दो कालजयी किरदारों का करिश्मा लौटाने की कोशिश- टॉम एंड जेरी

दो कालजयी किरदारों का करिश्मा लौटाने की कोशिश- टॉम एंड जेरी

प्रेषित समय :10:53:06 AM / Fri, Feb 26th, 2021

भले टीवी या मोबाइल पर भले छोटा भीम, लिटिल सिंघम जैसी एनीमेशन सीरीज खूब देखी जाती हों, लेकिन बच्चों के लिए देसी एनीमेशन सिनेमा में कुछ बड़ा होना अब भी बाकी है। ‘द लॉयन किंग’, ‘जंगल बुक’ और ‘फ्रोजेन’ जैसी फिल्मों के सहारे बड़े हो रहे हिंदुस्तानी बच्चों के लिए साल की पहली एनीमेशन मूवी है, ‘टॉम एंड जेरी’। जो बड़े हो चुके हैं, ये उनको फिर से बचपन की यादों में ले जाने का जतन है। करीब आठ दशक से लोगों को हंसाते रहे टॉम एंड जेरी को इस बार एक ऐसी कहानी में डाला गया है जिसका पूरा धरातल किसी हिंदी फिल्म जैसा है। और, असर भी वैसा ही है जैसा इस तरह की कहानियों पर बनी हिंदी फिल्मों का होता रहा है।

एक विशालकाय होटल में एक बड़ी शादी होने जा रही है। दुल्हन भारतवंशी है। दूल्हा अंग्रेज है और अपनी होने वाली पत्नी के लिए वह सब कुछ करना चाहता है जो उसका भारतीय शादियों को लेकर सामान्य ज्ञान कहता है। वह हाथियों का इंतजाम करता है। नचाने के लिए मोर मंगाता है। शेर भी आ जाता है। लेकिन, कहानी में इनसे पहले आ चुके होते हैं दो और किरदार, टॉम और जेरी। जेरी होटल में अपने नए ठिकाने की तलाश में है और उसे पा भी लेता है। टॉम को होटल में फर्जी रेज्यूमे से नौकरी पाने वाली कायला जेरी का काम तमाम करने के लिए रख लेती है। फिल्म है तो सब कुछ फिल्मी होगा ही लेकिन इस फिल्म की दिक्कत ये है कि एक तो ये जरूरत से ज्यादा लंबी है, दूसरे इसकी कहानी में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों को दिलचस्पी फिल्म में बनाए रखे।

फिल्म देखना अब दो तरह का हो गया है। एक तो हजार दो हजार रुपये खर्च करके और जीवन के कीमती समय का सिनेमाहाल के अंधेरे में निवेश करके पूरा सिनेमाई अनुभव लेना। दूसरा अपने घर की सहूलियत में फिल्म देखना जिसमें दर्शक के पास ये विकल्प है कि वह पूरी फिल्म एक बार में देखे या बीस बीस मिनट करके किश्तों में। फिल्म ‘टॉम एंड जेरी’ दूसरी कैटेगरी में ज्यादा फिट दिखती है। सिनेमाई अनुभव ये फिल्म करा नहीं पाती। टॉम एंड जेरी बरसों से लड़ते रहे हैं। कायला इसका संदर्भ भी अपने संवादों में ले आती है। जो इन दोनों की लड़ाइयां देखकर बड़े हुए हैं, वे अपने बचपन की यादों के लिए ये फिल्म देख रहे होते हैं लेकिन ऐसा कुछ फिल्म में होता नहीं जो उन छोटी छोटी कार्टून फिल्मों से बेहतर हो। आज के बच्चे लाइव और एनीमेशन के इस प्रयोग से ही सहमत नहीं हैं। वे डिजनी की फिल्में देखकर बड़े हुए हैं या बड़े हो रहे हैं। बड़ों और बच्चों दोनों के पैमाने पर फिल्म ‘टॉम एंड जेरी’ खरी नहीं उतर पाती।

रॉयल गेट होटल में घट रही ये कहानी बच्चों का मनोरंजन करने में तो विफल रहती ही है, उनके मनोविज्ञान के हिसाब से फिल्म का टेकऑफ भी गलत है। एक युवती बेईमानी से नौकरी पा रही है और वह फिल्म की नायिका है। ये और बात है कि बाद में उसे अपनी गलती का एहसास होता है और वह सच स्वीकार करने की हिम्मत भी दिखाती है। लेकिन कहानी का प्लॉट इससे बेहतर चुना जा सकता था। निर्देशक टिम स्टोरी को कहानी के मामले में तो फिल्म से मात मिली ही है, फिल्म के दोनों मुख्य कलाकार क्लोए और पेना का अभिनय भी खास फिल्म को सपोर्ट नहीं करता। कोलिन जोस्ट का कुछ खास काम फिल्म में है नहीं। पल्लवी शारदा जरूर एक भारतवंशी के रूप में अपना असर छोड़ जाती हैं। पल्लवी के लिए ये फिल्म हॉलीवुड के दरवाजे पर बड़ी दस्तक है और इस फिल्म में किए अभिनय का उनको फायदा भी मिलने वाला है।

टिम स्टोरी बतौर फिल्म के कप्तान भी ज्यादा कुछ प्रभाव छोड़ नहीं पाते। फिल्म का संगीत यूनीवर्सल अपील वाला नहीं है और फिल्म के एनीमेशन औसत दर्जे के हैं। इंसानी किरदारों का एनीमेशन किरदारों के साथ संवाद कराते समय टॉम एंड जेरी को संवाद न देना, इन किरदारों पर बनी पिछली फिल्म की भूल तो ठीक करता है लेकिन इसका असर वैसा हो नहीं पाता जैसा होना चाहिए। टॉम एंड जेरी का आपसी झगड़ा भी ठीक से उभर नहीं पाता। हां, जेरी का होटल में घुसने के प्रयास करने वाला दृश्य थोड़ी देर के लिए फिल्म मे रोमांच लाता है। बच्चे फिल्म देखते समय बोर हो सकते हैं और बड़ों के लिए फिल्म टुकड़ों टुकड़ों में ही देखे जाने लायक है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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