नि:सन्तानों की गोद भरने वाली स्कंदमाता का विशेष भोग एवं पूजा-विधि

नि:सन्तानों की गोद भरने वाली स्कंदमाता का विशेष भोग एवं पूजा-विधि

प्रेषित समय :19:30:45 PM / Sun, Oct 10th, 2021

*_माता जगत जननी, जगदम्बा भवानी दुर्गा देवी के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है . इन्हें स्कंद कुमार कार्तिकेय की जननी के वजह से स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है . कार्तिकेय को पुराणों में कुमार, शौर, शक्तिधर आदि के नाम से भी इनके शौर्य का वर्णन किया गया है . इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है . इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है ._*
*_नवरात्रि के नव दिनों तक व्रत और उपवास करनेवाले साधक का मन इस दिन अर्थात पांचवें दिन विशुद्ध चक्र में होता है . क्योंकि माता स्कन्दमाता की पूजा नवरात्रि में पांचवें दिन की जाती है . इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे रहते हैं . स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल का फुल पकड़ा हुआ है ._*
*_माता का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं . इसी वजह से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है परन्तु इनका भी वाहन सिंह ही है . स्कन्द माता की पूजा भक्तों को उनके माता के वात्सल्य से भर देता है . एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके माँ की स्तुति करने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति का मोक्ष का मार्ग भी सुलभ हो जाता है ._*
*_रूप और सौंदर्य की अद्वितीय आभा लिए हुए माता अभय मुद्रा में कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं . पद्मासना देवी, विद्यावाहिनी दुर्गा तथा सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी यही स्कन्दमाता ही हैं . इनकी उपासना से साधक अलौकिक तेज पाता है, क्योंकि यही हिमालय की पुत्री पार्वती भी हैं . इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है जो अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम करती हैं ._*
*_इनको अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है . जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान ही स्नेह लुटाती हैं . स्कंदमाता की पूजा उसी प्रकार से करना चाहिए जैसे अन्य सभी देवियों का पूजन किया जाता है . शुद्ध चित से देवी का स्मरण करना चाहिए तथा पंचोपचार, षोडशोपचार या फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार स्कंदमाता की पूजा करने के पश्चात भगवान शिव जी की पूजा करनी चाहिए ._*
*_जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है . देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि सदैव बनी रहती है . वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए . कुमार कार्तिकेय की माता के रूप में इनकी पूजा करने से माता पूर्णत: वात्सल्य लुटाती हुई नज़र आती हैं ._*
*_माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है परन्तु जब-जब अत्याचारियों का अत्याचार बढ़ता है तब-तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का संहार करने चली आती हैं . शास्त्रों में कहा गया है कि आज के दिन साधकों का मन विशुद्ध चक्र में स्थित होता है, जिससे साधक के मन में समस्त बाह्य क्रियाओं और चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है . साधक ध्यान के माध्यम से चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होने लगता है ._*
*_सच्चा साधक अपनी साधना से समस्त लौकिक एवं सांसारिक माया के बन्धनों को त्याग कर वह पद्मासना माँ स्कन्दमाता के रूप में पूर्णतः समाहित हो जाता है . परन्तु साधक को चाहिए की अपने मन को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढे . पंचमी तिथि को स्कन्द माता सामान्य पूजा से ही अपने भक्त को पुत्र के समान स्नेह करती हैं . नि:सन्तान व्यक्ति आज माता का पूजन-अर्चन तथा मंत्र जप करके पुत्र दायिनी माता से पुत्र प्राप्त कर सकते हैं ._*
स्कन्दमाता का विशेष भोग
*_मारकंडेय पुराण में स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व बताया गया है . इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और भक्त मोक्ष की प्राप्ति करता है 
*_नवरात्रि में पंचमी के दिन पूजा करके भगवती स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए . इस प्रसाद को स्वयं ग्रहण न करके किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को देना चाहिए .
*इस प्रकार अपनी परम्परा अनुसार भी यत्र-तत्र माता को भोग समर्पित करने का विधान है . लेकिन विशेष रूप से केले के भोग से माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करती हैं .
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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