डॉ. दीपक आचार्य. कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में तकनीकि रूप से सशक्त बनाने में कृषि विज्ञान केन्द्रों की भूमिका बहुत अधिक है. राजस्थान की सीमा पर अवस्थित जैसलमेर जिले में जैसलमेर तथा पोकरण में कृषि विज्ञान केन्द्र संचालित हैं. कृषि विज्ञान केन्द्र जैसलमेर कृषि एवं पशुपालन के क्षेत्र में लगातार नई-नई कृषि तकनीकों को किसानों के बीच में पहुंचाने में सफल रहा है. इसी का परिणाम है कि  एवं जिस का परिणाम आज धीर- धीरे जैसलमेर की कृषि में दिखाई देने लगा है, जिस की वजह से जैसलमेर जिले के कृषक भी आज अन्य क्षेत्र के किसानों की तरह कृषि में नवाचारों का प्रयोग कर खेती-बाड़ी को आधुनिक स्वरूप देने में सफल हो रहे हैं. केंद्र के द्वारा जैसलमेर जिले के खडीन क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना अन्तर्गत ‘‘राजस्थान के जैसलमेर जिले में खेती प्रणाली के प्रलेखन, चना एवं गेहूं फसलों में किस्मों एवं पोषक तत्व प्रबंधन का मूल्यांकन‘‘ विषय पर तीन वर्षों के लिए प्रोजेक्ट संचालित है. इसमें खड़ीन क्षेत्र में चना एवं गेंहू फसल की बुवाई का कार्य कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में किया गया है.  इसका मूल्यांकन कार्य भी समय-समय पर किया जाता रहा है.

कृषि विकास के व्यापक आयाम....

केंद्र में किसानों के भ्रमण के लिए विभिन्न कृषि एवं पशुपालन इकाइयां जैसे सब्जी उत्पादन, फल वृक्ष, गूगल एवं थार शोभा खेजड़ी, कड़कनाथ मुर्गीपालन, चारा उत्पादन एवं समन्वित कृषि प्रणाली इकाइयों की स्थापना की गई हैं ताकि किसानों को प्रायोगिक रूप से सिखाया एवं बताया जा सके. केंद्र के द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों के आयोजन की परम्परा लगातार बनी हुई है. अबकि बार भी प्रमुख रूप से दस दिवसीय महिला सिलाई प्रशिक्षण, 25 दिवसीय डेयरी किसान उद्यमिता प्रशिक्षण, जैविक खेती, मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण, फल वृक्षों एवं फसलों में कीट एवं रोग प्रबंधन, प्रमुख फसलों की शस्य क्रियाओं के प्रबंधन विषयक एवं किसानों की आवश्यकता के अनुरूप विभिन्न प्रकार के उपयोगी प्रशिक्षणों का आयोजन करवाया जा रहा हैं.

पशुओं के लिए भी सार्थक कार्य....

केंद्र द्वारा पशुपालन विभाग के साथ मिलकर पशु स्वास्थ्य शिविर एवं टीकाकरण कार्यक्रमों का आयोजन लगातार करवाया जा रहा है. जैसलमेर की पहचान थारपारकर नस्ल की गाय के संवर्धन एवं संरक्षण विषय पर पशुपालकों को लगातार जागरूक किया जा रहा है ताकि थारपारकर नस्ल की गायों की संख्या में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि हो सके. केंद्र के द्वारा कृषि विभाग एवं टिड्डी नियंत्रण विभाग के सहयोग से जिले में टिड्डियों के प्रकोप से फसलों को बचाने के लिए प्रशिक्षणों का आयोजन किया गया एवं टिड्डी नियंत्रण में केंद्र के वैज्ञानिकों के द्वारा सक्रिय भागीदारी निभाई गई. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत केंद्र के द्वारा जिले के किसानों को क्षेत्र के प्रमुख फसले जैसे सरसों, चना, जई, मुंग, मोठ, एवं तिल फसलों के उन्नत बीजों का प्रदर्शन किसानों के खेतों पर लगवाकर इस का परिणाम किसानों को दिखाया गया एवं यह बताया गया कि अच्छे एवं उन्नत बीज के चयन के द्वारा कैसे किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.

मुर्गीपालन की संभावनाओं को आकार....

क्षेत्र में मुर्गीपालन व्यवसाय की संभावनाओं को देखते हुए किसानों को मुर्गीपालन विषय पर संस्थागत एवं असंस्थागत प्रशिक्षण देने के साथ-साथ मुर्गी की देशी नस्ल कडकनाथ का वितरण भी किया गया जिस की बदौलत आज जिले के किसानों में कडकनाथ मुर्गीपालन का बहुत अधिक रुझान पैदा हुआ है.  किसान मुर्गी की इस नस्ल को अपना कर घरेलू आय को बढ़ा भी रहे हैं. क्षेत्र में भेड़ एवं बकरी पालन की प्रबल संभावनाएं होने के कारण नाबार्ड बैंक एवं जिले के प्रमुख बैंकों के संयुक्त तत्वावधान में भेड़ एवं बकरी पालन विषय पर प्रशिक्षण करवा कर जैसलमेर के किसानों को नाबार्ड बैंक की योजना के अन्तर्गत भेड़ एवं बकरियों की नई इकाइयां स्थापित करवा कर बैंक से ऋण दिलवाने तक के कार्य को बहुत ही सफलतापूर्वक करवाया गया है. केंद्र पर कृषि मौसम सेवा इकाई स्थापित होने की वजह से केंद्र किसानों को मौसम की समय से पूर्व जानकारी प्रदान करने में सफल हुआ है एवं इसका जैसलमेर के किसानों को बहुत अधिक लाभ मिला हैं.

किसानों से संवाद सातत्य.... 

कृषि विज्ञान केंद्र सोशल मीडिया ग्रुप के माध्यम से किसानों को लगातार कृषि एवं पशुपालन से सम्बन्धित नवीनतम तकनीकि जानकारियां प्रदान करने में सफल हुआ है. इसके साथ ही किसानों को खेतों में सामने आ रही कृषि एवं पशुपालन से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान करने में कृषि वैज्ञानिक दिन-रात अपनी मेहनत लगा रहे हैं जिसका क्षेत्र के किसानों को बहुत अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है.

सुनहरे दौर में पहुंच रही है मरुस्थल की कृषि...

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी एवं प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दीपक चतुर्वेदी बताते हैं कि मरुस्थल में खेती-बाड़ी को नए आयाम देने में केन्द्र की सार्थक भूमिका की बदौलत अब किसानों में परम्परागत खेती-बाड़ी के साथ ही अत्याधुनिक कृषि एवं नवीनतम तकनीकि ज्ञान व उपकरणों का समावेश बढ़ता जा रहा है और इससे रेगिस्तान में कृषि कर्म अब नए रंग-रूप में सामने आकर खुशहाली का सुकून दे रहा है.