जन्म कुण्डली के लग्न पंचम, नवम स्थान में जिन ग्रहों का प्रभाव हो उन ग्रहों के बल अनुसार साधक को उन देवताओं की साधना करना चाहिए.
भाग - 1
1. सूर्य- विष्णु , शिव, दुर्गा, ज्वालादेवी, ज्वालामालिनी, गायत्री, आदित्य, स्वर्णाकषर्ण, भैरव की उपासना करे.
2. सूर्य-शनि, सूर्य-राहु : महाकाली, तारा, शरभराज, नीलकण्ठ,यम, उग्रभैरव, कालभैरव, शमशान भैरव की पूजा करे.
3. सूर्य -बुध, सूर्य-मंगल : गायत्री, सरस्वती, दुर्गा उपासना.
4. सूर्य-शुक्र :- वासुदेव, मातडंगी, तारा, कुबेर, भैरवी, श्रीविद्या की उपासना करे.
5. सूर्य-केतु:-छिन्नमस्ता, आशुतोषशिव, अघोरशिव.
6. सूर्य-शनि-राहु:-पशुपतास्त्र तंत्र,मंत्र मरणादि षटकर्म से व्यक्ति अधिकतर पीडित होगा रक्षा के लिए काली, तारा, प्रत्यंगिरा, जातवेद दुर्गा की उपासना करे.
भाग- 2
7. सूर्य,गुरू,राहु-बगलामुखि, बगलाचामुण्डा, उचिष्टगणपति, वीरभद्र. केवल बगलामुखि उपासना से सिद्धि मिले परन्तु या तो सिद्धि दुसरो के लिए नष्ट होगी या देवी नाराज होकर वापस ले लेगी.
8. चन्द्रमा-लक्ष्मी, श्रीविद्या षोडशी, यक्षिणी, वशीकरणादि प्रयोग शिव, कामेश्वर उपासना शुभ रहे.
9. चन्द्र मंगल- हनुमान उच्छिष्ट चाण्डालिनी, मांतगी, शबरी, नरसिहँ, वनदुर्गा, भैरवी उपासना शुभ रहे.
10. चन्द्र बुध-बगला, कर्णपिशाची, उच्छिष्ट चाण्डालिनी नरसिहँ, सरस्वती, वैष्ण्सवी, वाराही, हयग्रीव, दुर्गा उपासना शुभ रहे.
11. चन्द्र गुरू-बगलामुखी, भुवनेश्वरी, लक्ष्मी पितृ, कुबेर, ब्राह्म, शिव, कृष्ण, राम, दत्तात्रेय, अजपाजप, सोह साधना करे.
12. चन्द्र शुक्र-कृष्ण, लक्ष्मी, त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, शाकम्भरी, यक्षिणी, वामन, दत्तात्रेतांत्रिक उपासनायें.
भाग - 3
13. चन्द्र शनि-दुर्गा तंत्र- मंत्र सिद्धि, यक्षिणी, पिशाचि, भैरव, काली, तारा, उपासना करें.
14. चन्द्र राहु- भैरवी, काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, वाराही, उग्रचण्डा, गणेश, विघ्नेश, हयग्रीव, शिव मृत्युंज्जय उपासना करे
15. चन्द्र केतु - हनुमान, स्वामी कार्तिकेय, छिन्नमस्ता, भैरव, उच्छिष्टगणेश, वासुदेव, विष्णु, गजेन्द्रमोक्ष स्त्रोत का पाठ करे.
16. मंगल-हनुमान, भैरव, वीरभद्र, स्वामीकार्तिकेय, दुर्गा उपासना करे.
17. मंगल, बुध-बगलामुखी, भैरवी, नारसिंही, ब्राह्मी आदि अष्टमातृका, दुर्गा, सरस्वती, कृष्ण, गणपति, उपासना श्रेष्ठ रहै
18. मंगल, गुरू-हनुमान, गायत्री, विष्णु, शिव, पितृ, यक्ष, कुबेर भिन्नपाद नेत्रौ की उपासना शुभ रहे. संतान चिंता हेतु षष्ठी देवी का पाठ करे.
भाग - 4
19. मंगल, शुक्र- वामन,लक्ष्मी, कामेश्वरी, ललिता, भुवनेश्वरी, कामाख्या, दुर्गा, अष्टभैरव, कृष्ण उपासना शुभ रहे.
20. मंगल, शनि-काली, तारा, श्मशान साधना, शरभ, भैरव, मंगल चण्डिका, उग्रदेवता की उपासना करे.
21. मंगल,राहु-निम्न श्रेणी की उपासना, भैरव, छिन्नमस्ता, धूमावती, नीलतारा की उपासना करे.
22. मंगल,केतु-वाराही, दुर्गा, शिव, विष्णु, गणेश, हनुमान व भैरव की उपासना शुभ रहे.
23. बुध-गणेश, दुर्गा, विष्णु, सरस्वती, गंधर्व उपासना शुभ रहे.
24. बुध, गुरू-बगलामुखी, सरस्वती, गायत्री, विष्णु उपासना शुभ रहे.
25. बुध, शुक्र-कामाख्या, कामेश्वरी, लक्ष्मी, भैरवी, मातंगी, भुवनेश्वरी, कृष्ण उपासना शुभ रहे.
भाग- 5
26. बुध, शनि- राम, शिव, हनुमान, उच्छिष्टगणपति, यक्षिणी सिद्धि उपासना करे.
27. बुध, राहु-पिशाचि विद्या, गारूडी विद्या, धूमावती विघ्नेशगणपति व आशुतोषशिव की उपासना करे.
28. बुध,केतु-मृत्युंज्जय शिव, गणेश, कार्तिकेय, हनुमान, भैरव, दुर्गा उपासना करे.
29. गुरू-विष्णु, शिव याज्ञिक कर्म बगलामुखी उपासना करे. यदि कुण्डली में 6,8,12 वें स्थान में हो तो बगलामुखी उपासना में विलम्ब से लाभ होवेे , गुरू राहु, गुरू शनि योग से भी विलम्ब से लाभ होवेे, सिद्धि प्राप्त हावे किन्तु पुनः क्षय हो जावे. गायत्री उपासना अवश्य करे.
30. गुरू-शुक्र, गुरू शनि, गुरू मंगल, गुरू राहु, गुरू केतु योग से साधना में विलम्ब आते है या सिद्धि विलम्ब से होती है. जिससे साधना में श्रद्धा अश्रद्धा पैदा हो जाती है. अतः गुरू का उपयोग करे.
31. शुक्र-लक्ष्मी, तंत्र-मंत्र मार्ग का ज्ञाता होवे. शिव, मृत्युंज्जय श्री विद्या, त्रिपुरसुन्दरी, दुर्गा उपासना, हेरम्ब, गणपति, मातंगी, शाकम्भरी, शबरी उपासना शुभ रहे. शुक्र- शनि, शुक्र-राहु, शुक्र-केतु, योग से क्षुद्र सिद्धि की ओर साधक का मन दौड़ता है.
32. शनि-शनि उपासना से पूर्व पापों का क्षय होता है. दुर्गा, काली, तारा, आसुरी दुर्गा व भैरवादि की उपासना करता है.
33. शनि- राहु, शनि, केतु आदि के कारण भी मानसिक योजनाएं प्राप्त होती है. अतः शत्रुओं को दण्ड देने हेतु उग्र साधनायें करता है.
34. कभी-कभी धूमावती की उपासना से भी ऐसे पापों व विघ्नों का निवारण होता है. परन्तु धूमावती उपासना आसान नहीं, सोच समझ कर करे क्योंकि धूमावती विघ्नों की अधिष्ठात्री है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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