प्रतेयक व्यक्ति को लाइफ में शनि से करीब करीब साक्षत्कार अवशय होना पड़ता है शनि की कृपा जिस पर होजाये तो निसंतान को सन्तान व छोटे धंदे को बड़े व्यापार मे बदल देता है.
आपकी कुंडली मे शनि प्रवेश पाद का भी बहुत महत्व है.
रजत पाद:- जन्म नक्षत्र से शनि का प्रवेश का नक्षत्र 2 --5-- 9 स्थान पर हो तो शनि का प्रवेश रजत पाद से होता है शुभ फल कर्ता होता है मगर कुछ विलम्ब से कुछ निराशा के बाद अतः व्यक्ति को धर्य रखना चाहिये .
ताम्र पाद:- जन्म नक्षत्र से शनि का प्रवेश का नक्षत्र 3-7 -10 वे स्थान पर हो तो शनि का आगमन ताम्र पाद से होता है अतः व्यक्ति के जीवन मे लाभ -हानि उन्नति अवनति शुभ अशुभ फल लग्न कुंडली मे शनि की स्थिति के अनुसार होते है.
सवर्ण पाद:- जन्म नक्षत्र से जब शनि का किसी राशि मे प्रवेश का समय नक्षत्र 1- 6-- 11 वे स्थान पर हो तो शनि का आगमन सवर्ण पाद से होता है इस कारण इच्छित कार्य पूर्ण नही होते है रोग ऋण शत्रु परेशान करते है मान सम्मान धन और समय बर्बाद होता है.
लोह पाद:- जन्म नक्षत्र से जब किसी राशि मे शनि का प्रवेश का समय नक्षत्र 4--8--12 वे स्थान पर हो तो शनि का आगमन लोह पाद से होता है ये समय बहुत निराशाजनक होता है जातक का जीवन अंधकार की भांति हो जाता है.
शनि के कुछ मुख्य लग्न में प्रभाव:-
मेष लग्न में शनि अगर कुंडली मे षष्ठम -अष्टम या अस्त व. पाप ग्रस्त होने पर जातक के दरिद्र योग बन जाता है.
वृष लग्न में जातक की कुंडली मे दशम भाव का स्वामी शनि अगर -षष्ठम --अष्टम --द्वादश में स्थित हो तो जातक कितना ही प्रयास करले धन का अभाव योग बनता है.
मिथुन लग्न में अगर अष्टमेष शनि वक्री हो या अष्टम भाव मे कोई ग्रह वक्री हो तो अकस्मात धन हानि योग बनता है.
कुम्भ लग्न में लग्नस्थ शनि अष्टम हो और सूर्य द्वादश हो तो जातक के ऋण भार होने की सम्भावना बनती है.
धनदायक शनि :----
मेष लग्न में शनि मंगल और बृहस्पति ओर शुक्र अपनी राशि मे स्थित हो तो जातक असीम धन सम्पति का स्वामी होता है.
मेष लग्न में जातक की कुंडली मे यदि वृष --कर्क --सिंह व धनु राशि मे बृहस्पति और चंद्रमा की युक्ति हो तो गज केसरी योग के समक्ष फलस्वरूप धन सम्पति का मालिक होता है.
शनि की निर्बलता:-
लग्न का शत्रु होना:-
लग्नेश से अशुभ भाव मे बैठना:-
दशा नाथ का शत्रु होना,
त्रिक स्थान में अशुभ स्थान में बैठना,
शनि की शुभता:-
लग्न का मित्र होना:-
लग्नेश का शुभ स्थान में जाना:-
दशा नाथ से शुभ स्थान में होना,
निज भाव मे शुभ भाव मे शुभ स्थान में रहना.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कुंडली में द्वादशेश और बारहवां घर - चन्द्रमा के संभावित परिणाम
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