भारतीय रेलवे आज दुनिया के पांच सबसे बड़े रेल नेटवर्क में आता है. इस मुकाम तक पहुंचने में रेलवे को कई दशक लगे और इसमें अहम पड़ाव रहा रेलवे में कंप्यूटरीकृत आरक्षण का शुरू होना. आज ही के दिन साल 1986 में ये प्रणाली शुरू हुई थी, जो कि नई दिल्ली से हुई.

कंप्यूटरीकृत सर्विस को आज दुनिया की सबसे अहम खोजों में गिना जाता है. इसके कारण करोड़ों आंकड़ों का संचालन रोजाना आसानी से हो रहा है. लेकिन पहले ये इतना आसान नहीं था. मैनुअल आरक्षण में हो रही परेशानियों को देखते हुए साल 1985 में भारतीय रेलवे ने कुछ नया करने की ठानी और साल 1985 में कंप्यूटर के जरिए आरक्षण के लिए पायलेट प्रोजेक्ट शुरू किया.  

इससे पहले मैनुअल आरक्षण हुआ करता था, जो लगभग डेढ़ सौ सालों तक चलता रहा. इसके लिए लोगों को पहले एक फॉर्म भरना होता था. आगे की प्रक्रिया भी आसान नहीं थी. काउंटर पर टिकट बुकिंग क्लर्क हुआ करते, जो रजिस्टर देखकर ट्रेन में सीट की उपलब्धता बताते. यानी फॉर्म भर लंबी कतार पार करने के बाद ये भी हो सकता था कि टिकट आसपास के दिनों में उपलब्ध ही न हो. तब नए सिरे से सारी कवायद होती. यहां ये जानना भी मजेदार है कि अगर-अलग स्थानों की यात्रा के लिए अलग-अलग रजिस्टर मेंटेन किए जाते और इसके लिए अलग-अलग खिड़कियां होती थीं. 

ये समस्या देखते हुए भारत सरकार ने कंप्यूटर प्रणाली के इस्तेमाल की ठानी. इसके लिए पहले पायलेट किया गया. साथ ही सारी कंप्यूटर संबंधी गतिविधियों के लिए एक अम्ब्रेला संगठन के रूप में रेलवे सूचना प्रणाली केन्द्र की स्थापना दिल्ली के चाणक्यपुरी में की. इस प्रणाली को क्रिस नाम दिया गया, कई कामों के अलावा क्रिस का अहम काम कंप्यूटरीकृत आरक्षण देखना भी था. किसी भी काउंटर से किसी भी गाड़ी में आरक्षित स्थान उपलब्ध कराना और गाड़ियों के चार्ट तैयार करना इसका काम था ताकि रेलवे से लेकर यात्रियों का काम आसान हो सके. इस प्रणाली में लगातार बदलाव होते रहे और अब इसके कई वर्जन तैयार हो चुके हैं.

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