कुंडली में सातवें घर से व्यक्ति के विवाह और दाम्पत्य के संबंधों का राज खुल जाता है!

कुंडली में सातवें घर से व्यक्ति के विवाह और दाम्पत्य के संबंधों का राज खुल जाता है!

प्रेषित समय :19:11:38 PM / Mon, Oct 18th, 2021

यदि जातक की जन्म कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दांपत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव बन जाता है.

यदि जातक जन्म कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मंगल होने से जातक को मंगली योग होता है, इस योग के होने से जातक के विवाह में विलम्ब, विवाहोपरान्त पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में क्षीणता, तलाक एवं क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है.

यदि जातक की जन्म कुंडली के सातवें या सप्तम भाव में अगर अशुभ ग्रह या क्रूर ग्रह (शनि, राहू, केतु या मंगल) ग्रहों की दृष्टि हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह के योग उत्पन्न हो जाते हैं, शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है.

राहु, सूर्य और शनि पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं.

यदि जातक की कुंडली में अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए.

यदि जातक की कुंडली में सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय पूर्ण रहता है.

यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन अच्छा होता है.

यदि जातक की कुंडली में सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करे तो दाम्पत्य जीवन सुखी होता है.

यदि जातक की कुंडली में सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दांपत्य जीवन बहुत ही मधुर होता है.

यदि जातक की कुंडली में आगे पीछे ग्रहों से घिरे केंद्र में गज केसरी योग हो तथा आठवें कोई भी ग्रह नहीं हो तो जातक का वैवाहिक जीवन बहुत ही मधुर होता है.

यदि जातक की कुंडली मांगलिक हो, परन्तु यदि पंच महापुरुष योग बनाते हुए शुक्र अथवा गुरु से किसी कोण में सूर्य हो तो दांपत्य जीवन उच्च स्तरीय होता है.

यदि जातक की मांगलिक हो, परन्तु यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करें तो दांपत्य जीवन सुखी होता है.

यदि जातक की कुंडली में गुरु नीच का सातवें भाव में तथा नीच का मंगल लग्न में हो, यदि छठे, आठवें तथा बारहवें कोई ग्रह न हों, तथा किसी भी ग्रह के द्वारा पंच महापुरुष योग बनता हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है.

यदि जातक की कुंडली में लग्नेश अस्त हो, सूर्य दूसरे स्थान में और शनि बारहवें स्थान में हो तो विवाह सुख में अल्पता दर्शाता है.

सप्तमेश का नवमेश से योग किसी भी केंद्र में हो तथा बुध, गुरु अथवा शुक्र में से कोई भी या सभी उच्च राशि गत हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय पूर्ण रहता है.

यदि सप्तमेश उच्चस्थ होकर लग्नेश के साथ किसी केंद्र अथवा कोण में युति करे तो दाम्पत्य जीवन सुखी होता है.

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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