कुंडली में यदि चंद्रमा दूसरे या आठवे भाव में हो, तो पसीना अधिक आता

कुंडली में यदि चंद्रमा दूसरे या आठवे भाव में हो, तो पसीना अधिक आता

प्रेषित समय :20:49:34 PM / Tue, Apr 12th, 2022

1. जन्म कुंडली में यदि चंद्रमा दूसरे या आठवे भाव में हो, तो पसीना अधिक आता हैं.

 2. दसवे भाव में मंगल और बुद्ध एक साथ बैठे हो तो शरीर से दुर्गन्ध आती हैं.

 3. पापयुक्त,पाप ग्रह अष्टम में हो तब रोग और आलस्य पैदा करते हैं.

 4. सप्तम भाव में शुक्र हो या सप्तम का सम्बन्ध शुक्र से हो जाये तो बाधित्य दाम्पत्य जीवन होता हैं.

 5. ३रे और ६ठवे भाव में शुक्र शोक/रोग देता हैं यदि वह सूर्य से आगे न हो तो.

 6. मृत ग्रह:- जब कोई भी ग्रह सम राशी में ० से ६ अंश तक तथा विषम राशी में २५ से ३० अंश तक होता हैं तब उसे मृत माना जाता हैं .ऐसा  मृतग्रह जन्मांक के सर्वोत्तम स्थान और स्तिथि पर विराजमान होने के उपरांत भी शुभ फल देने में असमर्थ रहता है. सदैव निकृष्ट फल देगा.

7. अस्त/नीच ग्रह:- ग्रह जिस राशी में उच्च का होता है, उससे ७वी राशी में होने से नीच का हो जाता हैं. जैसे गुरु, कर्क में उच्च का होता है, उससे ७वी राशी हुई मकर. यदि गुरु मकर में स्तिथ हो तो वह नीच का हो जायेगा. ऐसा  ही अन्य ग्रहों के बारे में समझना चाहिये.

इसी प्रकार स्व ग्रह से ७वी राशी उस ग्रह की अस्त राशी मानी जाती जाती हैं. इसके अनुसार जिन ग्रहों की दो-दो स्व ग्रही राशियाँ हैं,उनकी अस्त राशियाँ भी दो-दो होंगी. अस्त अथवा नीच राशी में स्तिथ ग्रह भी सदैव निकृष्ट फल ही देते हैं.

8. वक्री ग्रह:- भ्रमण काल पूरा करने के उपरांत आगे की राशी में जाने के वजाय पिछली राशी में चला जाये, उसे वक्री कहते हैं. सामान्यत: सूर्य से जब मंगल, गुरु और शनि, ५वे, ६टवे,७तवे और ८वे भाव में स्तिथ होते हैं, तब वे वक्री होते हैं. शुक्र/ बुद्ध, सूर्य के साथ उदय/अस्त होते हैं. अतएव भीतरी युति होने पर ही वक्री होते हैं. सूर्य और चन्द्र वक्री नहीं होते. राहू / केतु सदैव वक्री रहते हैं. वक्री ग्रह अधिक बलशाली होते हैं परन्तु विपरीत आचरण वाले होते हैं. उच्च राशी में स्तिथ वक्री ग्रह नीच का फल देते है और नीच राशी में स्तिथ वक्री ग्रह उच्च राशी के समान फल देते हैं. इसी तरह अन्य की स्तिथि समझना चाहिए. मृत, अस्त, नीच और वक्री ग्रह की मूल राशी में स्तिथ ग्रह भी प्रभावित होते हैं इसीलिए उनके फल में भी अंतर पड़ता हैं.

9. सभी शुभ ग्रह अपने उच्च में सम्पूर्ण शुभ फलदायी होते हैं. मूल-त्रिकोण में ७५% शुभ , स्वग्रही में ५०%, मित्र क्षेत्र में २५%, शत्रु क्षेत्र में साधारण नाम मात्र का शुभ और नीच का ०% फल होता हैं.

10. महाभाग्य योग:- यदि किसी जातक का जन्म दिन में हो और उसकी कुंडली में लग्न, चन्द्रमा और सूर्य तीनों विषम राशी में हो अथवा रात्रि का जन्म हो और लग्न, चंद्रमा और सूर्य तीनों सम राशी में हो तब महाभाग्य योग होता हैं. इसमें जन्म लेने वाला जातक भोतिक, आर्थिक और सामाजिक उन्नति करता हैं. उसे किसी प्रकार की कोई कमी नही रहती.

11. दशमेश+सप्तमेश एक साथ बैठे हो तो पिता को कष्ट, आमदनी की हानि या पिता की मृत्यु भी संभावित हैं.

12. चतुर्देश+सप्तमेश एक साथ बैठे हो तो माता की मृत्यु/सुख की हानि होती हैं.

13. पंचमेश+नवमेश एक साथ बैठे हो तो भाग्य की हानि, असफलता, उन्नति में बाधा उत्पन्न होती हैं.

14. षष्टेश+एकादशेश एक साथ बैठे हो तो रोग वृद्धी, बीमारी, गरीबी, लड़ाई, झगडा का सामना करना पड़ता हैं.

15. कुंडली में यदि सूर्य मृत हो तो गर्मी अधिक लगती हैं. शासकीय सेवा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती हैं. यदि शासकीय सेवा में हों तो अधिकारी रुष्ट रहता हैं. दिल में बेचेनी बनी रहती हैं.पिता से अपेक्षित सहयोग नही मिलता और उनका स्वास्थ्य भी प्रभावित होता हैं. दाहिनी नजर कमजोर हो जाती हैं. सिरदर्द की शिकायत  होती रहती हैं.

16. कुंडली में यदि मंगल मृत हो तो साहस की कमी करता हैं. खून में लाल रक्त कण की कमी करता हैं.  लड़ाई-झगडे को देखने पर हल्का सा शरीर में कम्पन होने लगता हैं.

17. दशमेश ६,८,१२ में हो तो तीव्रगामी वाहन से शरीर में चोट लगने की स्थिति बन जाती हैं.

18. लग्न, लग्नेश या बुद्ध से कुंडली के २,४,५ भावेशो का सम्बन्ध होने पर जातक विद्वान होता हैं.

19. लग्न, लग्नेश और लाभेश चर राशिगत हो साथ ही चर गत कोई ग्रह दृष्टी इन पर रखे तो भाग्योदय विदेश में ही होता हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 9 अप्रैल 2022 तक का साप्ताहिक राशिफल

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से अप्रैल 2022 का मासिक राशिफल

जानें ज्योतिष आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया से 2 अप्रैल 2022 तक का साप्ताहिक राशिफल

Leave a Reply