ज्वर या बुखार ठीक करने के लिए शाबर मंत्र

ज्वर या बुखार ठीक करने के लिए शाबर मंत्र

प्रेषित समय :22:02:40 PM / Fri, Apr 23rd, 2021

यह एक सबर जंजीर मंत्र है जिसके प्रयोग से हर तरह का ज्वर बहुत अल्प समय मे ही ठीक हो जाता है.

हमारे गांव में एक बुजुर्ग पंडित जी रहते है.उनके पास ज्वार के पीड़ित रोगी दूर दूर से आते है.इस प्रयोग से सब अल्प समय मे ही ठीक हो जाते है.मैं उनके पास मिलने के लिए गया हुआ था.मंत्र के बारे में पूछने पर मंत्र लिख कर दे दिए और विधि भी बता दिए.जिन लोगों में समाज सेवा का सच्चा जजबा हो इसे सिद्ध करके प्रयोग करें.इसे व्यवसाय न बनाएं.
निचे लिखा मंत्र होली,दीवाली या नवरात्रि में सिद्ध कर लें.

साधना सिर्फ 21 दिन का है और यह मंत्र सिर्फ 21 बार नित्य पढना है.लेकिन प्रारम्भ किसी शुभ दिन से ही करें.

सर्वप्रथम आप स्थान को साफ करके पवित्र कर लें.फिर किसी भी तरह का आसन बिछा कर उस पर बैठ जाये.एक धुनी जलाये और उस धुनी पर एक रोटी पकाये.रोटी पका कर उसे कुत्ते को खिला दें.

इसके बाद इस मंत्र को 21 बार जप करें.जप के बाद इसी मंत्र से 21 आहुति दें.आहूति में गूगल दशांग और गुड़ का प्रयोग करें.

मंत्र सिद्ध हो जाने के बाद थोड़े पानी पर मंत्र 21 बार पढ़ कर फूंक मार दें.अब यही पानी रोगी को थोड़ा थोड़ा करके दिन में कई बार रोग के पूर्ण आराम होने तक पिलाते रहें.इसे कंडे की राख पर भी कर सकते है.राख को रोगी के बदन पर दिन में कई बार लगते रहे.ज्वर ठीक हो जाएगा.
मंत्र (जंजीरा)
ऊँ गुरुजी मैं सरभंगी सबका संगी, दूध-माँस का इकरंगी, अमर में एक तमर दरसे, तमर में एक झाँई, झाँई में पड़झाँई, दर से वहाँ दर से मेरा साईं, मूल चक्र सरभंग का आसन, कुण सरभंग से न्यारा है, वाहि मेरा श्याम विराजे ब्रह्म तंत्र ते न्यारा है, औघड़ का चेला, फिरू अकेला, कभी न शीश नवाऊँगा,

पत्र पूर पत्रंतर पूरूँ, ना कोई भ्राँत ‍लाऊँगा, अजर अमर का गोला गेरूँ पर्वत पहाड़ उठाऊँगा, नाभी डंका करो सनेवा, राखो पूर्ण वरसता मेवा, जोगी जुण से है न्यारा, जुंग से कुदरत है न्यारी, सिद्धाँ की मूँछयाँ पकड़ो, गाड़ देवो धरणी माँही बावन भैरूँ, चौसठ जोगन, उल्टा चक्र चलावे वाणी, पेडू में अटकें नाड़ा, न कोई माँगे हजरता भाड़ा मैं ‍भटियारी आग लगा दूँ, चोरी-चकारी बीज बारी सात रांड दासी म्हाँरी बाना, धरी कर उपकारी कर उपकार चलावूँगा, सीवो, दावो, ताप तेजरो, तोडू तीजी ताली खड चक्र जड़धूँ ताला कदई न निकसे गोरखवाला,
डा‍किणी, शाकिनी, भूलां, जांका, करस्यूं जूता, राजा, पकडूँ, डाकम करदूँ मुँह काला, नौ गज पाछा ढेलूँगा, कुँए पर चादर डालूँ, आसन घालूँ गहरा, मड़, मसाणा, धूणो धुकाऊँ नगर बुलाऊँ डेरा, ये सरभंग का देह, आप ही कर्ता, आप ही देह, सरभंग का जप संपूर्ण सही संत की गद्‍दी बैठ के गुरु गोरखनाथ जी कही.

-  प्राचीन शाबर मन्त्र Prachin shabar mantra (फेसबुक पेज) 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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