नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के 36,000 से अधिक प्राइवेट स्कूलों को कोविड (शैक्षणिक वर्ष 20-21 वर्ष) के समय में कुल स्कूल फीस का केवल 85 फीसदी फीस वसूलने का निर्देश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्कूल किसी भी छात्र को फीस नहीं देने के कारण ऑनलाइन या क्लास में भाग लेने से नहीं रोकेंगे. इसके अलावा रिजल्ट को नहीं रोकेंगे.
कानून में स्कूल प्रबंधन उन एक्टिविटीज और फैसिलिटीज़ की फीस नहीं ले सकते है, जो उन्होंने किन्हीं परिस्थितियों के कारण अपने छात्रों को प्रदान या उपलब्ध नहीं कराई. इस तरह की फीस की मांग करना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण में शामिल होने जैसा है.
लॉकडाउन के कारण स्कूलों को शैक्षणिक वर्ष 20- 2021 के दौरान पर्याप्त रूप से लंबे समय के लिए खोलने की अनुमति नहीं थी. स्कूल नहीं खुलने से स्कूल प्रबंधन ने पेट्रोल, डीजल, बिजली, रखरखाव लागत, जल शुल्क, स्टेशनरी शुल्क आदि पर खर्च और लागत को बचाया होगा, लेकिन इस दौरान छात्रों को बिना सुविधा प्रदान किए स्कूल ने फीस ली.
हालांकि कोई सटीक (तथ्यात्मक) डेटा नहीं है कि इस तरह की बचत किस हद तक की गई है या की जा सकती है या स्कूल प्रबंधन द्वारा प्राप्त की जा सकती है. सटीक गणितीय आंकलन के बिना हम ये मानेंगे कि स्कूल प्रबंधन ने स्कूल की तरफ से तय की गई सालाना स्कूल फीस का लगभग 15 प्रतिशत बचाया होगा.
सरकारें आपदा प्रबंधन अधिनियम या महामारी अधिनियम के तहत निजी सहायता प्राप्त स्कूलों की स्कूल फीस को रेगुलेट या कंट्रोल नहीं कर सकती हैं. लेकिन स्कूल एक्टिविटीज और फैसिलिटीज़ के संबंध में फीस वसूल नहीं कर सकते हैं, जो उन्होंने किन्हीं परिस्थितियों के कारण अपने छात्रों को प्रदान या उपलब्ध नहीं कराई है.
दो निजी पक्षों में हुए करार के मामले में किसी वस्तु या सेवा के लिए फीस या दरें निर्धारित करने के आर्थिक पहलुओं को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, फिर चाहे वो निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों की स्कूल फीस का मुद्दा क्यों ना हो.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-राजस्थान के कोटा में पोते को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए बुजुर्ग दंपति ट्रेन के सामने कूदे, मौत
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