही ध्येय बन जाता है कि दूसरे को गिराना, नीचा दिखाना, व्यक्ति सारी सीमाएं लांघ जाता है. अहं कई बीमारियों को भी जन्म देता है.

पति-पत्नी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए यह जरूरी है कि वे दोनों एक दूसरे को सहयोग करें व सम्मान दें. अपनी अपनी पसंद का खुलासा करें एक दूसरे की कमियों को उजागर तो करें पर दिल को ठेस न पहुंचाएं. समस्याओं को दोनों मिलकर हैंडल करें. अपनी मर्जी एक दूसरे पर कभी न थोपें. एक-दूसरे को अपने-अपने तरीके से जीने दंे. अहं से अक्सर वार्तालाप बंद हो जाया करते हैं. यदि ऐसा हो तो पुनः बातचीत के क्रम का रास्ता निकालें. यहां परिवार के बड़े बुजुर्ग महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.