मछली मरी हुई’ राजकमल चौधरी का चर्चित उपन्यास है. खासकर इसलिए भी क्योंकि यह समलैंगिकता पर लिखा गया उपन्यास है. अब भारत में धारा-377 को खत्म कर दिया गया यानी समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. समलैंगिकता को बीमारी समझना बंद होना चाहिए. इस उपन्यास के बहाने से इस विषय पर बात की जा सकती है.
राजकमल चौधरी के इस उपन्यास का नायक निर्मल पद्मावत लेस्बियन को बीमारी मानकर कल्याणी की बेटी प्रिया के साथ बलात्कार करता है और अपने लॉजिक से उसे ठीक ठहराता है. प्रिया का पिता (डॉक्टर रघुवंश श्रेष्ठ सर्जन) जाने कैसा है जो बलात्कार के बाद कुछ कहता नहीं, इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने के बजाए आत्महत्या कर लेता है. आत्महत्या के पहले लिखा पत्र बहुत सी ग्रंथियों का खुलासा भी करता है.
निर्मल सेक्स के मामले में ‘मेल एडजस्टेड’ है. बीमार है. डॉक्टर कल्याणी के बारे में पत्र में लिखता है, कल्याणी जैसी औरतें ही प्यार कर सकती हैं. असाधारण बनना, ‘एब्नार्मल’ बनना, अधिक कठिन नहीं है. आदमी शराब की बोतल पीकर असाधारण बन सकता है. दौलत का थोड़ा-सा नशा, यौन-पिपासाओं की थोड़ी-सी उच्छृंखलता, थोड़े-से सामाजिक-अनैतिक कार्य आदमी को ‘एब्नॉर्मल’ बना देते हैं. कठिन है साधारण बनना, कठिन है अपनी जीवन-चर्या को सामान्यता-साधारण में बाँधकर रखना.
यह उपन्यास बड़े ही ड्रामेटिक स्टाइल में लिखा गया है. उपन्यास के सभी पात्र असाधारण लगेंगे. निर्मल पद्मावत के जीवन का ग्राफ देखना अद्भुत है. उत्तर बिहार का लड़का कराची से सियालकोट प्याला धोने का काम करता है. मौलवी साहब से उर्दू पढ़ता है. कानून, धर्म, विज्ञान, राजनीति के बारे में जानता है, स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाता है. मुंबई माल जहाज का बैरा होकर पूरी दुनिया का सफ़र करता है. अमेरिका जाकर अर्थव्यवस्था को समझता है और कलकत्ता में तीस मंजिल का स्काई स्क्रैपर कल्याणी मेंशन बनवाता है, वही रहता है.
वह बुद्धिमान है, ईमानदार है. सादगी, आभिजात्य और कुटिलता उसके व्यक्तित्व में घुलीमिली है. स्पष्ट और फिर भी अप्रकट. एक जगह वह कहता है – जो व्यवस्था आदमी को दरिद्र करे ,अपाहिज करे, उसे तोड़ देना चाहिए. अरस्तु और कार्लमार्क्स सही आदमी था.
वह कुशल व्यापारी है ताकतवर है पर मोहब्बत के मायने में निर्मल इनडिसीसिव है, निर्णयहीन है. वह मोहब्बत करता है. शीरी विशु मेहता की बीबी होने के बावजूद निर्मल के पास आ जाती है.
शीरीं के शरीर पर निर्मल का नैतिक अधिकार, धार्मिक अधिकार सामाजिक अधिकार है फिर भी निर्मल उस अधिकार का लाभ उठा नहीं पाता. शीरीं मरी हुई मछली है. शीरीं बीमार है भूखी है, न्यूरोटिक है. होमोसेक्सुअल है. उपन्यास के अंत इस प्रकार से होता है –
‘‘बरसात हुई. जल भर आया.. सूखी पड़ी नदी में फिर जल भर आया… नीली मछली मरी हुई, जी उठी. प्राण में प्यार, प्यार में प्यास, प्यास से मरी हुई नीली मछली के लिए नदी में जल भर आया. शीरीं मरी हुई मछली थी लेकिन पानी भर जाने से जी उठी है, यह पानी दरअसल करुणा का पानी है. शीरीं ऊपर उठ रही है. सतह से. जर्मन दार्शनिक कांट कहते हैं, हम लोगों ने चश्मा लगा रखा है अज्ञान का, परिवेश का, संस्कार का, संस्कृति का. इसलिए सत्य को देख नहीं पाते. यह उपन्यास एक व्यक्ति के अंतर्विरोधों को बखूबी दिखाता है. उत्तर आधुनिक का व्यावहारिक पक्ष इस उपन्यास में दिखता है. उसके अनुसार “अपने-अपने तरीके से दुनिया का हर आदमी अपना एक निजी ईश्वर, निजी प्रणय और अपनी मृत्यु की निजी तिथि तय करता है.”
उपन्यासः मछली मरी हुई
लेखकः राजकमल चौधरी
प्रकाशकः राजकमल पेपरबैक्स
मूल्यः 125रुपए
पृष्ठः 172
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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