वाशिंगटन. अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की भूमिका को भरोसे लायक नहीं बताया. लिहाजा ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को इस क्षेत्र में एक साथ आना पड़ा, जिसे क्वाड देश कहा जाता है. इसी प्रयास के तहत हिंद महासागर में फ्रांस की अगुवाई में सैन्य अभ्यास ला पोरस चला था. इस युद्धाभ्यास को लेकर चीन ने आपत्ति जाहिर की थी.
एक अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र में बीजिंग की भूमिका के अविश्वास के चलते ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को साथ आना पड़ा और फिर इस तरह क्वाड मजबूत हुआ. रिपोर्ट में बताया गया है कि जापान ने इस क्षेत्र में चीन की बढ़ रही ताकत को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी. हालांकि इसे कांग्रेस का आधिकारिक बयान नहीं माना जाता है.
अमेरिकी कांग्रेस की नई रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन ने 2017 में क्वाड्रिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग को विकसित करने के प्रयास को आगे बढ़ाया जिसे चार देशों के संगठन क्वाड के नाम से जाता है. यह नेविगेशन की स्वतंत्रता की रक्षा और इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने का एक साझा मंच है. 2021 में बाइडन प्रशासन ने जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत को वर्चुअल समिट में बुलाकर अपने सख्त रुख का परिचय दिया.
इस समिट में कोरोना से निपटने के लिए वैक्सीन मुहैया कराने के मुद्दे पर भी चर्चा की. रिपोर्ट कहती है कि इन चार देशों का यह कदम उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों में उपयोग किए जाने वाले दुर्लभ खनिज पदार्थों को लेकर चीन पर निर्भरता को कम करने और पेरिस समझौते को मजबूत करने में कारगर साबित होगा. इनका एक साथ काम करने की योजना एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकती है.
अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि सवाल व्यवस्था के स्थायित्व को लेकर बना हुआ है. यदि सदस्य देशों में नेतृत्व परिवर्तन होता है, तो क्या अन्य देशों को क्वाड में लाया जाएगा. इस रिपोर्ट में भारत के उत्साह का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि इस क्षेत्र में बीजिंग की भूमिका के प्रति अविश्वास ने क्वाड को मजबूत कर दिया है.
पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ विशेष रूप से इस अवधारणा का समर्थन करते हुए जापान क्वाड की व्यवस्था को आगे बढ़ाने में सबसे आगे रहा है. सीआरएस की रिपोर्ट कहती है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती शक्ति पर अपनी चिंता को लेकर क्वाड को खड़ा करने में जापान की उत्सुकता सभी से ऊपर दिखाई देती है. सिद्धांत रूप में, भारत को उलझाने के लिए बीजिंग अपने कुछ संसाधनों से ध्यान हटा सकता है और हिंद महासागर पर ध्यान देने के लिए मजबूर कर सकता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-ताइवान की चीन को दो टूक: अगर युद्ध होता है तो अंतिम दिन तक लडेंगे
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