एक सर्वे हो जाए- सबसे डरपोक प्रधानमंत्री कौन?

एक सर्वे हो जाए- सबसे डरपोक प्रधानमंत्री कौन?

प्रेषित समय :07:18:46 AM / Sun, Jan 23rd, 2022

प्रदीप द्विवेदी. कुछ समय पहले एक बेशर्म सर्वे आया था, जिसमें बताया गया था कि देश की आजादी के बाद अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री कौन हैं?

यकीनन, यह देश के तमाम महान प्रधानमंत्रियों को अपमानित करनेवाला सर्वे था!

उस सर्वे को लेकर पल-पल इंडिया, 24 जनवरी 2020, में लिखा था- इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता को लेकर बेशर्म सर्वे बेमतलब है?

बड़ा सवाल यह है कि- क्या ऐसे सर्वे का उद्देश्य किसी नेता विशेष की इमेज बनाना था?

सियासी सयानों का मानना है कि अब समय बदल गया है, तो क्या ऐसे सर्वे करनेवाले अब यह सर्वे करेंगे कि- आजाद भारत का सबसे डरपोक प्रधानमंत्री कौन?

पढ़े.... पल-पल इंडिया, 24 जनवरी 2020, में टिप्पणी- इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता को लेकर बेशर्म सर्वे बेमतलब है?

खबरार्थ. अभी एक बेशर्म सर्वे आया है जिसमें बताया गया है कि देश की आजादी के बाद अब तक के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दूसरे नंबर पर और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तीसरे नंबर पर हैं? महान नेताओं को लेकर ऐसा सर्वे होना ही नहीं चाहिए!

यह इसलिए बेशर्म सर्वे है कि इसमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी शामिल किया गया है, जबकि यह सर्वविदित तथ्य है कि जब भी किसी वर्तमान नेता की लोकप्रियता की बात होती है तो वह भूतपूर्व से आगे ही होता है? अपने समय में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह सर्वाधिक लोकप्रिय थे, आज कहां हैं?

इंदिरा गांधी और वाजपेयी तो इतने वर्षों बाद भी लोकप्रिय हैं, भूतपूर्व होने के तीस साल बाद क्या पीएम मोदी लोकप्रिय रह पाएंगे? शायद, वीपी सिंह के करीब खड़े नजर आएंगे!

इंदिरा गांधी और वाजपेयी की लोकप्रियता डिजिटल मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट के दम पर नहीं थी? वे अपने दम पर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे थे!

इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जो पाकिस्तान के दो टूकड़े हुए थे, उसे सारी दुनिया ने देखा और माना था? अटल बिहारी वाजपेयी के समय जो परमाणु परीक्षण हुआ था, उसने तमाम महाशक्तियों को भी आईना दिखा दिया था?

पहले प्रधानमंत्री नेहरू के जमाने में ही भारत तीसरी शक्ति बन गया था, तो राजीव गांधी के नेतृत्व जितनी लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की गई, उतनी सीटें हासिल करना किसी भी राजनेता के लिए आसान नहीं है?

पं. जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी सहित तमाम बीसवीं सदी के प्रधानमंत्रियों ने जो लोकप्रियता हांसिल की थी, उसकी तुलना आज पीएम मोदी की लोकप्रियता से करना इसलिए बेमतलब है कि उन्होंने साइकिल से सियासी रेस जीती थी, जबकि पीएम मोदी टीम राजनीतिक मोटरसाइकिल पर सवार हो कर रेस जीतने की खुशफहमी पाले है?

पं. जवाहर लाल नेहरू के समय देश का खजाना खाली था, सेना के गठन की प्रक्रिया चल रही थी, बावजूद इसके, उन्होंने चीन को झूला झुलाने और नारियल पानी पेश करने के बजाय युद्ध लड़ा!

जय जवान, जय किसान को बुलंद करने वाले लाल बहादुर शास्त्री के समय अन्न की जरूरत को लेकर उनकी एक अपील पर करोड़ों लोगों ने उनका साथ दिया, पिछली बार चले चौकीदार अभियान में तमाम कोशिशों के बावजूद कितने चौकीदार सामने आए? बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ही कह दिया था- मैं चौकीदार नहीं हूं, ब्राह्मण हूं! और फिर.... चुपचाप चौकीदार अभियान ही गायब हो गया?

इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टूकड़े तो किए ही, विदेशों में भी उनका रूतबा था. यही नहीं, गलत या सही, आपातकाल जैसा कदम भी उन्होंने उठाया, लेकिन पीएम मोदी टीम तो एक हाथ से प्रेस के लिए आपातकाल जैसे निर्णय लेती है और दूसरे हाथ से निर्णय बदल देती है?

राजीव गांधी से पहले किसी भी व्यक्ति की लोकप्रियता केवल प्रिंट मीडिया पर निर्भर थी, लेकिन आधुनिक तकनीक की नींव रखने वाले राजीव गांधी की बदौलत ही पीएम मोदी टीम सोशल मीडिया के दम पर इतनी अस्थाई लोकप्रियता हासिल कर पाई है?

अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया की परवाह किए बगैर परमाणु परीक्षण कर दिखाया, तो बतौर गैर कांग्रेसी नेता, सबसे अधिक समय तक लोकप्रिय रहने का कीर्तिमान भी उनके नाम ही है!

इनदिनों, आजादी के बाद के सत्तर वर्षों की उपलब्धियों पर सवाल खड़े करके आत्ममुग्ध नेताओं द्वारा प्रत्यक्षरूप से कांग्रेस का ही नहीं, अप्रत्यक्षरूप से बीजेपी का इतिहास भी बदलने की नाकामयाब कोशिशें जारी हैं, लेकिन सियासी मोतियाबिंद के शिकार ऐसे नेता यदि आजादी के बाद की उपलब्धियों पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, सुषमा स्वराज आदि के विचार जान लें, तो कईं नेताओं के भ्रम के जाले साफ हो सकते हैं!

सियासी हद तो यह है कि लालकृष्ण आडवाणी जैसे जिन नेताओं ने बीजेपी के पौधे को फलदार विशाल वृक्ष बनाया, उन्हें सम्मान देने का समय आया तो ऐसे नेताओं को ही राजनीतिक मैदान से बाहर कर दिया गया?

ऐसे सर्वे दस रुपए के सिक्के को सौ रुपए के नोट से ज्यादा वजनदार साबित करने की कवायदभर है!

https://twitter.com/PalpalIndia/status/1220650931554963456

https://twitter.com/PalpalIndia/status/1484556437280161794

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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