20 जुलाई से 15 नवम्बर 2021 तक चातुर्मास, जानें चातुर्मास्य व्रत की महिमा

20 जुलाई से 15 नवम्बर 2021 तक चातुर्मास, जानें चातुर्मास्य व्रत की महिमा

प्रेषित समय :19:45:35 PM / Sat, Jul 17th, 2021

 20 जुलाई 2021 मंगलवार से 15 नवम्बर 2021 सोमवार तक चातुर्मास है.

 आषाढ़ के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन उपवास करके मनुष्य भक्तिपूर्वक चातुर्मास्य व्रत प्रारंभ करे. एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करके मनुष्य जिस फल को पाता है, वही चातुर्मास्य व्रत के अनुष्ठान से प्राप्त कर लेता है.

 इन चार महीनों में ब्रह्मचर्य का पालन, त्याग, पत्तल पर भोजन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, स्नान, दान, पुण्य आदि विशेष लाभप्रद होते हैं.

 व्रतों में सबसे उत्तम व्रत है – ब्रह्मचर्य का पालन. ब्रह्मचर्य तपस्या का सार है और महान फल देने वाला है. ब्रह्मचर्य से बढ़कर धर्म का उत्तम साधन दूसरा नहीं है. विशेषतः चतुर्मास में यह व्रत संसार में अधिक गुणकारक है.

 मनुष्य सदा प्रिय वस्तु की इच्छा करता है. जो चतुर्मास में अपने प्रिय भोगों का श्रद्धा एवं प्रयत्नपूर्वक त्याग करता है, उसकी त्यागी हुई वे वस्तुएँ उसे अक्षय रूप में प्राप्त होती हैं. चतुर्मास में गुड़ का त्याग करने से मनुष्य को मधुरता की प्राप्ति होती है. ताम्बूल का त्याग करने से मनुष्य भोग-सामग्री से सम्पन्न होता है और उसका कंठ सुरीला होता है. दही छोड़ने वाले मनुष्य को गोलोक मिलता है. नमक छोड़ने वाले के सभी पूर्तकर्म (परोपकार एवं धर्म सम्बन्धी कार्य) सफल होते हैं. जो मौनव्रत धारण करता है उसकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं करता.

 चतुर्मास में काले एवं नीले रंग के वस्त्र त्याग देने चाहिए. नीले वस्त्र को देखने से जो दोष लगता है उसकी शुद्धि भगवान सूर्यनारायण के दर्शन से होती है. कुसुम्भ (लाल) रंग व केसर का भी त्याग कर देना चाहिए.

 आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि के योगनिद्रा में प्रवृत्त हो जाने पर मनुष्य चार मास अर्थात् कार्तिक की पूर्णिमा तक भूमि पर शयन करें . ऐसा करने वाला मनुष्य बहुत से धन से युक्त होता और विमान प्राप्त करता है, बिना माँगे स्वतः प्राप्त हुए अन्न का भोजन करने से बावली और कुआँ बनवाने का फल प्राप्त होता है. जो भगवान जनार्दन के शयन करने पर शहद का सेवन करता है, उसे महान पाप लगता है. चतुर्मास में अनार, नींबू, नारियल तथा मिर्च, उड़द और चने का भी त्याग करें . जो प्राणियों की हिंसा त्याग कर द्रोह छोड़ देता है, वह भी पूर्वोक्त पुण्य का भागी होता है.

 चातुर्मास्य में परनिंदा का विशेष रूप से त्याग करें . परनिंदा को सुनने वाला भी पापी होता है.

परनिंदा महापापं परनिंदा महाभयं.

परनिंदा महद् दुःखं न तस्याः पातकं परम्..

 ‘परनिंदा महान पाप है, परनिंदा महान भय है, परनिंदा महान दुःख है और पर निंदा से बढ़कर दूसरा कोई पातक नहीं है.’

 (स्कं. पु. ब्रा. चा. मा. 4.25)

 चतुर्मास में ताँबे के पात्र में भोजन विशेष रूप से त्याज्य है. काँसे के बर्तनों का त्याग करके मनुष्य अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करे. अगर कोई धातुपात्रों का भी त्याग करके पलाशपत्र, मदारपत्र या वटपत्र की पत्तल में भोजन करे तो इसका अनुपम फल बताया गया है. अन्य किसी प्रकार का पात्र न मिलने पर मिट्टी का पात्र ही उत्तम है अथवा स्वयं ही पलाश के पत्ते लाकर उनकी पत्तल बनाये और उससे भोजन-पात्र का कार्य ले. पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में किया गया भोजन चन्द्रायण व्रत एवं एकादशी व्रत के समान पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है.

 प्रतिदिन एक समय भोजन करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ के फल का भागी होता है. पंचगव्य सेवन करने वाले मनुष्य को चन्द्रायण व्रत का फल मिलता है. यदि धीर पुरुष चतुर्मास में नित्य परिमित अन्न का भोजन करता है तो उसके सब पातकों का नाश हो जाता है और वह वैकुण्ठ धाम को पाता है. चतुर्मास में केवल एक ही अन्न का भोजन करने वाला मनुष्य रोगी नहीं होता.

 जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं.

 पंद्रह दिन में एक दिन संपूर्ण उपवास करने से शरीर के दोष जल जाते हैं और चौदह दिनों में तैयार हुए भोजन का रस ओज में बदल जाता है. इसलिए एकादशी के उपवास की महिमा है. वैसे तो गृहस्थ को महीने में केवल शुक्लपक्ष की एकादशी रखनी चाहिए, किंतु चतुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशियाँ रखनी चाहिए.

 जो बात करते हुए भोजन करता है, उसके वार्तालाप से अन्न अशुद्ध हो जाता है. वह केवल पाप का भोजन करता है. जो मौन होकर भोजन करता है, वह कभी दुःख में नहीं पड़ता. मौन होकर भोजन करने वाले राक्षस भी स्वर्गलोक में चले गये हैं. यदि पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जायें तो वह अशुद्ध हो जाता है. यदि मानव उस अपवित्र अन्न को खा ले तो वह दोष का भागी होता है. जो नरश्रेष्ठ प्रतिदिन ‘ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा’ – इस प्रकार प्राणवायु को पाँच आहुतियाँ देकर मौन हो भोजन करता है, उसके पाँच पातक निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं.

 चतुर्मास में जैसे भगवान विष्णु आराधनीय हैं, वैसे ही ब्राह्मण भी. भाद्रपद मास आने पर उनकी महापूजा होती है. जो चतुर्मास में भगवान विष्णु के आगे खड़ा होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है.

 चतुर्मास सब गुणों से युक्त समय है. इसमें धर्मयुक्त श्रद्धा से शुभ कर्मों का अनुष्ठान करना चाहिए.
 सत्संगे द्विजभक्तिश्च गुरुदेवाग्नितर्पणम्.
गोप्रदानं वेदपाठः सत्क्रिया सत्यभाषणम्..
गोभक्तिर्दानभक्तिश्च सदा धर्मस्य साधनम्.

 ‘सत्संग, भक्ति, गुरु, देवता और अग्नि का तर्पण, गोदान, वेदपाठ, सत्कर्म, सत्यभाषण, गोभक्ति और दान में प्रीति – ये सब सदा धर्म के साधन हैं.’

 देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक उक्त धर्मों का साधन एवं नियम महान फल देने वाला है. चतुर्मास में भगवान नारायण योगनिद्रा में शयन करते हैं, इसलिए चार मास शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नहीं होते. ये मास तपस्या करने के हैं.

 चतुर्मास में योगाभ्यास करने वाला मनुष्य ब्रह्मपद को प्राप्त होता है. ‘नमो नारायणाय’ का जप करने से सौ गुने फल की प्राप्ति होती है. यदि मनुष्य चतुर्मास में भक्तिपूर्वक योग के अभ्यास में तत्पर न हुआ तो निःसंदेह उसके हाथ से अमृत का कलश गिर गया. जो मनुष्य नियम, व्रत अथवा जप के बिना चौमासा बिताता है वह मूर्ख है.

 बुद्धिमान मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखने का प्रयत्न करना चाहिए. मन के भलीभाँति वश में होने से ही पूर्णतः ज्ञान की प्राप्ति होती है.
 सत्यमेकं परो धर्मः सत्यमेकं परं तपः.
सत्यमेकं परं ज्ञानं सत्ये धर्मः प्रतिष्ठितः..
धर्ममूलमहिंसा च मनसा तां च चिन्तयन्.
कर्मणा च तथा वाचा तत एतां समाचरेत्..

 ‘एकमात्र सत्य ही परम धर्म है. एक सत्य ही परम तप है. केवल सत्य ही परम ज्ञान है और सत्य में ही धर्म की प्रतिष्ठा है. अहिंसा धर्म का मूल है. इसलिए उस अहिंसा को मन, वाणी और क्रिया के द्वारा आचरण में लाना चाहिए.’

 (स्कं. पु. ब्रा. 2.18-19) 
 (पद्म पुराण के उत्तर खंड, स्कंद पुराण के ब्राह्म खंड एवं नागर खंड उत्तरार्ध से संकलित).
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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