पुण्य तिथि. जीवन में आपके संस्कार हैं, हृदय में आप हैं, हम सब पर आपका आशीर्वाद है, आपके चरणों में शत शत नमन! जिनके साथ बरसों गुजारे हों उनके बारे में कुछ कहना और एक-दो पन्नों में उनके समग्र जीवन को समेट पाना असहज ही नहीं बल्कि असंभव ही है, फिर पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी, भाई साहब के लिए तो कुछ भी कह पाना सूरज को दीपक दिखाने जैसा ही है. उनके साथ देखी दशकों की यात्रा में उनके रचनात्मक और बहुआयामी सुनहरे पक्षों के बारे में जानने, समझने और अनुसरण करने के ढेरों अवसर प्राप्त हुए. समाज-जीवन और स्थानीय परिवेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उनकी अलग ही पहचान रही. उनका समग्र जीवन लोगों की भलाई के लिए समर्पित रहा. आज वे हमारे बीच नहीं है मगर उनके काम, प्रगाढ़ जनसम्पर्क में अर्जित लोकप्रियता और दुआओं का बहुत बड़ा संसार हम अनुभव करते हैं. उनके देवलोकगमन के बाद वागड़ क्षेत्र, ब्राह्मण समाज, कर्मचारी जगत, क्षेत्र के लोगों को दिए गए उनके सहयोग व योगदान को देखते हुए ब्राह्मण महासभा के प्रतिनिधियों ने उनके बारे में स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन का सुझाव दिया था, लोगों की भावनाओं के अनुरूप पूज्य भाई साहब की स्मृति को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए ब्राह्मण महासभा, बांसवाड़ा द्वारा- छोटे कद का बड़ा आदमी, शीर्षक से स्मृति ग्रंथ प्रकाशित किया गया.
इस ग्रंथ में भाई साहब के व्यक्तित्व और कर्मयोग के साथ ही उनके साथ काम कर चुके और सम्पर्क में रह चुके व्यक्तित्वों के संस्मरण, अनुभवों तथा विचारों का समावेश किया गया. स्मृति ग्रंथ के सम्पादन-प्रकाशन से लेकर इससे जुड़ी पूरी यात्रा में सहयोगी रहे महासभा के पदाधिकारियों, सदस्यों, लेखक, महानुभावों आदि के साथ ही अथक प्रयासों से इस कार्य को मूर्त रूप प्रदान करने में अग्रणी और समर्पित रहे भाई कवि हरीश आचार्य तथा मार्ग दर्शक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के उपनिदेशक-उदयपुर, डॉ. दीपक आचार्य का योगदान उल्लेखनीय रहा, जिनके परिश्रम से यह सफर ऐतिहासिक एवं स्वर्णिम स्वरूप प्राप्त कर पाया.
कुछ व्यक्तित्व कालचक्र के प्रवाह से मुक्त शतदल कमल की भांति सदैव दमकते रहते हैं, ज़िन्दगी की आपाधापी जिनके आगे बौनी रह जाती है और शेष रहती है सिर्फ स्मृतियां!
भाई साहब के नाम से स्मरण रहे पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी उन लोगों में से हैं जो सदैव अपने समाज के उत्थान के विषय में हमेशा चिंतित रहते थे तथा निष्ठापूर्वक जाति सेवा द्वारा समाज ऋण से मुक्त होने के लिए हर समय प्रयत्नशील रहे.
भाई साहब ने राजकीय सेवा में सभी वर्ग के महानुभावों को जो सेवा और उनकी कठिनाइयों का समाधान किया है उसका अनुभव मुझे उनके साथ गांवों में सम्पर्क के दौरान हुआ जब ब्राह्मण महासभा या औदिच्य छात्रावास के कार्य हेतु लोगों ने आगे बढ़कर सहयोग किया. हर व्यक्ति का नाम उनकी ज़ुबान पर स्मरण था. द्विवेदी ने औदिच्य छात्रावास की जमीन मामूली राशि तीन अंकों में समाज के लिए उपलब्ध करवाई तथा दोनों जि़लों में 200 से अधिक आजीवन सदस्य बनाए. भाई साहब के सम्पर्क में रहे हर व्यक्ति चाहे समाज का हो या अन्य, उसके दुख में सदैव सम्मिलित होने में प्रयत्नशील रहते थे. विगत बीस वर्षों में मेरी जानकारी है कि परशुराम एवं शंकराचार्य जयंती मुख्य स्थान एवं शहर में मनाने का प्रयास किया तथा परशुरामजी के मंदिर जीर्णोद्धार के लिए चिंतित रहते थे. वागड़ क्षेत्र बांसवाड़ा और डूंगरपुर के औदिच्य ब्राह्मणों का स्नेह मिलन स्थान परसोलिया पर भी दो-तीन सम्मेलन किए. राजस्थान ब्राह्मण महासभा के हर कार्यक्रम व सम्मेलन हेतु स्वयं के खर्च पर ही कार्यक्रम आयोजित करते थे. किसी से भी योगदान या रसीद मार्फत राशि नहीं ली. वागड़ क्षेत्र के ब्राह्मण वर्ग को एकता के सूत्र में बांधने का पूर्ण प्रयास किया. उन्होंने निष्कलंक बेणेश्वर धाम के लिए भी सहयोग दिया.
भाई साहब लक्ष्मीनारायणजी ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड के विद्वान थे. यह ज्ञान उन्हें मां त्रिपुरा सुंदरी की 1954 से नवरात्रि पर पूजा-पाठ और अनुष्ठान से प्राप्त हुआ था. उसका उपयोग उन्होने हर व्यक्ति की आद्य देवक, आदि मौलिक एवं आध्यात्मिक उलझनों का निराकरण करने में सहयोग किया
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-राजस्थान के कोटा में पोते को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए बुजुर्ग दंपति ट्रेन के सामने कूदे, मौत
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