भारतीय छात्रों के लिए यूक्रेन में मसीहा बनकर आया एक पाकिस्तानी, 2500 बच्चों को पहुंचाया घर

भारतीय छात्रों के लिए यूक्रेन में मसीहा बनकर आया एक पाकिस्तानी, 2500 बच्चों को पहुंचाया घर

प्रेषित समय :18:22:59 PM / Tue, Mar 8th, 2022

कीव. रूसी हमले के बाद हजारों भारतीय छात्र यूक्रेन में फंस गए थे. इनकी निकासी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी. कीव, खारकीव और सूमी जैसे शहरों में फंसे छात्रों के पास संसाधन खत्म हो रहे थे और पश्चिमी सीमा तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था, लेकिन मुसीबत के अंधेरे में कुछ अच्छे लोग रौशनी की किरण बनकर आते हैं. एसओएस इंडिया के संस्थापक नितेश कुमार यूक्रेन के युद्धग्रस्त इलाकों में फंसे भारतीय छात्रों को पश्चिमी बॉर्डर तक पहुंचा रहे हैं और इसमें उनकी मदद एक पाकिस्तानी शख्स कर रहा है.

रेडिफ डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक जब नितेश ने भारतीय छात्रों को यूक्रेन से बाहर निकालने की सोची तो उन्हें कोई आइडिया नहीं था कि यह कैसे होगा. नितेश को पता था कि छात्रों को हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया या रोमानिया की सीमा तक पहुंचने के लिए ढेर सारी बसें और कारें चाहिए. इनका इंतजाम करने के लिए उन्होंने कई टूर ऑपरेटर्स से बात की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. लेकिन यूक्रेन में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिक मोआज़म खान ने इस काम में उनकी मदद करने की जिम्मेदारी ली.

मो आज़म ने 2500 बच्चों को बचाया

रिपोर्ट के अनुसार नितेश ने कहा, मो आज़म हमारी टीम के लिए किसी ईश्वरीय वरदान की तरह थे. वह बहुत मददगार थे और कई बात तो उन्होंने भारतीय छात्रों से एक पैसा भी नहीं लिया. मोआज़म ने 2500 भारतीय छात्रों के लिए सुरक्षित रास्ते का इंतजाम किया था. मो आज़म ने रेडिफ को बताया, जब मैंने भारतीय छात्रों के पहले बैच को बचाया तो मुझे नहीं पता था कि संकट इतना बड़ा है. मैंने पाया कि मेरा नंबर कई भारतीय व्हाट्सऐप ग्रुप्स पर वायरल हो गया है. इसके बाद मुझे आधी रात को लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए फोन आने लगे. उन्होंने कहा, अभी तक मैं 2500 भारतीय छात्रों को बचा चुका हूं.

बिना पैसे लिए बच्चों को बॉर्डर तक पहुंचाया

मो आज़म ने कहा, यूक्रेन में किसी विदेशी के लिए बातचीत करना सबसे मुश्किल काम है. यहां ज्यादातर लोग यूक्रेनी भाषा बोलते हैं या कुछ लोग रूसी में बात करते हैं. यहां अंग्रेजी बहुत कम बोली जाती है. मैं उर्दू बोलता था और ज्यादातर भारतीय छात्र हिंदी बोलते थे, इसलिए हम बहुत आसानी से एक-दूसरे से जुड़ गए. हिंदी और उर्दू लगभग एक जैसी भाषाएं हैं इसलिए हमें काफी आसानी हुई. उन्होंने कहा कि मैं उनसे सिर्फ 20 से 25 डॉलर लेता था क्योंकि मुझे पता था कि उनके पास देने के लिए पैसे नहीं है. कई बार ऐसा हुआ कि मैंने उनसे पैसे नहीं लिए, क्योंकि उनके पास सारे पैसे खत्म हो गए थे.

पाकिस्तानी होकर भारतीय बच्चों को बचाकर कैसा लगा

मोआज़म ने कहा कि सबसे बड़ी बात है दुआएं, जो इन भारतीय छात्रों के माता-पिता मुझे मेरे व्हाट्सऐप पर भेज रहे हैं. मोआज़म से पूछा गया कि एक पाकिस्तानी होने के नाते, दोनों देशों के संबंधों को इतिहास को देखते हुए भारतीय छात्रों की मदद करते हुए उन्हें कैसा लगा. मो आज़म ने कहा, आपने हाल ही में एक वीडियो देखा होगा, जिसमें भारत की महिला क्रिकेट टीम एक पाकिस्तानी खिलाड़ी के बच्चे के साथ खेलती हुई नजर आ रही है. यह प्यार और इंसानियत है. दुश्मनी तो सिर्फ राजनीति है, दोनों देशों के लोग एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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