श्रीकृष्ण के इस विग्रह का जो भी दर्शन करता उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती

श्रीकृष्ण के इस विग्रह का जो भी दर्शन करता उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती

प्रेषित समय :21:40:46 PM / Fri, Jan 7th, 2022

वृंदावन में बांके बिहारी जी मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्रीकृष्ण और राधाजी समाहित हैं , इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा-कृष्ण के दर्शन के फल की प्राप्ति होती है . इस प्रतिमा के प्रकट होने की कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है, इसलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांकेबिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है.*

बांके बिहारी के प्रकट होने की कथा
संगीत सम्राट तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास जी भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे. इन्होंने अपने संगीत को भगवान को समर्पित कर दिया था. वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे.

भगवान की भक्त में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते. इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते. हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्री कृष्ण को दुलार करने लगते. एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप अकेले ही श्री कृष्ण का दर्शन लाभ पाते हैं, हमें भी सांवरे सलोने का दर्शन करवाएं.

इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे. राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे- 

'भाई री सहज जोरी प्रकट भई, जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे. प्रथम है हुती अब हूं आगे हूं रहि है न टरि है तैसे.. अंग अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे. श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे..'

श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की. हरिदास जी ने कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं. आपको लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा. भक्त की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया.

जब गवाही देने अदालत पहुंचे बांके बिहारी

कृष्णभक्तों में खासतौर पर बिहारीजी के भक्तों में एक कथा प्रचलित है. एक गरीब ब्राह्मण बांके बिहारी का भक्त था. एक बार उसने किसी महाजन से कुछ रुपये उधार लिए. हर महीने वह थोड़ा-थोड़ा करके कर्ज चुकाया. आखिरी किस्त के पहले महाजन ने उसे अदालती नोटिस भिजवा दिया कि उधार बकाया है और पूरी रकम व्याज सहित वापस करे.

ब्राह्मण परेशान हो गया. महाजन के पास जा कर उसने बहुत सफाई दी पर कोई असर नहीं हुआ. मामला कोर्ट में पहुंचा. कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से वही बात कही, मैंने सारा पैसा चुका दिया है. जज ने पूछा, कोई गवाह है जिसके सामने तुम महाजन को पैसा देते थे. कुछ सोचकर उसने बिहारीजी मंदिर का पता बता दिया.

अदालत ने मंदिर का पता नोट करा दिया. अदालत की ओर से मंदिर के पते पर सम्मन जारी कर दिया गया. वह नोटिस बिहारीजी के सामने रख दिया गया. बात आई गई हो गई. गवाही के दिन एक बूढ़ा आदमी जज के सामने गवाह के तौर पर पेश हुआ. उसने कहा कि पैसे देते समय मैं साथ होता था और इस-इस तारीख को रकम वापस की गई थी.

राधा कृष्ण के मिलन की अद्भुत कहानियां

जज ने सेठ का बही- खाता देखा तो गवाही सही निकली. रकम दर्ज थी, नाम फर्जी डाला गया था. जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दिया. लेकिन उसके मन में यह उथल पुथल मची रही कि आखिर वह गवाह था कौन. उसने ब्राह्मण से पूछा. ब्राह्मण ने बताया कि बिहारीजी के सिवा कौन हो सकता है.

इस घटना ने जज को इतना विभोर कर दिया किया कि वह इस्तीफा देकर, घर-परिवार छोड़कर फकीर बन गया. कहते है कि वही न्यायाधीश बहुत साल बाद पागल बाबा के नाम से वृंदावन लौट कर आया.

वापस गोकुल चल मथुराराज...
वृंदावन. क्या कभी ऐसा भी हो सकता है, जहां भगवान भक्तों की भक्ति से अभिभूत होकर या उनकी व्यथा से द्रवित हो भक्तों के साथ ही चल दें? वृदांवन का मशहूर बांके बिहारी मंदिर एक ऐसा ही मंदिर माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि बांके बिहारी जी भक्तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि मंदिर में अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ हो लेते हैं, इसीलिए मंदिर में उन्हें परदे में रखकर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है. 

पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्त लगातार मूर्ति के सामने पड़े पर्दे को खींचता-गिराता रहता है और उनकी एक झलक पाने को बेताब श्रद्धालु दर्शन करते रहते हैं और बांके बिहारी हैं, जो अपनी एक झलक दिखाकर पर्दे में जा छिपतें हैं. लोक कथाओं के अनुसार कई बार बांके बिहारी कृष्ण ऐसा कर भी चुके हैं, मंदिर से गायब हो चुके हैं, इसीलिए ये पर्देदारी की जाती है.

एक शृद्धालु के अनुसार' मंदिर मे दर्शनार्थ आए श्रद्धालु बार-बार उनकी झलक पाना चाहते हैं लेकिन पलक झपकते ही वो अंतर्ध्यान हो जाते हैं. उनके पास खड़े एक श्रद्धालु बताते हैं कि ऐसे ही हैं हमारे बांके बिहारी... सबसे अलग, सबसे अनूठे. 

ये पर्दा डाला ही है इसलिए कि भक्त बिहारी जी से ज़्यादा देर तक आँखे चार न कर सकें क्योंकि कोमल हृदय बिहारी जी भक्तों की भक्ति व उनकी व्यथा से इतना द्रवित हो जाते हैं कि मंदिर मे अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ हो लेते हैं. वो कई बार ऐसा कर चुके हैं, इसलिए अब ये पर्दा डाल दिया गया है ताकि वे टिककर बैठे उनका भोला सा स्पष्टीकरण है 'अगर ये एक भक्त के साथ चल दिए तो बाकियों का क्या होगा?'

विस्मित से भक्त बता रहे हैं, एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ आईं लेकिन वो इनकी भक्ति में इतनी डूब गई कि वापस जाना ही नहीं चाहती थीं. परेशान घरवाले जब उन्हें जबरन घर साथ ले जाने लगे तो उसकी भक्ति या कहें व्यथा से द्रवित होकर बांके बिहारी जी भी उसके साथ चल दिए. 

इधर मंदिर में बांके बिहारी जी के गायब होने से भक्त बहुत दु:खी थे. आखिरकार समझा बुझाकर उन्हें वापस लाया गया. भक्त बताते हैं कि उन पर यह पर्दा तभी से डाल दिया गया, ताकि बिहारी जी फिर कभी किसी भक्त के साथ उठकर नहीं चल दें और भक्त उनके क्षणिक दर्शन ही कर पाएं, सिर्फ झलक ही देख पाएं.

यह भी कहा जाता है कि उन्हें बुरी नजर से बचाने के लिए पर्दा रखा जाता है क्योंकि बाल कृष्ण को कहीं नजर न लग जाए. बंगाल से आए एक भक्त बताया कि सिर्फ जन्माष्टमी को ही बांके बिहारी जी के रात को महाभिषेक के बाद रात भर भक्तों को दर्शन देते हैं और तड़के ही आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.

वैसे मथुरा वृंदावन में जन्माष्टमी का उत्सव पर्व से सात आठ दिन पहले ही शुरू हो जाता है. कहा जाता है कि सन 1863 में स्वामी हरिदास को बांके बिहारी जी के दर्शन हुए थे. तब यह प्रतिमा निधिवन में थी, पर गोस्वामियों के एक वर्ष बाद इस मंदिर को बनवाने के बाद इस प्रतिमा को इस मंदिर मे प्रतिष्ठापित किया गया. 

पूरे वृंदावन में कृष्ण लीला का तिलिस्म चप्पे-चप्पे पर बिखरा हुआ है. कृष्ण का अपने भक्तों के साथ जो अनन्य प्रेम है उसको लेकर भी कई कहानियां और कई किस्से हैं...

राजस्थान के एक भक्त बताते है कि यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है, जहाँ सिर्फ इस भावना से कि कहीं बांके बिहारी की नींद मे खलल न पड़ जाए इसलिए सुबह घंटे नही बजाए जाते बल्कि उन्हें हौले-हौले एक बालक की तरह उन्हें दुलार कर उठाया जाता है, इसी तरह संझा आरती के वक्त भी घंटे नहीं बजाए जाते ताकि उनकी शांति में कोई खलल न पड़े.

गुजरात के एक भक्त बताते है 'यह जानकर शायद आप हैरान हो जाएंगे कि बांके बिहारी जी आधी रात को गोपियों के संग रासलीला करने निधिवन में जाते हैं और तड़के चार बजे वापस लौट आते हैं.' 

विस्फरित नेत्रों से अपनी व्याख्या को वे और आगे बढ़ाते हुए बताते हैं 'ठाकुर जी का पंखा झलते-झलते एक सेवक की अचानक आँख लग गई, चौंककर देखा तो ठाकुर जी गायब थे पर भोर चार बजे अचानक वापस आ गए. अगले दिन वही सब कुछ दोबारा हुआ तो सेवक ने ठाकुर जी का पीछा किया और ये राज़ खुला कि ठाकुर जी निधिवन में जाते हैं.' तभी से सुबह की मंगल आरती की समय थोड़ा देर से कर दिया, जिससे ठाकुर जी की अधूरी नींद पूरी हो सके.

अकसर भक्तगण कान्हा की बांसुरी की धुन, निधिवन में नृत्य की आवाज़ें आदि के बारे मे किस्से यह कहकर सुनाते हैं कि 'हमे किसी ने बताया है.' ऐसे कितने ही किस्से कहानियां वृंदावन के चप्पे-चप्पे पर बिखरी हुई हैं.'

कितनी ही 'मीराएं' वृंदावन में आपको कृष्ण के सहारे ज़िंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाती हुई नज़र आएंगी. इस जीवन में कृष्ण ही इनके जीवन का सहारा है. 

अचानक मंदिर में भक्तों का हुजम दिखाई देता है...राधे राधे, जय हो बांके बिहारी के जयघोष के बीच, मंदिर के प्रांगण के एक कोने से, मद्धम से स्वर में भजन सुनाई देता है... हमसे परदा करो न हे मुरारी, वृदांवन के हो बांके बिहारी....

चांदी से बाल, सफेद धोती दमकते, माथे पर चंदन का टीका, आंखों से बरसते आंसुओं के बीच मूर्तिस्थल की तरफ लगातार देखती हुई बहुत धीमी आवाज़ में भजन गाती एक ऐसी ही एक मीरा...हमसे परदा करो न हे मुरारी, वृदांवन के हो बांके बिहारी...

साध्वी पर्दे के पीछे की बांके बिहारी जी की इसी लुका-छिपी से व्यथित होकर ही सम्भवत: बरसती आंखों से गुहार कर रही थीं. बांके बिहारी की एक झलक दर्शन के बाद मंदिर से वापसी... मंदिर के बाहर निकलते ही संकरी सी गली में बनी किसी दुकान पर शुभा मुदगल की आवाज़ में गाया गया गीत माहौल मे एक अजीब सी शांति और अजीब सी बेचैनी बिखेर रहा है... 'वापस गोकुल चल मथुराराज...., राजकाज मन न लगाओ, मथुरा नगरपति काहे तुम गोकुल जाओ?'.. शृद्धालुयों के हुजूम तेज़ी से मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं..

बांके बिहारी मंदिर में इसी विग्रह के दर्शन होते हैं. बांके बिहारी के विग्रह में राधा कृष्ण दोनों ही समाए हुए हैं. जो भी श्री कृष्ण के इस विग्रह का दर्शन करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त के कष्टों दूर कर देते हैं.
bghorley.blogspot.com
 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी पर जानिए महत्व, पूजा विधि एवं पूजन के शुभ मुहूर्त

शुभ कार्यों में नवग्रहों का पूजन क्यों ?

देहरी पूजन की विधि

तुलसी विवाह एवं शालिग्राम पूजन

Leave a Reply