तीर्थस्थल: बुलावा आने पर जाते हैं वैष्णो देवी के भक्त

तीर्थस्थल: बुलावा आने पर जाते हैं वैष्णो देवी के भक्त

प्रेषित समय :08:36:57 AM / Wed, Feb 24th, 2021

मनमोहन ढींगरा

‘चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है।‘

माता वैष्णो देवी के संबंध में प्रचलित यह कथन बिलकुल सत्य है कि माता वैष्णो देवी के दरबार में कोई भक्त अनायास अपनी इच्छा से नहीं पहुंच सकता बल्कि वही भक्त वहां पहुंच पाते हैं जिन्हें मां बुलाती है, जिन पर मां की कृपा होती है। वहां तक जाने का मार्ग अभी भी काफी दुर्गम है। उसके बावजूद हर साल लाखों भक्त मां का गुणगान करते एवं मां का जयकारा लगाते हुए उनके दरबार में पहुंचकर अपनी हाजिरी लगाते हैं। मां की कृपा का ही फल है कि पहाड़ी मार्ग पैदल तय करके उनके दरबार में पहुंचता है। अगर मां की कृपा न हो तो कोई चाह कर भी मां वैष्णो देवी के दरबार में नहीं पहुंच सकता। ऐसी मान्यता मां के भक्तों में प्रचलित है।

मां वैष्णो देवी का दरबार जम्मू से 61 कि. मी. है। जम्मू रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से 48 कि. मी. की दूरी बस या टेªन द्वारा तय की जा सकती है। कटरा से मां के दरबार की वास्तविक यात्रा शुरू होती है। यहां से यात्रा शुरू करने से पहले भक्तों को पर्ची लेनी पड़ती है जो उन्हें मां के दरबार में पहुंचाती है। कटरा से बाणगंगा तक की एक कि. मी. की दूरी है। यात्रा की कठिनाई से बचने के लिए यहां कपड़े के जूते एवं छडि़यां आदि किराए पर मिलती हैं।

बाणगंगा में स्नान करके भक्त त्रिकूट पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं। बाणगंगा से त्रिकूट पर्वत की दूरी 13 कि. मी. है जिसे मां का गुणगान करते व जयकारा लगाते भक्तगण पैदल तय करते हैं। जो भक्त पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वे यह दूरी खच्चर या पालकी से तय करते हैं। बाणगंगा को लेकर भक्तों में प्रचलित है कि इसकी उत्पत्ति मां वैष्णो देवी ने की है। एक मां कन्या रूप में वीर लंगूर के साथ इस स्थान से गुजर रही थी। वीर लंगूर को जोरों की प्यास लगी तो मां ने बाण मारकर यहां गंगा को उत्पन्न किया। उन्होंने इस गंगा का जल पीकर अपनी प्यास बुझाई। चूंकि गंगा बाण से पैदा हुई थी इसलिए इसका नाम बाणगंगा पड़ा।

जैसे-जैसे मां का दरबार नजदीक आता जाता है, भक्तों के जयकारे की गूंज बढ़ती जाती है। बाणगंगा से करीब 1.5 कि. मी. दूर चरण पादुका नामक स्थान है जहां मां के चरणों के चिन्ह अब भी बरकरार हैं। कहा जाता है कि करीब सात सौ वर्ष पहले भैरवनाथ ने उनका पीछा किया था। उस समय मां ने यहीं क्षण भर के लिए रूककर पीछे देखा था कि भैरवनाथ आ रहा है या नहीं। रूकते ही वहां मां के पैरों के चिन्ह बन गए। फिर मां गर्भजून गुफा में प्रवेश कर गई जहां उन्होंने 9 माह विश्राम किया। जब मां यहां से आगे बढ़ी तो भैरवनाथ फिर पीछा करने लगा। उससे बचने के लिए मां फिर एक गुफा (प्रमुख दरबार) में प्रवेश कर गई। अब भैरवनाथ ने गुफा में प्रवेश करने का प्रयास किया तो मां वैष्णो देवी ने क्रोधित होकर उसका वध कर डाला था।

4783 फुट की ऊंचाई पर अवस्थित आदि कुमारी मंदिर में पहुंचने के लिए घुटनों के बल रेंगकर जाना पड़ता है। इस संकरी गुफा में घुटनों के बल रेंगकर जाना काफी रोमांचक होता है। माता के दरबार से 3 किलोमीटर पहले है। यहां से 3 कि. मी. का मार्ग बिलकुल ढलान वाला है। माता का दरबार त्रिकुटा पर्वत समुद्र तल से 5 हजार 200 फीट ऊंचा है। यहां पहुंचकर भक्त अपनी यात्रा पर्ची दिखलाते हैं, तब उन्हें माता के दरबार में प्रवेश करने के लिए नंबर मिलता है। माता के दरबार में पहुंचने के लिए भक्तों को मेटल डिटेक्टर से गुजरकर होता है। प्रतीक्षा कक्ष में लोग लाइनों में बैठ मां की भेंटे गाते और जयकारा लगाते हैं। अपनी बारी आने पर भक्तगण मां की पिंडियों के सामने नत मस्तक हो जाते हैं। मंदिर के अंतिम घेर पर पवित्रा पिंडियां अवस्थित हैं। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती यहां पिंडियों के रूप में अवस्थित हैं।

यहां वैष्णो देवी का साक्षात् वास है। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचालित है जिसके अनुसार त्रोता युग मंय रावण व कुंभकरण आदि राक्षसों का पृथ्वी पर अत्याचार काफी बढ़ गया। तब उनके अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त करने के लिए तथा धर्म की रक्षा के लिए भगवती की समस्त शक्तियों ने अपनी सम्मिलित दिव्य शक्तियों से कन्या को जन्म देने का निश्चय किया। वहां तुरंत एक कन्या प्रकट हुई। महादेवियों की इच्छा से इस कन्या ने रत्नाकर सागर के यहां जन्म लिया जिसका नाम त्रिकूटा रखा गया। फिर यह विष्णु के अंश से पैदा हुई जिसके कारण वह कन्या वैष्णवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस कन्या ने राम को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। भगवान राम उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा वर मांगने को कहा। उसने भगवान राम को पति के रूप में पाने की इच्छा प्रकट की।

भगवान राम बोले-इस जन्म में तो मैंने एक पत्नी व्रत होने का निश्चय किया है इसलिए तुझे अपनी पत्नी नहीं बना सकता लेकिन किसी दिन मैं वेश बदलकर तुम्हारे पास आऊंगा। अगर तुम मुझे पहचान लोगी, तब तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूंगा और तुझे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लूंगा। कुछ दिनों बाद भगवान राम साधु वेश में त्रिकूटा के सामने आए लेकिन वह पहचान न सकी। तब भगवान राम ने कल्कि अवतार में पत्नी बनाने का वरदान दिया। तब से त्रिकूटा उत्तर भारत के माणिक पर्वत के तीन शिखरों वाली त्रिकूटा पर्वत गुफा में तपस्यारत हैं। इस तरह वैष्णो देवी यहां साक्षात् विराजमान है।

मां के दरबार से 1.5 कि. मी. की दूरी पर भैरव मंदिर है। यहां पहुंचकर भक्त की मां वैष्णो देवी की यात्रा पूरी होती है। यहां जाने के लिए रोपवे (ट्राली) की व्यवस्था भी है। किसी समय मां वैष्णो देवी तक पहुंचने का मार्ग काफी कठिनाइयों भरा था लेकिन 1986 के बाद श्री वैष्णो देवी स्थापना बोर्ड की गठन की गई। यात्रा मार्ग को सुगम बनाने के लिए पक्की सड़क निर्माण कराई गई। मार्ग में जगह-जगह मनोरम उपवन बनाए गए। गर्मी व वर्षा से भक्तों को बचाने के लिए शेड बनाए गए हैं तथा जलपान गृह खोले गए हैं। यात्रा मार्ग में चिकित्सालय भी खोले गए हैं।

बढ़ती सुविधाओं और श्रद्धा के कारण दर्शन करने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती जा रही है और अब तक उत्तर भारत ही नहीं, मध्य भारत, दक्षिण भारत और विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं।

देवी का गरबा....

https://www.youtube.com/watch?v=E3H0OdxbK5Y

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-



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