चंडीगढ़. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एक अहम निर्णय सुनाते हुए कहा कि महिला का विवाहेतर संबंध है या रहा है तो भी इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वह महिला अच्छी मां नहीं है और उसके बच्चे की कस्टडी उसे नहीं दी जानी चाहिए. जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल ने यह टिप्पणी एक महिला की अपनी नाबालिग बेटी की कस्टडी लेने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की.
हाई कोर्ट ने पुरुष प्रधान समाज में महिला के नैतिक चरित्र के बारे में टीका टिप्पणी करना आम बात बताते हुए, चार साल की बच्ची की कस्टडी मां के हक में देने की मांग स्वीकार कर ली. बच्ची के पिता ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी का उसकी बहन के पति से अवैध संबंध था. इसी के चलते उसने याची को आस्ट्रेलिया बुलाया था, ताकि उसकी बहन का घर बर्बाद न हो. वैसे भी याची आस्ट्रेलिया में अकेली रहती है, जबकि यहां पर बच्ची दादा-दादी और अपने पिता के साथ रह रही है.
कोर्ट ने कहा कि महिला का पति इन आरोपों को साबित कर पाने में असफल रहा है कि उसकी पत्नी का विवाहेतर संबंध था. कोर्ट ने कहा कि याचिका में केवल आरोप के अलावा पति कोर्ट के समक्ष कोई भी समर्थित दस्तावेज नहीं रख सका. कोर्ट ने कहा कि आधुनिक समय में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं कि सिंगल पेरेंट्स द्वारा लालन-पालन किए गए बच्चे आज जिम्मेदार वयस्क बन गए हैं और विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्र निर्माण के कार्य में सहयोग कर रहे हैं.
याचिका दाखिल करते हुए महिला ने बताया कि उनका विवाह लुधियाना में 2013 में हुआ था. याची का पति भारतीय नागरिक था, जो बाद में ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता प्राप्त कर चुका था. इस बीच, उसने याची को आस्ट्रेलिया बुलाया और दोनों को वहां की नागरिकता मिल गई. इस दौरान दोनों की एक बच्ची हुई और कुछ समय तक सब ठीक चला. इसके बाद दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे.
महिला ने ऑस्ट्रेलिया के फेडरल सर्किट कोर्ट में 2019 में तलाक की याचिका दायर की थी. हालांकि तलाक पर अंतिम निर्णय लेने से पहले उसके पति ने वादा किया था कि वह भविष्य में अपने व्यवहार में सुधार करेगा. इस प्रकार, वे फिर से एक साथ रहने लगे. एक साथ रहने के क्रम में वे जनवरी 2020 में भारत पहुंचे और उसके बाद पति ने कथित तौर पर बच्ची का पासपोर्ट रख लिया और बच्ची को अपने घर ले गया तथा पत्नी को धमकी देनी शुरू कर दी.
इसके बाद, अपनी सुरक्षा की आशंका के मद्देनजर वह आस्ट्रेलिया लौट गई, जहां उसने फेडरल सर्किट कोर्ट में अपनी नाबालिग बच्ची की कस्टडी के लिए याचिका दायर की. कोर्ट ने अप्रैल 2020 में एक अंतरिम आदेश भी पारित किया, जिसमें पति को उस बच्ची को आस्ट्रेलिया वापस भेजने का निर्देश दिया गया था. इस बीच, महिला ने बच्ची की कस्टडी के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की थी.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट का भी आदेश है और बच्ची पांच वर्ष की आयु से छोटी भी है, वह ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है तथा याचिकाकर्ता ऑस्ट्रेलिया में सुव्यवस्थित तरीके से रह रही है. ऐसे में कोर्ट का मानना है कि यह बच्ची के हित और कल्याण की दृष्टि से सबसे अच्छा होगा कि उसकी कस्टडी याचिकाकर्ता मां को सौंप दी जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-नेशनल खिलाड़ी का पंजाब पुलिस के अफसर पर लगाए आरोप, कहा- नौकरी देने के बहाने किया रेप
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