ये क्या किया कैलाश जी-मेंदोला जी?

ये क्या किया कैलाश जी-मेंदोला जी?

प्रेषित समय :13:10:50 PM / Fri, Aug 13th, 2021

निरुक्त भार्गव, उज्जैन. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को लगातार विवादों में बने रहने की जिद ना जाने क्यों है? शुक्रवार तड़के उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर परिसर में उनकी मौजूदगी में कुछ इसी तरह का एक और विवाद उनके साथ जुड़ गया. विधायक भाई रमेश मेंदोला और विधायक पुत्र आकाश विजयवर्गीय भी उनके साथ ही थे.

पवित्र श्रावण माह जारी है और 13 अगस्त को नागपंचमी का त्योहार भी है. मार्च 2020 में कोरोना महामारी की पहली लहर के समय से ही महाकालेश्वर मन्दिर में प्रतिदिन अलसुबह 4 बजे होने वाली भस्म आरती में किसी भी श्रद्धालू के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा है. नागपंचमी के अवसर पर वर्ष में एक ही बार खुलने वाले नागचंद्रेश्वर मंदिर के प्रत्यक्ष दर्शन भी प्रतिबंधित हैं.

मगर कैलाश जी और उनकी इंदौर और उज्जैन की मंडली को जैसे नियम-कायदों से कोई सरोकार ही नहीं है! पिछले वर्ष की ही तरह वो इस बार भी फौज-फाटे के साथ बेधड़क उन देवी-देवताओं के दर्शन के लिए पहुंच गए, जहां आम श्रद्धालू किसी भी स्थितियों नहीं पहुंच सकता है! प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार भस्म आरती सम्पादित करने वाले पुजारियों को मंदिर में प्रविष्ट होने से बलपूर्वक रोका गया, जिससे परंपरा का पालन करने में काफी विलंब हो गया.

श्रावण माह में बाबा महाकाल के दर्शन, पूजन, अभिषेक के लिए हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन पहुंच रहे हैं. राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, भाजपा अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, सांसद-विधायक, न्यायाधिपति वगैरह भी निरंतर पधार ही रहे हैं. बावजूद इसके, इन किसी भी विशिष्ट व्यक्ति ने भस्म आरती के दर्शन नहीं किए हैं. प्रोटोकॉल होने पर भी उक्त लोगों ने नंदी हॉल के पीछे से आम श्रद्धालु की तरह पूजन व अभिषेक किया.

प्रश्न खड़ा होता है कि उज्जैन के कलेक्टर और एसपी तथा उनके मातहत अमला किस तरह वीआईपी कल्चर को मान्यता देकर श्रद्धालुओं के बीच भेदभाव कर रहा है? आखिर मंदिर प्रशासन को ये अधिकार किसने दे दिए हैं कि आज सुबह के घटनाक्रम की तरह वो जब चाहे  सीसीटीवी बंद करवा देता है? वास्तविक स्थिति को सामने लाने के लिए जब खबरपालिका कथित जवाबदेह अफसर को ढूंढती है, तो जनता के ये सभी नौकर शुतुरमुर्ग क्यों बन जाते हैं? इस तरह की घटनाओं की बार-बार पुनरावृत्ति के बाद भी कोई प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाए जाते? क्योंकर कोई कार्रवाई नियम-कायदे तोडऩे वालों के विरुद्ध नहीं की जाती?

आज के दौर में प्रबुद्ध समाज, जागरूक मीडिया, सतर्क न्यायपालिका और जनप्रतिनिधियों के प्रति आम लोगों का विश्वास कम जरूर हुआ है, लेकिन समाप्त नहीं! फिर भी कोई कुछ सुनेगा नहीं, बोलेगा नहीं, लिखेगा और दिखाएगा नहीं और कुछ करेगा भी नहीं, तो कोई बात नहीं. महाकालजी तो उनका तीसरा नेत्र खोलेंगे ही.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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