अजय कुमार, लखनऊ .भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी (योगी सरकार के खिलाफ) वोटिंग के प्रभाव को कम करने के लिए गुजरात वाला फार्मूला नहीं अपनाएगी. गौरतलब हो गुजरात में सत्ता विरोधी लहर का असर कम करने के लिए बीजेपी ने कई ऐसे विधायकों का टिकट काट दिया था जिनसे जनता नाराज चल रही थी. इसका उसे गुजरात में फायदा भी मिला था. लेकिन यही फॉर्मूला बीजेपी आलाकमान ने यूपी में लागू करने का सोचा तो उसकी चिंता बढ़ गई. बीजेपी के पास जो इनपुट आया है उसके अनुसार यदि सिटिंग विधायकों का बड़ी संख्या में टिकट काटा गया तो पार्टी में बगावत जैसे हालात पैदा हो सकते हैं. इसी के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदल दी है, जबकि पहले प्रदेश में ऐंटी-इनकमबेंसी से निपटने के लिए भाजपा की ओर से बड़ी संख्या में अपने मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की चर्चाएं थीं.
बीजेपी आलाकमान बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों के टिकट नहीं काटेगी, इस बात का आभास तब और पुख्ता हो गया था जब केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह ने हाल ही में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था की आप लोग प्रत्याशी नहीं पार्टी को देखें. सूत्रों के मुताबिक भाजपा बड़ी संख्या में अपने मौजूदा विधायकों को ही उतारने की तैयारी में है. शायद इसकी वजह यह डर है कि मौजूदा विधायकों के टिकट काटने से पार्टी में भीतरघात की स्थिति हो जाएगी. जिनका टिकट वो या तो बगावत करके चुनाव मैदान में उतर सकते हैं,अथवा विरोधी दलों में शामिल होकर प्रत्याशी बन जाएंगे. भाजपा आलाकमान यह जोखिम नहीं लेना चाहता है.
ऐसे में पार्टी ने उन्हीं सीटों पर टिकट बदलने का प्लान बनाया है, जहां क़े विधायको के प्रति जनता की नाराजगी बहुत ज्यादा है . इसके अलावा उन सीटों पर भी पार्टी द्वारा पुराने प्रत्याशी को बदलकर नया उम्मीदवार दिया जा सकता है, जहां 2017 में बीजेपी को जीत नहीं मिल पाई थी. भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमेशा की तरह इस बार भी भाजपा बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों को ही टिकट दे सकती है. कुछ सीटों पर नए उम्मीदवार उतारे जा सकते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में सिटिंग विधायक ही उतरेंगे. दरअसल, टिकट काटने पर भाजपा को भीतरघात का डर है. ऐसे में उसने गुजरात से इत्तर यूपी के लिए विधायकों को टिकट नहीं काटने की रणनीति बनाई है.
पार्टी के अंदर यह भी चर्चा है कि बीजेपी को टिकट उनके प्रत्याशियों के आधार पर नहीं बल्कि मोदी-योगी और भाजपा की हिंदुत्व वाली छवि की पहचान पर मिलता है. इसीलिए तय किया गया है की मौजूदा नेताओं को ही मौका दिया जाए और वोटर्स के बीच विकास के के साथ-साथ हिंदुत्व के मुद्दे को आगे बढ़ाया जाए. बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग में भी इस बात का संकेत दिया था. उन्होने कहा था कि आप लोगों को नेताओं की बजाय पार्टी को तरजीह देनी चाहिए, और यह बात वोटरो को भी समझाना चाहिए.अमित शाह की इस नसीहत से साफ है कि पार्टी अपने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को ही मैदान में उतारने वाली है.
भाजपा ने 2017 में 312 सीटों पर जीत हासिल की थी. इनमें से कुछ सीटें विधायकों की मौत के चलते खाली हुई हैं. इसके अलावा कुछ सीटें सहयोगी दलों को समझौते के तहत दी जा सकती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के चुनाव सह-प्रभारियों की ओर से एक रिपोर्ट तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में हर सीट पर तीन उम्मीदवारों के नाम तय किए गए हैं. इसी सप्ताह यह रिपोर्ट पार्टी लीडरशिप को सौंपी जाएगी और उसके बाद उन पर चर्चा शुरू होगी.कई सीटों पर पार्टी विधायकों के खिलाफ लोगों में नाराजगी है और इस बात को रिपोर्ट में भी साझा किया गया है. भाजपा के एक नेता ने कहा, 'उन्हीं सीटों पर हम कैंडिडेट बदलने का प्लान बना रहे हैं, जहां मौजूदा विधायकों से ज्यादा मजबूत कोई अन्य कैंडिडेट है.' उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना है. इसके लिए हम तमाम पहलुओं पर विचार कर रहे हैं. पार्टी हर सीट पर इस बात का भी आकलन कर रही है कि जहां जनता अपने विधायकों से बेहद ज्यादा नाराज है वहां प्रत्याशी बदलने की स्थिति में उसे कहां, कितना नुकसान होगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-यूपी में आज भी मोदी ही हैं जीत का फुलप्रूफ फार्मूला
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