हृदय रोग अति पुराना रोग है.ऋग्वेद में भी हृदय रोग की चर्चा की गयी है. भागवत महापुराण में भी इसकी चर्चा है.
है. हृदय रोग के निम्न कारक हैं-
१- चंद्रमा शत्रुगृही होने पर हृदय रोग देता है.
२- शुक्र मकर राशि का होकर हृदय रोग देता है.
३- मकर राशि गत सूर्य भी हृदयरोग देता है.
४- चतुर्थेश चतुर्थ भाव में पापयुक्त या पापदृष्ट हो तो हृदय रोग होता है.
५-सूर्य की चतुर्थ भाव में उपस्थिति भी हृदय रोग देती है.
६- चतुर्थेश पाप युक्त हो, चतुर्थ भाव पापी ग्रहों द्वारा पीड़ित हो तो हृदय रोग होता है.
७- रोग भाव का स्वामी सूर्य ( षष्ठेश)
चतुर्थ भाव में हो तो भी हृदय रोग होता है.
८- लग्नेश दुर्बल या पीड़ित हो तथा राहु चतुर्थ भाव में हो तो भी हृदय रोग होता है.
९- वृश्चिक राशि में गया सूर्य हृदय रोग देता है.
१०- चतुर्थ भाव में दो या इससे अधिक पापी ग्रहों की युति भी हृदय रोग देती है.
११- द्वादश भाव का कर्क राशि का राहु भी हृदय रोग का कारक हो जाता है.
१२- तृतीयेश यदि राहु या केतु संग हो तो हृदय रोग होता है.
१३- अष्टम भाव गत शनि भी हृदय रोग देता है.
१४- वृषभ राशि का सूर्य भी हृदय रोग देता है.
इसके अतिरिक्त अन्य योग भी हृदय रोग के कारक हैं.
.. हृदय रोग के उपाय..
हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति हेतु जप- तप, औषधि और रत्नादि सहारा है.
१-ललिता स्तोत्र या सहस्त्रनाम का दैनिक पाठ लाभदायक होगा.
२- सूर्योपासना, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी लाभदायक होगा.
३- नृसिंहमंत्र,पाशुपतास्त्रस्तोत्र का प्रतिदिन 11 माला जप व पाठ तथा यदि हृदय रोग का कारक राहु हो तो बटुक भैरव व महाविद्या का पाठ लाभदायक होगा.
४- शतचंडी पाठ और मृतसंजीवनी मंत्र का जप भी लाभदायक होगा.
५- भागवत्महापुराण से रासपंचाध्यायी का पाठ व सूर्य सूक्त का पाठ लाभप्रद रहेगा.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 20 नवम्बर 2021 तक का साप्ताहिक राशिफल
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