राहुकाल
भारतीय पंचांग के अनुसार एक दिन मे बहुत से शुभ तथा अशुभ योगों की समयावधि होती हैं, जैसे की शुभ योगो मे शुभ चौघड़िया, अभिजित् नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्ध योग, अमृत सिद्धि योग, रवि योग इत्यादि-२.
इसी प्रकार से अशुभ योग मे राहुकाल, अशुभ चौघड़िया, यमघण्टक योग, ज्वालामुखी योग इत्यादि-२. इन सब अशुभ योगो मे जो सर्वाधिक प्रचलित तथा सर्वसाधारण जनता मे बहुतायत से माना जाता है, वह अशुभ योग "राहुकाल" ही है. राहुकाल मे किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नही किए जा सकते हैं.
*राहुकाल की कथा:-
राहुकाल की शुरुआत कैसें हुई इसके पीछे की कथा सतयुग काल मे समुद्र मंथन के समय की है.
देवासुर संग्राम मे समुद्र मंथन के दौरान एक-२ करके चौदह रत्नों की उत्पत्ति हुई. अंत मे चौदहवे रत्न के रूप में अमृत कलश की प्राप्ति हुई, जब अमृत कलश लेकर भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए तब देवों और दानवों में पहले अमृतपान करने को लेकर विवाद छिड़ गया.
धन्वंतरि जी ने भगवान विष्णु का स्मरण कर देवों और दानवों के बीच हो रहे झगड़े को समाप्त करने की प्रार्थना की. दानव अमृत पी कर कहीं अमर न हो जाएं, यह सोच कर सृष्टि की रक्षा के प्रति भगवान विष्णु जी की भी चिंता बढ़ने लगी. परिस्थिति को अति संवेदनशील मानते हुए श्रीविष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया तथा दानवों को मोहित करके देवों और दानवों में अमृत का बराबर-बराबर बंटवारा करने का प्रस्ताव रखा.
दैत्यों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. दोनों पक्ष पंक्तिबद्ध होकर अलग-अलग बैठ गए. दैत्यों का सेनापति राहु अत्यंत बुद्धिमान था. वह वेश बदल कर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा. जैसे ही राहु ने अमृत पान किया, सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से राहु का गला काट दिया. परंतु गला कटने से पहले ही अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले से नीचे उतर चुकी थीं और वह अमरता को प्राप्त कर चुका था.
राहु के सर कटने के समय को ही ‘राहुकाल’ कहा गया जाता है, जो अशुभ माना जाता है. राहु का सिर कटने की घटना सायंकाल की है, जिसे पूरे दिन के घंटा, मिनट का आठवां भाग माना गया.
राहुकाल में आरम्भ किये गए कार्य-व्यापार में काफी दिक्कतों आती है, इसलिए इस काल में कोई भी नया अथवा शुभ काम नहीं किया जाना चाहिए. राहु काल में किसी यात्रा का प्रारम्भ करना निषेध हैं. इस समय के दौरान अग्नि, यात्रा, किसी वस्तु का क्रय विक्रय, लिखा पढी व बहीखातों का काम नही करना चाहिये.
*राहुकाल की गणना विधि:-
1. इसके लिए सर्वप्रथम किसी भी दिन का दिनमान निकाला जाता है (दिनमान निकालने की विधि- किसी भी दिन के सूर्यास्त मे से सूर्योदय को घटाने से दिनमान प्राप्त होता है.)
2. किसी भी स्थान के स्थानीय सूर्योदय के समय से सप्ताह के पहले दिन सोमवार को दिनमान का दूसरा भाग राहुकाल होता है.
शनिवार को दिनमान के आठ भागो में से तीसरा भाग राहुकाल होता है.
शुक्रवार को आठ भागो में से चौथा भाग राहुकाल होता है.
बुधवार को पांचवां भाग राहुकाल होता है.
गुरुवार को छठा भाग राहुकाल होता है.
मंगलवार को सातवां भाग राहुकाल होता है.
रविवार को दिनमान का आठवां भाग राहुकाल होता है.
3. यानि की दिनमान को आठ बराबर भागों में बांट कर "वार" के तयशुदा यानि निश्चित भाग को स्थानीय सूर्योदय में जोड़ दें, तो शुद्ध राहुकाल ज्ञात हो जाएगा. यानि उस दिन जो भी वार होगा, उसके अनुसार निश्चित भाग को उस दिन का राहुकाल माना जाता है. जैसे कि सोमवार को दिनमान का दूसरा भाग.
4. प्रतिदिन लगभग 90 मिनट यानी लगभग-२ डेढ़ घंटे का राहुकाल होता है. यह प्रत्येक स्थान के दिनमान के अनुसार कुछ मिनट कम या अधिक हो सकता है.
राहुकाल और चौघड़िया काल की गणना एक समान है. परन्तु मंगलवार के दिन शुभ चौघड़िया समय में ही राहु काल होता है. गुरुवार के दिन भी अमृत चौघड़िया में राहु काल भी होता है. परन्तु फिर भी शुभ चौघड़िया के इस काल में कोई शुभ कार्य नही करना चाहिए.
*सप्ताह के विरोध के अनुसार राहुकाल
"भारतीय मानक समय" (IST) के अनुसार राहुकाल
भारत वर्ष मे निम्नलिखित तालिका के अनुसार होता है, लेकिन प्रत्येक स्थान के स्थानीय समय (LMT) मे अंतर होने के कारण राहुकाल का समय इस तालिका कुछ मिनटो का अंतर लिए हुए होता है.
सोमवार को राहुकाल का समय- सुबह 07.30 से 9 बजे तक
मंगलवार को राहुकाल का समय- दोपहर 03.00 से 04.30 बजे तक
बुधवार को राहुकाल का समय- दोपहर 12.00 से 01.30 बजे तक
गुरुवार को राहुकाल का समय- दोपहर 01.30 से 3.00 बजे तक
शुक्रवार को राहुकाल का समय- सुबह 10.30 से 12.00 बजे तक
शनिवार को राहुकाल का समय- सुबह 9.00 से 10.30 बजे तक
रविवार को राहुकाल का समय- शाम 04.30 से 6.00 बजे तक
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जन्म कुंडली में शिक्षा का योग को देखकर अपने बच्चे को सही दिशा दें
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