बंगाल हार के बाद फूटा बीजेपी उपाध्यक्ष का गुस्सा, बोले- टीएमसी से आए कचरे ने हराया चुनाव


प्रेषित समय :20:16:26 PM / Sun, May 2nd, 2021

नई दिल्ली. 2020 से तृणमूल के कचरे (नेताओं) से दूर रहने की आवाज उठा रहे थे, लेकिन पार्टी के भीतर हमारी आवाज नहीं सुनी गई. दूसरे के घर के कचरे से हम अपना घर नहीं सजा सकते, लेकिन यह बात न तो पार्टी प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समझ सके, न पार्टी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष और न ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह. नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर पश्चिम बंगाल भाजपा के एक उपाध्यक्ष के निकटवर्ती सूत्र ने मीडिया से यह बात कही है. 

हम खुलकर बोल दें तो कल निष्कासित कर दिए जाएंगे

वरिष्ठ नेता ने आगे कहा, अगर हम हार के कारण पर खुलकर बोल दें तो कल पार्टी से निष्कासित कर दिए जाएंगे, लेकिन यह सच है कि जनता ने विभीषणों को स्वीकार नहीं किया. इनमें वो विभीषण तो बिल्कुल नहीं जिन पर नारदा, शारदा समेत घोटाले के आरोप थे. 
भाजपा उपाध्यक्ष का कहना है कि इन नेताओं के तृणमूल छोड़ देने से उनकी पार्टी की गंदगी बाहर हो गई, लेकिन भाजपा ने अपने सिर पर इन्हें बोझ की तरह बैठा लिया है. भाजपा को सोचना होगा कि केवल जोड़-तोड़, पैसा, पॉवर के बल पर चुनाव नहीं जीता जाता. चुनाव प्रचार में भाजपा अध्यक्ष सभी केंद्रीय पार्टी के नेता, कई राज्यों के नेता, कार्यकर्ता सब लगे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत 22 केंद्रीय मंत्री, 6 राज्यों के मुख्यमंत्री ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन हम जीतता हुआ चुनाव हार गए.

लोकसभा का चुनाव में भाजपा नेताओं के बल पर हासिल की थी जीत

भाजपा नेता का कहना है कि पार्टी को इस हार की ईमानदारी से समीक्षा करनी चाहिए. हम लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर आए थे. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे, भाजपा के साफ-सुथरे उम्मीदवार और पुराने नेताओं के भरोसे मुमकिन हो पाया. संगठनात्मक क्षमता से यह जीत हासिल हुई थी. 

चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही भटक गया भाजपा का प्रचार

33 साल पार्टी को दिए हैं. दावे से कह सकता हूं कि अक्टूबर-नवंबर तक जनता ममता बनर्जी के शासन से त्रस्त हो गई थी. भाजपा के नेताओं ने तृणमूल के ही नेताओं की मार खाकर पार्टी को खड़ा किया था, लेकिन जिस दिन से तृणमूल के दागी नेताओं की एंट्री शुरू हुई, भाजपा के बंगाल में दिन लदने लगे. चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद भाजपा चुनाव प्रचार से बहक गया था. तृणमूल कांग्रेस बंगाली अस्मिता के बल पर चुनाव लड़ रही थी और हमारी पार्टी इसकी अहमियत को समझ ही नहीं पाई. अब नतीजा सामने है.

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