सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो इस श्लोक का पाठ करें

सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो इस श्लोक का पाठ करें

प्रेषित समय :20:49:04 PM / Sun, May 9th, 2021

सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके. शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते..

शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे. सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते..

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते. भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ..

नौ दुर्गाओं के नौ दिव्य नाम ब्रहमा जी की वाणी में इस प्रकार दिये गये हैं .

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी. तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्..

पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च. सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्.

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः

यदि कोई समस्या हैं तो उसके निवारण के लिए भी संकल्प किया जा सकता हैं.

संकल्प लेने के बाद ही पढे. अगर एक महीना पढा तो सभी काम अपने आप बनने शुरु हो जायेगे उसके बाद भी पडना अनिवार्य हैं . शक्ति उपासना के बिना जीवन मे किसी भी प्रकार की शक्ति नही प्राप्त होती. अधिक शाक्ति उपासना भी व्यथा हैं जब तक शिव या गुरु की उपासना ना की जाये. क्योकि शक्ति वहीं होती हैं जहाँ शिव होता हैं. शिव वहीं होता हैं जहाँ शक्ति होती हैं. शिव और गुरु मे कोई अंतर नही होता. गुरु साक्षात शिव के रुप मे हमारे सामाने होता हैं इसलिये हमें गुरु की कीमती समझनी चाहिए और जितनी हो सके उतनी सेवा करनी चाहिए ताकि गुरु कृपा मिल सके.

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने.

यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती..

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी.

आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी..

पिनाक धारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः.

मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः..

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्द स्वरूपिणी.

अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः..

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा.

सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञ विनाशिनी..

अपर्णा अनेकवर्णा च पाटला पाटलावती.

पट्टाम्बर परीधाना कलम अण्जीर रंजिनी..

अमेय विक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी.

वनदुर्गा च मातंगी मतंग मुनि पूजिता..

ब्राह्मी महेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा.

चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरूषाकृतिः..

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा.

बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना..

निशुम्भ शुम्भ हननी महिषासुर मर्दिनी.

मधुकैटभ हन्त्री च चण्डमुण्ड विनाशिनी..

सर्वासुर विनाशा च सर्वदानव घातिनी.

सर्वशास्त्र मयी सत्या सर्वास्त्र धारिणी तथा..

अनेक शस्त्र हस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी.

कुमारी च एककन्या च कैशोरी युवती यतिः..

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा.

महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला..

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी.

नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी..

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी.

कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी..

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्.

नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति..

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च.

चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम्..

दुर्गासप्तशतीके सिद्ध मत्र-

दुर्गा ध्यान मंत्र

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: .

स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ॥

दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या .

सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता ॥

हे माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याण मयी बुद्धि प्रदान करती हैं. दु:ख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सब का उपकार करने के लिये सदा मचलता रहता हो.

सब प्रकार के मंगल प्रदान करने वाला मंत्र

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके.

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो. कल्याण दायिनी शिवा हो. सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो. तुम्हें नमस्कार है.

बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:.

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है.

मन पसन्द पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्.

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो.

विपत्ति नाश और शुभ की प्राप्ति के लिये

करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:.

वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश करो .

बाधा शान्ति के लिये

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि.

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो.

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्.

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें - 9131366453

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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