उषा जैन ‘शीरी’. अल्पना एक कॉलेज में लेक्चरार है. उसका पति अनूप बैंक मैनेजर है. पति का ट्रांसफर होता रहता है. नौकरी से ज्यादा अल्पना को बच्चों की पढ़ाई की चिंता रहती है. पति तो कहते हैं, ’छोड़ दो नौकरी. मुझसे अकेले नहीं रहा जाता. तुम्हारे साथ तो फिर भी बच्चे हैं.‘
निर्णय न ले पाने के कारण अल्पना परेशान है. दोनों किशोर बेटों पर पिता का शासन न होने से वे बिगड़ने लगे हैं. पढ़ाई से ज्यादा टी. वी पर उल्टे सीधे प्रोग्राम देखना, स्कूल से गायब होना, होटल रेस्तरां, सैर, तफरीह करना. काम की कहो तो सपाट जवाब, ’हमारे बस का नहीं है, हमें पढ़ाई करनी है.‘ अल्पना रातों को रोती है, तब उसे अनूप बहुत याद आते हैं. उनकी लव मैरिज थी. अनूप के प्यार में आज भी कोई कमी न थी.
यह त्रासदी आज सिर्फ अल्पना की ही नहीं, उस जैसी न जाने कितनी स्त्रिायों की होगी. पति रहते हुए भी वैधव्य जैसा जीवन गुजारना.
‘फार फ्रॉम साइट, फार फ्रॉम माइंड’ अंग्रेजी की एक कहावत है. यह बात अक्सर ही एक कड़वी हकीकत बन जाती है. अनामिका और अनिकेत के केस में ऐसा ही कुछ हुआ. मां-बाप, सास-ससुर सभी ने अनामिका को कितना समझाया. प्राइवेट स्कूल की नौकरी रतलाम में भी मिल सकती है लेकिन उसने भोपाल में एक प्राइवेट स्कूल की नौकरी, जहां उसे महज पाँच हजार रूपये मिल रहे थे, नहीं छोड़ी.
अनिकेत से रातों की तन्हाई काटे नहीं कटती. इसका फायदा उठाया गहरे रंग और तीखे नयन नक्श वाली अनिकेत से उम्र में पांच साल बड़ी राधिका भारद्वाज ने. अनुभवहीन सीधा सच्चा अनिकेत राधिका के जाल में फंसता चला गया. उसने पत्नी के पास जाना ही छोड़ दिया. राधिका ने उसे ब्याह के लिए मजबूर किया. गुपचुप उनका विवाह भी हो गया. अनामिका को मालूम होने पर इतना गहरा मानसिक आघात लगा कि अवसाद के क्षणों में उसने ढेर सारी नींद की गोलियां सटक लीं. उसकी त्रासदी का अंत यह हुआ.
पति-पत्नी एक-दूसरे को टूटकर प्यार करते हों और सदा एक दूसरे के सान्निध्य की ऊष्मा में महफूज होने का अहसास रखते हों तो जीवन की हर कठिनाई का मुकाबला करने में वे सक्षम रहेंगे. कितना भी सख्तजान व्यक्ति क्यों न हो, उसे भी मनोबल के लिए मॉरल सपोर्ट की जरूरत कभी न कभी, कहीं न कहीं जरूर पड़ती है.
विवाह हो जाने पर अकेले रहना इससे बड़ी सजा किसी के लिये क्या हो सकती है. वास्तव में ही अगर मजबूरी है तो बात और है लेकिन महज ऐश से रहने के लिये या फिर कहा जा सकता है, अकारण ही कारण बनाकर अलगाव या तलाक जैसी स्थिति बना ली जाए तो यह सिवा मूर्खता के और कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस आता है और यही उद्गार निकलते हैं, प्रभु इन्हें क्षमा करना. ये नहीं जानते ये किन सुखों से स्वयं को वंचित कर रहे हैं.
नीलिमा एक मध्यमवर्गीय हाईस्कूल पास सुखी गृहिणी है. मां से मिले संस्कारों में यह बात कि ’संतोष धन सबसे बड़ा धन है‘, उसने हमेशा याद रखी. उसका पति पर विश्वास, आस्था और उत्कट प्रेम कई महिलाओं के लिये अनुकरणीय हो सकता है. वह कहती है, ‘मेरे सबसे सुखी क्षण वे ही होते हैं, जब हम दोनों करीब-करीब बैठे मीठी-मीठी बातें करते हैं और भविष्य की योजनाओं को लेकर कल्पनाएं करते हैं. उनके करीब रहना मुझे बहुत ही अच्छा लगता है. उनकी उपस्थिति मुझे मां की गोद जैसा सुकून देती है. उनकी ख्वाहिशें पूरी करने में मुझे जो सुख मिलता है, उससे मेरी आत्मा तृप्त हो जाती है.‘
आज ऐसी कई पत्नियां हैं जो पति से अलग दूर किसी शहर में पति या स्वयं अपनी नौकरी के कारण रहने के लिए मजबूर हैं. दूर रहने वाले जोड़ों में चाहे कितना भी प्यार क्यों न हो, उनके संबंध सहज नहीं रह सकते.
दोतरफा बोझ स्त्राी को कई बार चिड़चिड़ा बना देता है जिसके परिणामस्वरूप बच्चे परेशान रहने लगते हैं. घर में तनाव की स्थिति आ जाती है. लोग कन्नी काटने लगते हैं. बीमारियां जैसे उच्च रक्तचाप, मानसिक असंतुलन, डिप्रेशन हो सकता है. कार्यक्षमता पर असर पड़ता है. कर्टसी कॉल, सोशल विजिट्स सब बंद हो जाती हैं.
सालों साल अलग रहने के बाद जीवन की सांध्य बेला में फिर आपस में एडजस्ट करना और तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है. रिटायरमेंट वैसे ही अपने साथ अनेक समस्याएं लेकर आती है.
व्यक्तिगत स्वतंत्राता, नारी उत्थान, अति भौतिकवादिता, बढ़ती स्वार्थपरता के कारण आज माहौल बहुत बदल गया है. महंगाई और महत्त्वाकांक्षाएं, इन दो पाटों के बीच पिसते परिवारों के लिए साथ रहना असंभव-सा लगने लगता है. तन की दूरियां जब पाटी न जा सकें तो क्या किया जाए?
इसका विकल्प है ‘टच’ में रहना. ‘टच’ में रहने के लिए संवाद, जिसे अंग्रेजी में ’कम्युनिकेशन‘ कहा जाता है, जरूरी है. तरीके आपके अपने हो सकते हैं मसलन पत्रा लिखना, फोन करना या ‘ई’ मेल द्वारा संदेश और बातों का आदान प्रदान. हर नकारात्मक बात का कोई सकारात्मक पहलू भी जैसे हुआ करता है. यहां दूरी आत्मनिर्भरता ले आती है, जो कई बार स्त्रिायों का सबसे कमजोर पहलू होता है. इसी तरह पुरूष भी अपना कार्य स्वयं करना सीख लेते हैं लेकिन यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि यही निर्भरता पति-पत्नी के रिश्ते को जोड़ती है.
जीवन को समझने में लोग सबसे बड़ी भूल यह करते हैं कि वे इसे अमर मान कर चलते हैं. जीवन कितना अनिश्चित है और क्षणभंगुर है, यह सभी जानते हैं. ऐसे में प्यार और खुशी के लिये वक्त ही कितना है. महज रूपये-पैसे के लालच के लिये जब इनसे महरूम रहा जाए, वो भी तब, जब आपके पास अवसर हो तो उसे क्या कहा जाएगा?
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