नजरिया. बिहार में बीजेपी बेबस है, प्रादेशिक नेता जेडीयू से परेशान हैं, लेकिन केंद्र की मोदी टीम कुछ भी करने की हालत में नहीं है, कारण?
यदि नीतीश कुमार को हटाया, तो बीजेपी सत्ता की भागीदारी से बाहर हो जाएगी, मतलब- एक और राज्य बीजेपी के हाथ से निकल जाएगा!
बिहार में बीजेपी के पास इतनी सियासी ताकत है नहीं कि वह अकेले दम पर बिहार फतह कर सके और नीतीश कुमार के अलावा बीजेपी के पास कोई दमदार सियासी साथी भी नहीं है?
याद रहे, 2015 में जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी गठबंधन को हरा कर सरकार बनाई थी.
उस सरकार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री, तो तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे, परन्तु दो साल के बाद ही जेडीयू और आरजेडी के रिश्तों में सियासी खटास आ गई, नीतीश कुमार ने 2017 में आरजेडी-कांग्रेस से नाता तोड़ा, बीजेपी से रिश्ता जोड़ा और फिर से मुख्यमंत्री बन गए!
पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर हुई, जिसके नतीजे में जेडीयू के विधायकों की संख्या बीजेपी के बहुत कम हो गई, लेकिन बिहार की सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी को नीतीश कुमार को मजबूरन सीएम की कुर्सी सौंपनी पड़ी?
बिहार की सत्ता का समीकरण बेहद उलझा हुआ है, वहां कुल 243 विधानसभा सीटें है, इस वक्त 242 सदस्य है, एक सीट खाली है, अर्थात....बहुमत के लिए कम-से-कम 122 विधायकों की संख्या चाहिए.
एनडीए को 127 विधायकों का हिसाब है.... बीजेपी के 74, जेडीयू के 45, हम के 4, वीआईपी के 3, तो निर्दलीय 1 विधायक है.
उधर, विपक्ष के 115 विधायक हैं.... आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19, सीपीआई(माले) 12, सीपीआई के 2, सीपीएम के 2, एआईएमआईएम के 5 विधायक.
केवल सात विधायक इधर से उधर होते हैं, तो बीजेपी सत्ता की भागीदारी से बाहर होगी?
यही वजह है कि तमाम सियासी विवादों के बावजूद मोदी टीम खामोश है, जबकि नीतीश कुमार आक्रामक हैं!
अभिमनोजः बिहार में मोदी टीम बेबस है, इसीलिए नीतीश कुमार सियासी शेर बने हैं?
प्रेषित समय :09:13:27 AM / Wed, Mar 16th, 2022
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