माघ में तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए

माघ में तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए

प्रेषित समय :22:00:11 PM / Wed, Jan 19th, 2022

*माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए।

*शिवपुराण के अनुसार "तिलदानं बलार्थं हि सदा मृत्युजयं विदुः" तिलदान बलवर्धक एवं मृत्यु का निवारक होता हैं |*

*महाभारत अनुशासनपर्व में वर्णित तिलदान का महत्व*

*पितॄणां प्रथमं भोज्यं तिलाः सृष्टाः स्वयंभुवा। तिलदानेन वै तस्मात्पितृपक्षः प्रमोदते।।*

*माघमासे तिलान्यस्तु ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छति।* *सर्वसत्वसमाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।*

*सर्वसत्रैश्च यजते यस्तिलैर्यजते पितॄन्। न चाकामेन दातव्यं तिलैः श्राद्धं कदाचन।।*

*महर्षेः कश्यपस्यैते गात्रेभ्यः प्रसृतास्तिलाः। ततो दिव्यं गता भावं प्रदानेषु तिलाः प्रभो।।*

*पौष्टिका रूपदाश्चैव तथा पापविनाशनाः।* *तस्मात्सर्वप्रदानेभ्यस्तिलदानं विशिष्यते।।*

*आपस्तम्बश्च मेधावी शङ्खश्च लिखितस्तथा। महर्षिर्गौतमश्चापि तिलदानैर्दिवं गताः।।*

*तिलहोमरता विप्राः सर्वे संयतमैथुनाः। समा गव्येन हविषा प्रवृत्तिषु च संस्थिताः।।*

*सर्वेषामिति दानानां तिलदानं विशिष्यते। अक्षयं सर्वदानानां तिलदानमिहोच्यते।।*

*उच्छिन्ने तु पुरा हव्ये कुशिकर्षिः परन्तपः। तिलैरग्नित्रयं हुत्वा प्राप्तवान्गतिमुत्तमाम्।।*

*ब्रह्माजी ने जो तिल उत्पन्न किये हैं, वे पितरों के सर्वश्रेष्ठ खाद्य पदार्थ हैं। इसलिये तिल दान करने से पितरों को बड़ी प्रसन्नता होती है । जो माघ मास में ब्राह्माणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता। जो तिलों के द्वारा पितरों का पूजन करता है, वह मानो सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लेता है। तिल-श्राद्ध कभी निष्काम पुरूष को नहीं करना चाहिये । प्रभो। यह तिल महर्षि कश्‍यप के अंगों से प्रकट होकर विस्तार को प्राप्त हुए है; इसलिये दान के निमित्त इनमें दिव्यता आ गयी है। तिल पौष्टिक पदार्थ है। वे सुन्दर रूप देने वाले और पाप नाशक हैं इसलिये तिल-दान सब दानों से बढ़कर है। परम बुद्विमान महर्षि आपस्तम्ब, शंख, लिखित तथा गौतम- ये तिलों का दान करके दिव्य लोक को प्राप्त हुए हैं। वे सभी ब्राह्माण स्त्री-समागम से दूर रहकर तिलों का हवन किया करते थे, तिल गौर घृत के समान हवी के योग्य माने गये हैं इसलिये यज्ञों में गृहित होते हैं एवं हर एक कर्मों में उनकी आवश्‍यकता है । अतः तिल दान सब दानों से वढ़कर है। तिल दान यहां सब दानों में अक्षय फल देने वाला बताया जाता है।पूर्व काल में परंतप राजर्षि कुशिक हविष्य समाप्त हो जाने पर तिलों से ही हवन करके तीनों अग्नियों को तृप्त किया था; इससे उन्हें उत्तम गति प्राप्त हुई।*

*ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड, अध्याय 27 तथा देवीभागवतपुराण, स्कन्ध 09, अध्यायः 30 के अनुसार*

*तिलदानं ब्राह्मणाय यः करोति च भारते । तिलप्रमाणवर्षं च मोदते विष्णुमन्दिरे ।।*

*ततः स्वयोनिं संप्राप्य चिरजीवी भवेत्सुखी। ताम्रपात्रस्थदानेन द्विगुणं च फलं लभेत्।।*

*जो भारतवर्ष में ब्राह्मण को तिलदान करता है, वह तिल के बराबर वर्षों तक विष्णुधाम में सम्मान पाता है। उसके बाद उत्तम योनि में जन्म पाकर चिरजीवी हो सुख भोगता है। ताँबे के पात्र में तिल रखकर दान करने से दुगना फल मिलता है.

Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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