विश्व एड्स दिवस प्रतिवर्ष 1 दिसंबर को मनाया जाता है. यह दिन स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए इस बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए है. विश्व एड्स दिवस पहली बार 1988 में मनाया गया था. एक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम मानव इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस के कारण होने वाली एक जानलेवा स्थिति है. एचआईवी वायरस रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है और अन्य 'बीमारियों' के प्रति इसके प्रतिरोध को कम करता है.
विश्व एड्स दिवस विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व स्वास्थ्य दिवस, विश्व रक्त दाता दिवस, विश्व टीकाकरण सप्ताह, विश्व क्षय रोग दिवस, विश्व तंबाकू निषेध दिवस, विश्व मलेरिया दिवस, विश्व हेपेटाइटिस दिवस, विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह, विश्व रोगी सुरक्षा दिवस और विश्व चगास रोग दिवस के साथ चिह्नित 11 आधिकारिक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों में से एक है.
विश्व एड्स दिवस एचआईवी/एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने और महामारी के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए दुनिया भर के लोगों को एक साथ लाता है. एचआईवी एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बना हुआ है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2020 में 3.77 करोड़ लोग एड्स के साथ जी रहे थे. एचआईवी के साथ रहने वाले सभी लोगों में से 16% को यह नहीं पता था कि उन्हें 2020 में एचआईवी है. 73 प्रतिशत की 2020 में एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी तक पहुंच थी.
प्रारंभ में विश्व एड्स दिवस को सिर्फ बच्चों और युवाओं से ही जोड़कर देखा जाता था परंतु बाद में पता चला कि एचआईवी संक्रमण किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है. इसके बाद साल 1996 में HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक स्तर पर इसके प्रचार और प्रसार का काम संभालते हुए साल 1997 में विश्व एड्स अभियान के तहत संचार, रोकथाम और शिक्षा पर कार्य करना शुरू किया.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अब हवाई यात्रियों को घरेलू उड़ानों में फिर मिलेगा भोजन
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